________________
कर्णविद्रधि
कर्णविद्रधि-संज्ञा स्त्री० [सं० पु० ] कान के अंदर की फुन्सी । कान के अन्दर की फुड़िया वा घाव । कहल उज्न (अ०) वैद्यक के अनुसार यह दो प्रकार की होती हैं - ( १ ) दोषजन्य र ( २ ) श्रागन्तु । इनमें से प्रथम वातादि दोषों के प्रकोप से उत्पन्न होती है और इसमें से लाल, पीला और गुलाबी रंग का स्राव होता है, चीरने की सी पीड़ा होती है, धूम सा निकलता है, दाह होता है और चूसने कीसी पीड़ा होती है । द्वितीयकान में घाव हो जाने वा चोट लग जाने आदि श्रागन्तु कारणों से होती है । सु० उ० २० श्र० । मा० नि० ।
कर्णविधि-संज्ञा स्त्री० [सं० पु ं० [] कर्णस्वेदन आदि । कान को स्वेदन करने की विधि। कान के सेंकन की विधि | भा० ।
कविवर -संज्ञा पु ं० [सं० क्ली० ] कान का छेद । करण शूल-वात- संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] अस्सी प्रकार के वात रोगों में से एक । दे० " कर्णशूल ।” कर्णशूली - वि० [सं० त्रि० ] जिसे कान में दर्द हो । जिसका कान दर्द करता हो । क शूल युक्त । कर शेखर - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] शाल का वृक्ष । साखू | सखुना ।
1
कर शोथ, कर्णशोथक-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] वैद्यक में एक रोग जिसमें कान के भीतर सूजन होजाती है । कान की सूजन । सोज़िश गोश (फ्रा० ) । इल्तिहाबुल् उन, मुल उज् न ( श्रु० ) । Otitis “कर्णशोथाबु दर्शांसि जानीयादुक्त लक्षणैः ।” मा० नि० । “ शोफोर्शोऽबु दमीरतमू, तेषु रुक्यूतिकत्वं वधिरत्वं च बाधते ।”
२२८२
कर्णच्छिद्र ।
कर्णविश-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] मत्स्य । मछली । कर्णवेध - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] बालकों के कान 'छेदने का संस्कार । कर्णवेधन । कनछेदन |
कर्णसंखाव
कर्ण शूल - संज्ञा पु ं० [सं० की ० ] [वि० कर्णशूली ( १ ) वैद्यक में कान का एक रोग जिसमें वायु दूषित विगामी होकर जब कर्ण गत होती है, तब कानों में तथा उनके आस-पास प्रति दारुण शूल पैदा करती है और यदि वह वायु अन्य दोषों ( पित्त, कफ, रक्त, ) से मिलकर शूल कारक हो तो वह शूल दुःसाध्य होता है । मा० नि० । सुरु उ० २० श्र० । कान का दर्द । कान की पीड़ा । दर्द गोश (फ़ा० ) । वज्डलू उ..न, अलम उज्न ( श्रु० ) । ( Otalgia ) Ear-ache. ( २ ) एक प्रकार की वातव्याधि जिसमें हनु ( ठुड्डी ). कनपटी, सिर और गरदन इत्यादि स्थानों को भेदन करती हुई सो वायु कान में पीड़ा उत्पन्न करती है । सु० नि० १ श्र० । च० सू० २० अ० ।
कर्णवेधन- संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] कान छेदने की क्रिया चा भाव ।
कर्णवेधनिका, कर्णवेधनी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) हाथी का कान छेदने का एक औजार । हा० १ (२) कान छेदने का एक श्रौज़ार | कर्णवेधनास्त्र । यथा -
कपाली बहुलां बहुलायाञ्च शस्यते । सूचित्रिभाग सुषिरा व्यङ्गुला कर्णवेधनी ॥
अत्रि० कर्णवेष्ट - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] कान का परदा । कर्णावरण |
कर्णव्यध - संज्ञा पुं० [सं० पु ं०] कर्ण छेदन की क्रिया वा भाव | कर्णवेधन । कनछेदन | सु० सू० १६ श्र० ।
कष्कुली - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) कर्ण गोलक । कान की लौ । ( २ ) कान के भीतर - का श्राकाश (पोली जगह ) । हे० च० । ( ३ ) कानका वह भाग जिसमें छिद्रकर स्त्रीगण बालियाँ पहनती हैं। (Pinna )
वा० उ० १७ श्र० ।
कर्णसंस्राव कर्णस्राव - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] कान के भीतर से ( कर्ण स्रोत ) पीव वा मवाद बहने का रोग जो वायु से व्याप्त होकर कान के भीतर फुंसी निकलने वा घाव होने से श्रथवा सिर में चोट लगने से और जल में गोता मारकर स्नान करने से होता है । मा० नि० । सु० उ० २० श्र० कान बहना | सैलानुल् उ न ( ० ) । Otorrhoea श्रटोरिया ।
नोट - कान में खून बहने को अंगरेजी में Otorrhagia श्रटोरेजिया कहते हैं। नज़ीफ़ुल् उज् न ( अ० ) ।