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कमेडी २२८६
कम्पित कमेड़ी-संज्ञा स्त्री० कुमरी । कपोतिका ।
फागुन का महीना । रा०नि० २०११। (३) कमेला-संज्ञा पुं० [ देश० बं०] कमोला ।
एक प्रकार के सनिपात ज्वरका नाम जिसमें कफकी कमेलीमावु-[ ता० ] कमीला ।
उल्वणता होती है। यथाकमैल-गु० ] कमीला।
कफोल्वणस्य लिङ्गानि सन्निपातस्य लक्षयेत्। कमैला-मावु- ता. ] कमीला।
मुनिभिः सन्निपातो ऽयमुक्तः कम्पन संज्ञकः । कमोउ-एकि-बर०] निर्मली । कतक । कम्पमान्-वि० दे० "कम्पायमान" । कमोद-संज्ञा पु० [सं०] नीलोफर । छोटा कमल । कम्पलक-संज्ञा पु. [ सं० कम्पिल्लक ] रोचनी ।
__ कमीला । कमोदन-संज्ञा स्त्री० दे० "कुमुदिनी"। ? | कम्पलक्ष्मा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] वायु । कमोदनी-संज्ञा स्त्री० दे० "कुमुदिनी"।
श००। कमोदपुष्प-संज्ञा पुं॰ [सं० की.] एक प्रकार का | कम्पवात-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.], एक प्रकार का फूल जो जल में होता है।
कम्पवायु-संज्ञा [सं० पु.] ) वायु का रोग। कमोदिन(नी)-संज्ञा स्री० दे० "कुमुदिनी' ।
कम्पवात। कमोही-[सिं०] (phy llanfhus reticu- लक्षण-"करपादतले कम्पो देह भ्रमण दुःखिते ____latus,Pair ) पानजोली । पानकूशि । निद्रा भङ्गो मति क्षीणा कम्पवातस्यलक्षणम् ।" कमोही-जो-चोदो-[ ] पानजोली।
इसमें विजय भैरव रस से उत्तम लाभ होता है। कमोही-जो-पुन-[ ] पानजोली।
कम्पत्रातहारस-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] शुद्ध पारद कमौअलीचेट्ट-ते. ] शहतूत।
५ पल, ताम्र चूर्ण १ पल, इन्हें जम्भोरी के रस कमः-[१०] क़ज़ह।
में खरल कर पिष्टो बनाएँ पुनः पान के रस में कम्क-[?] एक पक्षी । बहरी।
पल शुद्ध गन्धक घोटका पिष्टी पर लेप चढ़ाएँ।
सुखाकर संपुट में रख गजपुट ओर भूधर यंत्र में कम्कम-[१०] बोलने में गले के परले सिरे से
पाँच पहर पचाएं। शोतल होने पर निकालें । आवाज़ निकलना। क्रमकाम-[१०] एक प्रकार का छोटा जूं जिसके
पुनः इसमें बराबर भाग त्रिकुटा का चूर्ण मिला
पीसकर रक्खें। बहुत से पैर होते हैं । चमजू। जमजूं। चारपायक। कम्काम-[फा०, अ०, क़ब्ती ] ज़रू के पेड़ को गोंद
मात्रा-१-६ रत्ती। वा छिलका वा ज़रू का पेड़।
गुण-इसके सेवन से कम्प पोर श्रद्धांग वात कम्प-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.](१) शरीर आदि का
का नारा होता है। काँपना । कँपकँपी । वेपथु । रा० नि. व. २० । कम्पवातारि रस-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] चन्द्रोदय, प-०-वेपन । वेप । कंपन । (२) ज्वर
तात्र नम तुत्य भाग, इसमें कुटको के रस को की कँपकपी, वेपथु ।
२। भावना दें, पुनः चने प्रमाणं गोलियां वि० [सं० वि०] (1) जो काँपता हो।
बनाएँ। जिसको कपकपी लगी हो । काँपनेवाला ।
गुण-इसके सेवन से कम्पवात और सर्वाग प-०-चलन, क्रम्प, चल, लोल, बलाचल, वात दूर होती है । (वृहत् रस रा० सु०) चञ्चल,तरल, पारिप्लव, परिप्लव, चपल, चटुल। | कम्पा क-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] वायु । हे० च० ।
कम्पा (२) कंपकारक । कपानेवाला । | कम्पायमान-वि० ! सं. वि. ] हिलता हुआ। कम्पन-संज्ञा पुं॰ [सं० पु०, श्री.] [वि० कम्पित] कंपित ।
(१) कम्प । काँपना । थरथराहः । कपकपी । मे० कम्पित संज्ञा पुं० [सं० की.] चलन । कंपन । मत्रिक । (२) शिशिर काल । माघ और । कँपकपी । श० र० ।