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कक्ष
नादकर्णी - फल अर्थात् करौंदा श्रामाशय बलप्रद ( Stomachic ), स्कर्वीहर ( An• tiscorbutic) शैत्यजनक ( Refrige rant ) और पाचक है । कच्चा फल संग्राही एवं स्कर्वीहर है, पित्तोल्वणता में शर्करा एवं एला मिलित पक्क करौंदे का स्वरस शैत्यप्रद पेय है और यह पित्तका निवारण करता है । ज्वरों में इसके पतों का काढ़ा शैत्यजनक ( Refrigrant ) है । ई० मे० से० पृ० १६३ ॥
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करौंदे खट्ट े होते हैं और अचार तथा चटनी के काम में आते हैं। पंजाब में करौंदे के पेड़ से लाख भी निकलती है। फल रंगों में भी पड़ता है । डालियों को छीलने से एक प्रकार का लासा निकलता है । कच्चा फल मलरोधक होता है । और प्रका शीतल, पित्तनाशक और रतशोधक होता । इसकी लकड़ी ईधन के काम में आती है । पर दक्षिण में इसके कंधे और कलछुले भी बनते हैं । करौंदे की झाड़ी टट्टी के लिये भी 1 लगाई जाती है। -हिं० श० सा० ।
चोपरा के मत से यह शीतादि रोगों को नष्ट करता है। इसमें सैलिसिलिकाम्ल और उपचार पाया जाता है।
इसका खटमीठा फल पेशाब की रुकावट को या बूँद-बूँद पेशाब आने की शिकायत को दूर करता है । लगातार आने वाले ज्वर में इसके पत्तों का काढ़ा देने से बहुत उपकार होता है। इसके पत्तों के रस में शहद मिलाकर पिलाने से सूखी खाँसी मिटती है ।
करौंदा के बीजों का रोगन मलने से हाथ पैर फटने में बड़ा उपकार होता है ।
( २ ) करौंदे की एक जाति | छोटा करौंदा करौड़ी । वि० दे० " करौंदी" ।
( ३ ) कान के पास की गिलटी ।
( ४ ) एक प्रकार का करौंदा जो हुलहुल वर्ग का पौधा है और बंगाल तथा दक्षिण भारत में उत्पन्न होता है । इसमें करमद्दक को अपेक्षा वृहदाकार काले रंग का फूल लगता है जो खाद्य के काम आता है। पका फल अम्ल एवं संग्राही
करौंदा
( Astringent ) होता है और श्रामाशय बल-प्रद रूप से उपयोग में आता है ।
पर्याय : – रद्द - सं० । करमूचा पं० । Capparis Diffusa.
- इं० मे० मे० पृ० १६३ |
करौंदी - संज्ञा स्त्री० [हिं० करौंदा ] एक छोटी कटीली झाड़ी जो जंगलों में होती है। यह भारतबर्ष के प्रायः सभी स्थानों में होती है। पर बम्बई, बेलगांव, हुगली और पंजाब के शुष्क जंगलों में बहुतायत से होती हैं । इसमें मटर के बराबर छोटे छोटे (करौंदे से छोटे) फल लगते हैं। अस्तु, कहा है"तस्माल्लघुफला या तु खाज्ञेया करमर्दिका " ( भा० ) ये जाड़े के दिनों में पककर खूब काले हो जाते हैं, पकने पर इन फलों का स्वाद मीठा होता है काँगड़े में इसके वृक्ष जब बहुत प्राचीन हो जाते हैं। तब उनकी लकड़ी काली पड़ जाती है । और उसमें सुगंधि भाने लगती है । इसको ऊद यानी अगर के नाम से अधिक मूल्य में विक्रय करते हैं ।
प० - करमर्द्दिका - ( भा० ). करमर्दी (रत्ना० ) अम्ल फला - सं० । करौंदी, करोंदी - हिं० | लघुकरवंदी - मरा० । केरिस स्पाइमेरम् (Carissa spinarum, A. Dc.) -ले० । शीरफेना ।
गुणधर्माद
करौंदे की तरह । भावप्रकाश में लिखा है"करमदेद्वयं .. ..........।" दे० "करौंदा" । इसके फल की पूड़ियाँ बनाकर खाते हैं। इसकी लकड़ी का काढ़ा पिलाने से पित्त बढ़ता है । इसका दूध के साथ फंकाने से शक्ति प्राप्त होती है । ( ख० अ० ) ।
इनसाइकलोपीडिया मुंडेरिका के मतानुसार छोटे नागपुर की मुंडा जाति के लोग इसकी जड़ को दूसरी औषधियों के साथ आमवात रोग में व्यवहृत करते हैं। इसकी जड़ पीस्कर कृमि पढ़ें हुये घाव में भरते हैं। विरेचक औषधियों के साथ भी इसका उपयोग किया जाता है। अधिक मात्रा में इसका अंतःप्रयोग कभी नहीं करना