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कपोत, कपोतक २१३०
कपोताम (३)सुत के अनुसार १८ प्रकार के ज़ह- यथारीले चूहों में से एक । सु० कल्प० ६ ०। यत् पुटं दीयते खाते अष्टसङ्खथैर्वनोपलैः । (४) कपोत समूह । (५) पारा । पारद। कपोत पुटमेतत्तु कथितम् ............." (१) सजी। सर्जिक्षार। (७) पक्षीमात्र ।
भा० म० भ०। चिड़िया । (८) पारिस पीपल । पारीश वृक्ष। कपोतपुरीष-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कबूतर का भा० । (१) भूरे रंग का कच्चा सुरमा।
बीट । पारावतविष्ठा । यह फोड़े का फाड़नेवाला कपोत, कपोतक-संज्ञा पुं॰ [सं० क्री० ] सीवीरांजन है। दे. "कबूतर"
रा०नि०० १३ । कपोतांजन । भूरा सुरमा । कपोतवक्रा, कपोतवता-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] मे तत्रिकं ।
काकमाची । कौमाठोठी । कड़इ । केवैया ।च० द. संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] पारावत । छोटा |
अरो. चि. कषाद्य तेल । कबूतर।
कपोतवा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] (1) ब्राह्मी कपोतक निषादी-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (१)
बूटी। यथा “कपोतवङ्कारयोणाकः ."-भा. म. घोड़े का एक प्रकार का वातरोग !
४ भ० पूतना-ग्रह-चि० । (२) लवाफट को नाम लक्षण
से प्रसिद्ध एक लता। कर्णस्फोटा। कनफोड़ा। "कृच्छादुत्थापितश्चापि पुनर्योयाति मेदिनी।।
यथा-"कपोतवङ्का सुवर्चला ।" सु. सू० ३८ कपोतक निषादीति सहयः कृच्छ जीवनः॥ अ० । अन्ये "शिरीशसरापत्रस्वल्प विटप वृक्ष"
ज. द. ५५० इति द्रव्यान्तरमाहुः । ड० । सु० चि० ७ अ०। अर्थात्-कठिनता से उठाने पर भी जो भूमि कपोतवर्णा, कपोनवर्ण संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०। पर गिर पड़ता है, वह इस रोग से पीड़ित समझा | छोटी इलायची । सूक्ष्मैला । रा० निव०६। जाता है । उक्त रोग से पीड़ित अश्व मुश्किल से कपोतवल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] ब्राह्मी। जीता है।
कपोतवाणा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] नलिका । कपोतका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] ब्राह्मी। के० दे. नलुका । रा०नि०व०१२। नि। नि०शि०।
कपोतविष्ठा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कबूतर का कपोतकोपाक्या-संज्ञा स्त्री० [सं॰ स्त्री.] सज्जीखार । बीट | पारावतपुरीष | यह व्रण दारण है । सु०सू० नि०शि० | रा०नि०।
_३६ अ०। कपोत चक्र-संज्ञा पुं० [सं० पु.] कवाटचक्र वृक्ष । कषोतवेगा-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री.] ब्राह्मी नाम का कराडिया । रत्ना० । बटुवा ।
महाक्षुप । रा०नि० व०५ कपोत चरणा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (१) कपोतसार-संज्ञा पुं० [सं० पु. क्री० ] स्रोतोऽञ्जन ।
नलिका नामक सुगंधित पोषधि । नली । जटा। सरमा (धात)। (२) खिरनी। सीरिका ।
कपोताच -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] नलिका नाम की कपोतत्राणा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] नली।
___एक सुगंधित ओषधि । अम०। । कपोतपर्णी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री०] इलायची का | कपोताञ्जन-संज्ञा पुं० [सं० की.] नीलांजन । पेड़ । एला । रा०नि० व. १२ ।
सुरमा (धातु)। कपोतपाक-संज्ञा पुं॰ [सं० पु. ] कबूतर का | कपोताण्डोपमफल-एक प्रकार का नीबू । कागज़ी बच्चा।
नीबू विशेष । वै० निघ०। कपोतपुट-संज्ञा पुं० [सं० की. ] पुट का एक भेद। कपोताभ-संज्ञा पुं० [सं० पु.] (3) कपोतर
औषधों के पुट देने का एक प्रकार | भावप्रकाश वर्ण । पीला या मैला भूरा रंग। (२) एक के मतानुसार ऐसे गड्ढे में पुट देने को 'कपोतपुर प्रकार का चूहा जिसके काटने से दष्ट स्थान पर कहते हैं, जिसमें पाठ जंगली उपला आ सके।। प्रन्थि, पिड़का और सूजन की उत्पत्ति होती है।