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________________ करवीरानुजा २२१३ करसूफ पावार्थ-तिल तैल ४ सेर। कल्कद्रव्य- करशू-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] हिमालय पर होने वाला # लाल कनेर के फूल, जाती (जाई) के फूल तथा एक बड़ा सदाबहार पेड़ जो अफ़ग़ानिस्तान से प्रशनमल्लिका (हापर माली -बं० ) अथवा पीले लेकर भूटान तक होता है। इसकी पत्तियाँ चारे शाल के तथा मोतिया के फूल. ये तीन औषधियाँ के काम में आती हैं । इस पर चीनी रेशम के मिलित १ सेर । कीड़े भी पाले जाते हैं। पाकार्थ-जल १६ सेर । यथाविधि तेल पाक करशूक-संज्ञा पु० [सं० पु.] नख । नाखून । करें। त्रिका गुण-इसके लगाने से नासार्श नष्ट होजाता | करशोथ-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (Oedemato. · है। चक्र० द. नासा रो० चि० । ___us swelling of hand.) हाथ की करवीरानुजा-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० स्त्री.] अरहर । सूजन । हस्तशोथ ।। पादकी । रहर । वै० निघ० । करसङ्कोचनी- संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] पेशी करवीरिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] मैनसिल । मनः | विशेष । शिला । र० सा० सं०। करसङ्कोचनी अन्त:स्था-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] करवीरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (१) पुत्रवती । पेशी विशेष । जिस स्त्री के वीर पुत्र हो । (२) उत्तम गाय । | करसङ्कोचनी बहिःस्था-संज्ञा सी० [सं० स्त्री० ] श्रेष्ठ गवी। पेशी विशेष । करवीय्य-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक प्राचीन चिकि | करसनी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की लता जो त्सक का नाम । धन्वन्तरि के प्रति श्रायुर्वेद प्रश्न- समस्त भारत में होती है। इसकी पत्तियाँ २-३ इंच कर्ता ऋषि विशेष । लम्बी होती हैं जिन पर भूरे रंग के रोएँ होते हैं । करवील-संज्ञा पुं॰ [सं० करीर ] करील । टेंटी का यह फरवरी और मार्च में फूलती है । इसकी जड़ और पत्तियाँ दवा के काम में आती हैं। इसको पेड़ । कचड़ा। करवीला-[पं०] हीस। हीर भी कहते हैं। करवेला- मल• ] हुरहुर । अकंपुष्पिका । करसफ, करसूफ-[अ०] रूई । करसनी-[अ] एक प्रकार का सफ़ेद काँदा । करवेल्ला-संज्ञा पुं॰ [सं. कारवेल ] करेला । करसम्भव-संज्ञा पुं॰ [सं० वी० ] साँभर नमक । करवोटी-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक चिड़िया का नाम रोमक लवण । रत्ना० । इसे 'करचेटिया' भी कहते हैं। करसाइल-संज्ञा पुं. दे. "करसायल"। करशा-[फा०] करफ़्स । करसादः-संज्ञा पुं० [सं० पु.] हाथ की कमज़ोरी। करशाखा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] उँगली । __ हस्त दौर्बल्य । अंगुली । रा० नि० व० १८ । करसान-[ ? ] अंगूर की लकड़ी । पर्या-अग्रुव, अण्वा, क्षिप, विश, शर्या, | करसायर-दे० 'करसायल"। रसना, धीति, अथर्य, विप, कच्या, अवनि, हरित करसायल, करसायर-संज्ञा पुं॰ [सं० कृष्णसार ] स्वसार, जामि, सनाभि योक, योजन, धुर, शाखा ____ कालामृग । काला हिरन । कृष्णसार । अभीशु, दीधित और गभस्ति -सं०। (वेद | करसिंग- बम्ब० खरसंग । करनीमरम् (ता.)। निघण्टु २ अ.)। करसियान-दे० "करसान"। करशान-[तु.] सफ़ेदा। करसी-संज्ञा स्त्री० [सं० करीष ] (१) उपले वा करशीकर-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] (१) वमन ।। कंडे का टुकड़ा । उपलों का चूर । (८) कंडा । है । छाँट, (२) हाथी को सूंड़ से निकला हुअा उपला । पानी का कण । हला० । सं० पर्या-वमथु । करसूफ-[अ० ] रूई । दवात का सूत । |
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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