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________________ एलम् बाथ साल्ट एलम्-ब्राथसाल्ट - [ श्रं० alum-broth-salt. ] दे० "पारा" । एलम-रोज़-गागल-[अं॰ alum-rose-gargle.] स्फटिक गुलाब - गण्डूष । दे० " फिटकरी " । एलवङ्ङप्-पट्ट–[ मल० ] तज । एलवालु (क ) - संज्ञा पु ं० " एलबालुक" । [सं० की ० ] दे० १७८३ एला - [?] एक प्रकार का काँटेदार जंगली वृक्ष, जिसका फल इमली की तरह मीठा और खट्टा होता है । पत्ते दीर्घ होते हैं। रंग भूरा होता है । स्वाद मीठा और खट्टा | प्रकृति - मधुर, प्रथम कक्षा में उष्ण एवं तर और खट्टा तथा प्रथम कक्षा में सर्द एवं तर । हानिकर्त्ता - उष्ण प्रकृति को । गुण - फल की मींगी खाने से पाखाना खुलकर साफ होता है और मलावरोध दूर होता है । यह प्रायः अंगों को बलप्रदान करता है तथा पत्तिक रोगों और सांद्रवायु को नष्ट करता है । ( ० ० ) संज्ञा स्त्री० [सं० [स्त्री० ] ( १ ) छोटी इलायची | सु० । रा० नि० । राज० भा० पू० १ भ० । ( २ ) नीली । संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मला एलाम् ] ( १ ) इलायची विशेष ' दे० “इलायची । " ( २ ) वन रीठा । संज्ञा पुं० [देश० ] एक प्रकार की कँटीली लता जिसकी पत्तियों की चटनी बनाई जाती है । वि० दे० “रसौल्” । एलाइच - [ बं० ] एलायची । एलाकु - [ ते ० ] छोटी इलायची । सूक्ष्मएला । एलागन्धिक - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] एलबालुक । रा० नि० च० ४ । एलाडु -[ ? ] श्रज्ञात । एलाङ्गाकाय - [ ता० ] कैथ । कपित्थ । एलाच एलाचि- [ बं०] ] छोटी इलायची | सूक्ष्मएला । लाटरियून - [ यू०] तीक्ष्ण विरेचन “किसाउ ल्हिमार" । एलादिकषाय- संज्ञा पु ं० [सं० नी० ] एलादिकाथ - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] । वि० दे० एलादि गुड़िका जिसके सेवन से पथरी, शर्करा और का काथ मूत्रकृच्छ रोग का नाश होता है । योग तथा निर्माण-विधि - छोटी इलायची, पीपर, मुलेटी, पाषाणभेद, रेणुका (मेंहदी के बीज), गोखरू, सा और एरण्डमूल - इनको तीन-तीन माशे लेकर काथ करें और एक या दो माशे शुद्ध शिलाजीत मिलाकर पिलाएँ । एलादिगण-संज्ञा पु ं० [सं० पु० ] श्रायुर्वेद में पधियों का एक वर्ग । यथा, - छोटी इलायची, बड़ी इलायची, शिलारस, कूठ, गंध प्रियंगू, जटामांसी, नेत्रवाला, ध्यामक, (रोहिषतृण ), स्टक्का, चोरक, दालचीनी, तेजपात, तगर, स्थौणेयक ( थुनेर ), चमेली, बोल, सोप, नख, देवदारु अगर श्रीवास (गंधाविरोजा), केसर, चोर (सुगंधवाला ), गुग्गुल, राल, शल्लकी निर्यास (बिरोजा), पुन्नाग और नागकेसर । एक प्रकार गुण - यह वात-कफ, खुजली, पिटिका और कुछ को दूर करता है तथा शरीर के रंग को सुन्दर बनाता है । वा० सू० १५ श्र० । वा० टी० हेमा० । एलादि गुटिका - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] एलादि गुढी - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] गुड़िया - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ) पित्त में प्रयुक्त एक प्रकार का योग विशेष । } एलादि रक्र निर्माण - विधि - ( १ ) छोटी इलायची, तेजपात और दालचीनी प्रत्येक १ तो०, पीपर ४ तो०, मिश्री, मुलेठी, छोहाड़ा और मुनक्का हर एक ८ तो० - इनको यथाविधि चूर्ण कर शहद में घोट कर १०-१० मा० की गोलियां बनाएँ । गुण- इसके सेवन से कास, श्वास, ज्वर हिक्का छर्दि, मूर्च्छा, मद, भ्रम ( चक्कर ), रक्तनिष्ठीवन, तृषा, पार्श्वशूल, श्ररुचि, शोथ, प्लीहा, श्राढ्यवात, स्वरभेद, क्षत और क्षय का नारा होता है । यह तर्पणी, वृध्य और रक्त-पित्तविनाशक है । च० द० रक्त पि० चि० । रस० २० । सा० कौ० । यो० चिंता० । यो० तरं० उर० चि० । ( २ ) छोटी इलायची, पीपर, हड़, सोंठ, चित्रक, भुना सुहागा, राई, सज्जी, शोरा, वायविडंग, सेंधानमक, जीरा प्रत्येक समान भाग इनको यथा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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