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________________ कमरख औषध-निर्माण-पका फल, बड़ा एक ओर छोटा दो, दिन में २-३ बार । फल का स्वरस-दो से ४ ड्राम । फलस्वरस द्वारा प्रस्तुत प्रपानक-शर्बत फल का अचार वा चटनी । फूल का गुलकंद । (Conserve) यूरोपीय ओषधियाँ जिनके प्रतिनिधि स्वरूप व्यवहत हो सकता है-हैजेलीन Hazeline मायाफलाम्ल (Gallic acid), और स्फुराम्ल (Phosphoric acid )। प्राप्ति-वर्षाऋतु में इसके फल बाजारों में बिकते हैं। गुणधर्म तथा प्रयोगआयुर्वेदीय मतानुसार कारकोऽम्ल उष्णश्व वातहत्पित्तकारकः । पक्कस्तु मधुराम्लः स्याद्वल पुष्टि रुचिप्रदः । (रा०नि०११०) कर्मारक-कमरख स्वाद में खट्टा, उप्णवीर्य वातनाशक और पित्तकारक है । पका कमरख खटमिट्ठा तथा वलकारक, पुष्टिकारक और रुचिकारक खट्टे में मीठे की अपेक्षा शीतलता एवं रूक्षता अधिक होती है। हानिकर्ता-इसके भक्षण करने से जिह्वा फटजाती है । शीतल प्रकृति वालों को यह हानि पहुँचाता है। दर्पघ्न-किंचित् लवण और चूना उस पर मलकर खाना और कंद । शीतल प्रकृति वालों के लिये गरम जवांरिशें इसको दर्पघ्न हैं। प्रतिनिधि-रैबास (बु० मु०)। मात्रा-अावश्यकतानुसार। गणदोष यह धारक-काबिज है और प्यास की उग्रता को बुझाता है। यह पित्त की तीव्रता का दमन करता, पित्तज छर्दि एवं अतिसार को बंद करता ओर मुख का स्वाद सुधारता है (म० मु. बु० मु०, ना० मु०)। यह तारल्यकारक-मुलसिफ एवं मनोहासकारक है ओर प्रामाशय, उदरावयवों तथा उष्ण यकृत को शक्ति प्रदान करता है। यह सुधा उत्पन्न करता, विवमिषा का निवारण करता, रक को तीक्ष्णता को शमन करता, शोणित एवं पित्त को स्वच्छ करता। मस्ती ओर खुमार को तोड़ता है और खफकान, वसवास तथा अशं को लाभ पहुँचाता है । यह वा-महामारी, शोतला, कामलायान और गरम बुखार को लाभ करता है। इसका सदैव भवण शरीर में फोड़ा-फुन्सी निकलने से रोकता है। इसका रस आँख का जाला काटता है। जो के आटे के साथ इसका लेप विसर्पसुर्खबादे को नष्ट करता है। इसका शबंत उन्माद और वहशत को गुणकारी है। कच्चे कमरख को कूटकर रस निचोड़ें। फिर उसे यहाँ तक कथित करें कि चतुर्थांश जल जाय । पुनः उसे स्थिर होने के लिये रख छोड़ें। तदुपरांत उपर से साफ पानी निथार लें । इसका सिरका उत्तम होता है। यह सभी गुणधर्म में सर्वथा रैबास की तरह है (म. मु०, बु० मु.)। कच्चा कमरख कफ, पित्त और शोणित को विकृत करता है । इसके विपरीत पका कमरख उनको लाभ पहुंचाता है, जैसा कि प्रक• बर शाही में उल्लेख है । वैद्य कहते हैं कि इसका कच्चा फल खट्टा और काबिज-धारक होता है। कमरङ्ग हिम ग्राहिस्वाद्वम्लं कफवातकृत् । (भा.) कमरख-शीतल, धारक, खटमिट्टा-स्वाद्वम्ल ओर कफ, वात कारक है। कम्मरङ्गन्तु तीक्ष्णोष्णं कटुपाकेऽम्लपित्तकृत् । (राज.) कमरख तीखा-तीक्ष्ण, उष्ण, पाक में कड़वा अम्ल तथा पित्तकारक है। कारस्य फलश्चामं ग्राह्यम्लं वातनाशनम् । उष्णं पित्तकरश्चैव तत् पक्कं मधुरं मतम् ।। अम्लञ्चबलपुष्टीना रुचेश्चैव तु वद्धकम् । (वै० निघ० तथा निघण्टु रत्नाकर ) कच्चा कमरख धारक, खट्टा, वातनाशक, उष्ण एवं पित्तकारक है । पक्का कमरख मधुराम्ल, एवं बल, पुष्टि तथा रुचिदायक है। यूनानी मतानुसारप्रकृति-द्वितीय कक्षा में शीतल एवं रूत।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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