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________________ करोरकंद २२६५ परद-[देश॰] सूरन । करोरा-[सिरि०] () मोती की सीपी । (२) भूतांकुश। करोरागुमड़ी-[?] कद्दू । करोल, करोलियून-[यू० करबालियून का मु०] (१)मूगा । मरजान । (२) मूगे की जड़ । बुस्सद। करोला-संज्ञा पुं० भानू । रीछ । -डिं० । करौंजी-संज्ञा स्त्री० [सं० कालाजाजी ] कलौंजी । मंगरैला । करौंदा-संज्ञा पुं० [सं० करम':, पा० करमइ, पु. हिं. करबद] पर्या-करमर्दक, प्राविग्नं, सुषेणं, पाणि. मदक, कराम्लं, करमई, कृष्णपाक फलं, (ध० नि०), करमर्दः, सुषेणः, कराम्लः, करमर्दकः, प्राविग्नः, पाणिमदः, कृष्णपाकफलः (रा०नि०) धनेषुद्रा, अबिग्न, करामई, कृष्णपाक, पाकफल, कृष्यफल, पाककृष्ण, फल, कृष्णाफलपाक, पाक कृष्ण, फल कृष्ण, वनालय, वनालक, कणचूक, बोल, बश, कराम्लक, कण्टकी, अविघ्न, सुपुष्प, रदकण्टक, जातिपुष्प, क्षीरफल, डिडिम्, गुच्छी, क्षीरी, बहुदल (शा० नि• भू०) करमई:, करमहकः, करमईका, करांबुक -सं० । करौंदा, करोंदा, तिमुखिया, करोना, गरिंगा, गोठो -हिं० । बैंची, तैर, करमिया, करंजा करमचा- -बं० । कैरिसा कैरण्डास Carissa Carandas; Linn कैपेरिस कोरण्डास Capparis Corundas -ले० । बेंगाल करंट्स Bengal Currants -अं० । कलक, पेरिङ कलक (-प) फलम् -ता। पेद्दकलिवि-पण्डु, कलिवि-काय, वोक-ते। कोरिडा, करेकाय, हग्गजिंगे -कना० । करवन्दे, करिजिगे -मराठ, कना० तिमुखिया, करम्दा, करमदा, करौंदो, करंदो, करमई, तिबर्रन -गु० । कलक -मद०। तिमुखिया -मरा० । उ०प० प्रा० । गोठो-म०प्र०। करिंदा, करांदा, करवंद -बम्ब० । करवंदा, कोरंदा -मरा । कंदा करी, केरेंदो, कुली -उड़ि०। । फा०६४ शतावरी वर्ग (N. 0. Apocynaceae. ) उत्पत्ति स्थान-करौंदे के वृक्ष हिंदुस्तान के अनेक भागों में विशेषतः बंगाल एवं दक्षिण में श्राप से श्राप उगते हैं। पंजाब और गुजरात में इसे बाड़ों के ऊपर लगाते हैं । यह कांगड़ा और कच्छ के जंगलों में भी होता है। सारांश बह सर्वत्र भारतवर्ष में शुष्क, बलुई, एवं पथरीली भूमि में उपजता है। ___ वानस्पतिक षणेन–एक बड़ा कंटीला झाड़, जिसकी पत्तियाँ नीबू की तरह की, पर छोटी २ होती हैं । पत्तियाँ क्षुद्र वृत युक्त ( Subsessile) | इच से ३ इञ्च तक लम्बी और १ से १॥ इञ्च तक चौड़ी, आधार की ओर वृत्ताकार वा ( Retuse ) और रोमश कुठितान होती हैं। प्रकांड ३-४ फुट ऊँचा और घेरा दो फुट होता है। इसमें द्विविभक्त, परिविस्तृत, अनेक दृढ़ शाखाएँ होती हैं । प्रत्येक प्रकोण वा ग्रंथि (Node) पर, कभी-कभी १ से २ इन्च तक दीर्घ सामान्य वा ( Forked ) युग्म कंटक होते हैं । डालियों को छीलने से एक प्रकार का लासा निकलता है । लघु शाखायें कुछ लाल भूरे रंग की साफ़ और काँटेदार होती हैं। इसकी छाल श्राध इञ्च मोटी भूरी या सफेद पीले रंग के छींटों से युक्त होती है। इसमें दस से बीस तक फूलों के गुच्छे टहनियों के अंत में लगते हैं। फूल जूही की तरह के सफेद होते हैं। जिनमें भीनी-भीनी गंध होती है। खिलने के उपरांत इसकी पंखड़ियों के बाहरी सिरों पर ऊपर से लाल झाँई रहती है और भीतर लंबे-लंबे रक्त वर्ण के तन्तु होते हैं । दूर से फूल का रंग सफेद ही नजर आता है । इसलिए सफेद लिखते हैं । पूस से चैत तक इसमें फूल लगते हैं और बरसात में फल आते हैं । वर्षान्त में ये फल परिपक्क होते हैं फल आध इञ्च से १ इञ्च तक दीर्घ छोटे बेर के बराबर ( Ellipsoid) और बहुत सुन्दर होते हैं। प्रथम ये हरित वर्ण के, फिर लाल और अंत में काले पड़ जाते हैं । ये मसृण होते हैं। जिनमें चार वा तदधिक बीज होते हैं। रंग के
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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