________________
कलम्बा
२३०७
औषध निर्माण - एलोपैथी मेटिरिया सम्मत योग
( १ ) इन्फ्युजम कैलंबी कन्सटेटम् — Infusum Calumboe Concentra tum - ले० ।
मात्रा - ३० से ६० बूंद ( =२ से ४ मिलि(ग्राम)।
(२)इन्फ्युजमकैलंबी-Infusum Calumbæ. -ले०। ५% (अर्द्ध घंटा ) । एक भाग कलम्बा मूल, बीस भाग शीतल जल में क्रेदित कर प्रस्तुत करें ।
श्राउन्स
१५-३०
मात्रा-आधे से १ मिलिग्राम ) । ताजा शीत कषाय प्रस्तुत करके १२ घंटे के भीतर उपयोग में लाना चाहिये । (३) टिंकच्युरा कैलंबी — Tinctura Calumboe. -ले० । कलम्बकासव, का टिंक्चर, १०% ।
कलंबे
एक भाग कलम्बकमूल को दस भाग सुरासार ( ६०% ) घटित कर प्रस्तुत । यह पीताभ धूसर वर्ण का द्रव होता है ।
मांत्रा - ३० से ६० बूँद (२ से ४ मिलिग्राम ) । नोट- क लंबा की जड़ और तदुद्घटित योगों में कषायिन ( Tannin ) नामक कषाय द्रव्य नहीं होता। अतएव लौह घटित सभी योगों में यह काशिया की भाँति सेव्य है । इसके निर्माण में शीतल जल व्यवहार में लायें, वरन् शीत कषाय में श्वेतसार के मिलने की संभावना पाई जाती है।
गुणधर्म तथा प्रयोग—
ह्विटला - कलंबा की जड़ सुप्रसिद्ध शुद्ध तिक्र वल्य औषधि है जो कषायिन ( Tannin ) के प्रभाव के कारण कषायत्व शून्य होती है और लौह के साथ स्वच्छन्दतया व्यवहार की जा सकती है । श्रामाशय के ऊपर कलंबा का प्रभाव चिरायता, काशिया और जेशन के बहुत समान होता है । मुख और जिह्वागत प्रान्तःस्थ वात तंतुओं पर प्रभाव डालकर ये निगलने से पूर्व श्रामाशयिक रस और लालास्त्राव वर्द्धित करते हैं इनके श्रामाशय में पहुँचते ही आमाशयिक रसो
कलम्बुका
ब्रेक और भी वर्द्धित हो जाता है और संभवतः अंगों की रक्तनलिका विस्तार Vascularity कुछ अधिक हो जाती है क्योंकि अधिक मात्रा में इनसे क्षोभ उत्पन्न होता है और अधिक काल पर्यन्त सेवन क्रम जारी रखने से उत्तजनाधिक्य
द्वारा एक सामान्य प्रकार का श्रामाशयिक शोथ उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार आमाशयिक रस स्राव अधिक स्वच्छन्दता पूर्वक होने लगता है।
दाँत निकलते समय बच्चों को जो कष्ट होता है उसमें भी यह श्रोषधि गुणकारी है।
मेडागास्कर और इंडोचीन में इसकी जड़ कटु पौष्टिक और अग्निवर्द्धक वस्तु के रूप में काम में ली जाती है। वहां के निवासी इसे पेचिस एवं अन्य रोगों में देते हैं ।
जब शरीर में कमज़ोरी हो, भूख कम लगती हो, अन हजम नहीं होताहो, जी मिचलाता हो, गर्भावस्था में वमन होता हो, उस समय इस औषधि के सेवन से बड़ा उपकार होता है। कलंबा रूट - संज्ञा पुं० [ श्रं० Calumba root
दे० " कलंबा की जड़" ।
कलंबा की जड़ ।
कलंबा वेर-[ ते० ] ? कलम्बिक -संज्ञा पुं० [सं० पु० ] एक प्रकार का कलंबा वेरु- [ ता०] [ पक्षी । चटक पक्षी | वै० निघ० ।
कलम्बिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गरदन के पीछे
की नाड़ी । मन्या । हे० च० । (२) कलमी साग । करेमू । श० र० ।
कलम्बिकी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार की चिड़िया |
कलम्बी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (१) कलमी साग । करेमू । प० मु० । शब्दर० । राज० १ प० । भा० । वि० दे० " करेमू" । ( २ ) पोई का साग । उपोदकी । रा० नि० ६० ७ । कलम्बी रैडिक्स -संज्ञा पुं० [ ले० Calumbae
Radix ] कलंबा की जड़ । कलम्बु-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] करेमू । कलमी
साग । श० र० ।
कलम्बुका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एक प्रकार का जलीय शाक । करेमू । कलमी साग । भैष० शुत्र चि० शम्बुकादि गुटिका ।