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________________ कलाप श्रोषधि यूनानी लूसीमाव़ियूस के समान होती है । मानो यह उसका ही एक भेद है । इब्नबेतार कहते है, कि मैंने इसको मिस्र के सिवा और कहीं नहीं देखा । कलाप-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) मोरकी पूँछ । मयूरपुच्छ । हला० । ( २ ) समूह । भुंड । संहत । ( ३ ) काँची । गुञ्जा | मे० पत्रिकं । संज्ञा पुं० [सं०ली० ] ( १ ) कँवलगट्टा । पद्मवीज। (२) वंशबीज । बाँस का बीया । बाँस का चावल | वै० निघ० । कलापक-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( १ ) हाथी के गले का रस्सा | हे० च० । ( २ ) समूह | कलापाचा - संज्ञा पुं० चतुष्पद जीवों विशेषतः बकरीके हस्त पाद । पाचा- फ्रा० । श्रकारि ( कुरा का बहु० ) - ० | यह अरुण वा श्वेत रंग का होता है. जिससे बसागंध श्राती है । प्रकृति - गरम और तर । यह दीर्घपाकी तथा पच्छिल है । स्वाद - मांसवत् स्निग्ध | २३१२ लामो कलापी - संज्ञा पुं० [सं० पु० कलापिन् ] [स्त्री कलापिनी ] ( १ ) मोर । मयूर । हला० । ( २ ) कोकिल । ( ३ ) पाकर का पेड़ । लक्ष का वृक्ष । ० चतुष्कं । ( ४ ) बरगद का पेड़ । हानिकर्त्ता - कोलंज उत्पन्न करता है । दर्पन — सिरका, शहद और दालचीनी | प्रतिनिधि - बकरी का बदल उत्कृष्टतर है । पर अपेक्षाकृत अधिक कलाम - [ फ्रा० ] केउच । . वि० [सं० त्रि० ] झुन्ड में रहनेवाला । [ ५० ] कलिहारी । लांगली । 1 कलाफ़ी - [ ० ] सफेद अंगूर जिसमें सब्जी हो । क़लाब - [ ? ] भेड़िया । लु० क० । कलाबश - [ अफरीका ] Creecentia Cujote, Linn. कलाबाश | कलाबीन -संज्ञा पुं० [ देश० ] एक वृक्ष जो सिलहट, चटगाँव और बर्मा में होता है । यह ४०-५० फुट ऊँचा होता है । इसके फल के बीज को मुँगरा चावल वा कलौथी कहते हैं, जिसका तेल चर्म रोगों पर लगाया जाता है । कलाबू - [ ? ] सीतासुपारी । लु० क० । कलाम - संज्ञा पुं० [ श्र० वाक्य | वचन । उक्ति । (२) बातचीत । कथन | बात । मात्रा आवश्यकतानुसार । गुण, कर्म, प्रयोग - यह ग़लीज़ तथा दीर्घपाकी है । परन्तु पच जाने पर उत्तम खून पैदा करता है। यह समशीतोष्ण श्राहार है और निर्बल, शर्त और सहज रोगी के लिये लाभकारी है । वक्ष एवं कंठगत शोष तथा कर्कशता, होंठ और जवान फटने, आवाज़ पड़ने, शुष्क कास, उरःक्षत, यक्ष्मा और कृच्छ, इनको लाभ पहुँचाता और आभ्यंतरिक ऋणों का पूरण करता है । गोंद के साथ यह पेचिस का निवारण करता है । इसका तेल मलने से शिरःशूल और संधिगत वेदना जाती रहती है ।-बु० मु० । वि० दे० "कुरा” । कलापिड जइन -[ बर० ] नाज़बू | कलापिनी -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) नागरमोथा । रा० नि० व० ६ । ( २ ) रात्रि | रात । (३) मयूरी । मोरनी । क़लाम - [ ? ] रचयुल् इब्ल । ( २ ) . क्रावली । कलामक - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] कलमी धान । कलमधान्य | जड़हन । हे० च० । क़लामती - [ यू०] नहरी पुदीना । कलामयखंड - संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] ( Membr arous particu) कलामय भाग । अ० शा० । कलामयगहन- संज्ञा पुं० [सं० नी० ] (Mewbr anous Labyrinth. ) झिल्लीदार गहन । अ० शा० । क़लामतून - [ यू० ] जरंबाद । नरकचूर । कसूर । क़लामामानस -[ यू०] पहाड़ी वा जंगली पुदीना । क़लामीन - [अ०] ( Zine_carbonate) Calamine कलीमिया । इक़लीमिया । दे० " जस्ता " । क़लामीस, क़लामीसी - [ यू०] नहरी पुदीना । - कलामु अमातीस - [ यू० ] Calamus aromaticus वच । कलामोचा- संज्ञा पुं० [देश० ] एक प्रकार का धान जो बंगाल में होता है ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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