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कमरख
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नोट - डीमक ने कमरख और कमरख भेदafrat का एकत्र वर्णन किया है। नादकर्णी - यह मृदुरेचक, मनोल्लासकारक और स्कर्वी रोग-प्रतिषेधक है । फल खाया जाता है और इसकी ( pickes ) और कढ़ी भी बनती
। इसे अन्य सागों एवं खाद्य द्रव्यों के साथ इस हेतु पकाते हैं, जिसमें वे अपेक्षाकृत अधिक सुस्वादु एवं सुपाच्य हो जायँ । पका फल स्कर्त्री प्रतिषेधक
त्यन्त शैत्यकारक है। इसके फल-स्वरस का बना रात पिपासा एवं ज्वर जात उग्रताके शमन करने के लिए उत्तम तापहारी ( Cooling ) पेय का काम देता है । इसके फल के रस से वस्त्र प्रचालित करने से उन पर पड़े हुये दाग़ और धब्बे होकर वे स्वच्छ होजाते हैं । - इं० मे० दूर 1 मे० पृ० १६ |
कमरख के फलों में कसाव बहुत होता है। इसलिए लोग पके फलों में चूना लगाकर खाते हैं । फल अधिकतर अचार चटनी श्रादि के काम में आता है | कच्चे फल रंगाई के काम में भी
ते हैं। इससे लोहे के मूर्वे का रंग दूर होजाता है । खाज के लिए यह अत्यन्त उपयोगी माना जाता है। हिं० श० सा० ।
कर्नल चोपरा के मतानुसार यह फल शीतादि रोग प्रतिशोधक है। यह ज्वर में उपयोगी है । इसमें एसिड पोटेशियम् श्राक्जेलेट्स पाये जाते हैं।
इसके बीज निद्राजनक वामक, ऋतुस्राव निया मक और शूल निवारक होता है । इनका चूर्ण श्रधे से २ ड्राम तक की मात्रा में उदरशूल और पीलिया के शूल को नष्ट करनेवाला माना गया है ।
इंडोचीन में इसके पत्ते खाज-खुजलीकी श्रोषधी में व्यवहृत होते हैं । ये कृमिनाशक माने गये हैं । इसका फल शीतादि रोग प्रतिशोधक है। यह ज्वर में शांतिदायक वस्तु की तरह व्यवहार किया जाता है।
कमरख भेद--बिलिंबी
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पर्या०-- बेलंबू, बिलिंबी - हिं०, ५० । विलिंबी - बं० । श्रवेा बिलिंबी Averrhoa Billmbi, Linn. - जे०। कुकुंबरटो Cucu
कमरख
mber tree –श्रं०। कोच्चित्तमर्त - काय, पुलि चक्काय, बिलिं बि-काय - ता० । पुलुसु कायलु बिलि-बिलि--काय । बिलिं बि-कायलु - ते० बिलम्बिका, ब्रिलिंब, करिचक्का - मला० । बिलंबु - गु० । काल- जौन-सी, काल-ज़ोन्य-सो-२० । चारी वर्ग
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(N. O. Geraniacea) उत्पत्ति स्थान - समग्र भारतवर्ष के उद्यानों में बहुतायत से इसके वृक्ष लगाए जाते हैं ।
वानस्पतिक वर्णन - यह कमरख की ही जाति का वृत्त है, जिसके फल कमरख की तरह केही होते हैं । भेद केवल यह है कि इसके फल कमरख की अपेक्षा किंचित् छोटे होते हैं । इसके तिरिक्त कई एक अन्य यांशिक भेद होते हैं, जो दोनों के फलों के अवलोकन से स्पष्ट हो जायगा । इसका फल पांडु पीताभ हरित, दीर्घायताकार (Oblong ), १॥ से २॥ इंच लंबा श्राध से १ इंच तक मोटा, श्रधिक कोणीय, पँच कोण युक्र थोर स्वाद में खट्टा होता है । पूर्वोक्त कमरख की भाँति, इस फल की अम्लता भी एसिड आक्जेलेट श्राफ पोटास पर निर्भर करती । यद्यपि लवण की मात्रा इसमें पहले ( कमरख ) को अपेक्षा बहुत अधिक होती है।
औषधार्थ व्यवहार - फल |
प्राप्ति-स्थान- इसका पक्क वा श्रर्द्धपक्क फल एक ऐसे साग-भाजी की किस्म है, जिसका इस देश की देहाती जनता कढ़ो आदि में प्रायः बहुत व्यवहार करती है । यह बाज़ारों में बहुधा सदैव उपलब्ध होता है ।
औषध निर्माण - शर्बत, निर्माण बिधि - पक्के फल का स्वरस निकालकर वस्त्रपूत कर । यह १० फ्लुइड ग्राउंस, साफ शर्करा ३० श्राउंस और जल १० फ्लुइड श्राउंस । यथाविधि गाढ़ा शर्बत प्रस्तुत करें।
मात्रा - ३ से ६ फ्लुइड ड्राम उक्त शर्बत जल तरह मिलाकर २४ घंटे में ४-५ बार सेवन करायें ।
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योरोपीय औषधें जिनकी जगह यह काम में आ सकता है—ौलिक एसिड, फास्फोरिक एसिड और एफसिंग ड्राफट्स |