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________________ कपूरतैलम् २२१ कपूरा पा-हिम तैल । सुधांशु तैल । गुण-इसके उपयोग से अतिसार,ज्वरातिसार गुण-चरपरा, गरम, वातरोगनाशक, कफ, | ६ प्रकार की संग्रहणी और रातिसार नष्ट । तथा आमनाशक, दाँत को मजबूत करनेवाला, | होता है। और पित्तनाशक है । रा०नि० व० १५। दे. नोट-इसमें १ भाग भुना सुहागा भी मिलाने । "कपूर" । (२) सुगंधवाला । हृीबेर । का कहीं कहीं लेख मिलता है। (भैष० र० । । कपूरतैलम्-[ते०, मल०]) गंधा बिरोजे का तेल अतीसार चि०)(२) रसकपूर । भा० । कपूरत्तैलम्-[ ता०] कर्पूरवर्ति-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उक्त नाम का एक योग । कपूरतैल-[ कना०] ) Turpentine Oil. | निर्माण विधि-कपूर के चूर्ण के साथ कपड़े कपूरनालिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] एक पकवान की बत्ती दूर्वादि के सींक में युक्ति पूर्वक बनाकर जो मोयनदार मैदे की लंबी नली के आकार की मूत्र मार्ग में प्रवेश करने से मूत्राघात नष्ट होता लोई में लौंग, मिर्च, कपूर, चीनी श्रादि भरकर है । वृ०नि० २० मूत्राघात चि० । उसे घी में तलनेसे बनता है । गुणमें यह गुझिया | कपर-बल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं० सी.1 असवरग । ( संयाब ) की तरह होती है। कपूर की स्पृक्का । कर्पूरलता। गोमिया । भावप्रकाश में इसे शरीरवर्द्धक, बल | कपूर-शिलाजीत-संज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार का कारक, सुमिष्ट, गुरु, पित्त एवं वातनाशक, रुचि शिलाजीत । जनक और दीप्ताग्नि वाले को अत्यन्त लाभकारी | कपूर-शिलाधातु-संज्ञा स्त्री० [सं०] शिलाजीत । लिखा है। कपूर-सुन्दरी-वटिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] उक कपूरपुल-ता०] भूस्तृण । नाम का एक योग। कपूरपुल्लु, येएणेय-[ ता० ] रूसा । रोहिष।। निर्माण विधि-कपूर, जायफल, जावित्री, धत्तूर बीज, समुद्र शोष, अकरकरा, सोंठ, मिर्च, कपूर पूस-[ते. ] कहरुबा । क्रनुल्बहर। पीपल, वच, कुबेराक्ष, श्वेत पाटला प्रत्येक समान कपूरमणि-संज्ञा पु० [सं० पु.] एक प्रकार का भाग । शुद्ध भंग सबसे आधी, भंग तुल्य पुरानी सफ़ेद पत्थर जो दवा के काम में आता है और अफीम, भंग से आधी शुद्ध मीठा विष । इन्हें कडा , चरपरा, गरम, वणनाशक तथा त्वचा के मिलाकर भांगरे के रस में महन कर बेर के बीज दोष और वात दोष इत्यादि का, नाशक समझा प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ। जाता है। रा० नि० व० १३/ कर्पूराश्मा । गुण-इसके प्रयोग से शीत वात, संग्रहणी, [ता०] कहरुबा। अर्श, प्रवल अतिसार, अग्निमान्य और इससे कपूर मरम्-[ ता०] युकेलिप्टस ग्लोब्युलस । अफीम खाने की आदत छूट जाती है। एवं काम दे०" युकेलिप्टस"। शक्ति की वृद्धि होती है । र० प्र० सू०८ अ०। कपूरम्-[ते.] 1 कपूर । कपूर हरिद्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] एक प्रकार कप्पू रम्-[ ता०] की हल्दी । कपूर हल्दी । मामा हल्दी । प्राम कपर वल्लि- 1) पंजीरी का पात । प्रादा-बं०। कप्पूर-वल्लि-[ ता०] ) सीता की पंजीरी। गुण-यह शीतल, वायुजनक, मधुर, पित्त(Anisochilus Carnosus.) शामक, कडुई और हर प्रकार की खुजली को दूर कपूर रस-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१) एक | करती है । भा० पू० १ भ०। मायुर्वेदीय रसयोग-शुद्ध हिंगुल, शुद्ध अहिफेन, | कपूर-हल्दी-संज्ञा स्त्री० [सं० कपूर+हिं० हलदी] मोथा, इन्द्रजौ, जायफल और कपूर प्रत्येक तुल्य | कपूर हलदी । दे. "कपूर हरिद्रा"। भाग । चूर्ण कर जल से अच्छी तरह घोटे । फिर | कर्पूरा-संज्ञा स्त्री० [सं० सी०] तरटी । तरदी । २ रत्ती प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ। आमा हलही । फा०६७
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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