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बहुत पसीना आता है । जिससे गठिया का पुराना | दर्द जाता रहता है । इस गोली पर सोंठि का काढ़ा पिलाकर रोगी को काफी कपड़ा प्रोढ़ा देना चाहिए।
जब श्वास रोग का वेग हो, तब दूसरे तीसरे | घण्टे पर २ रत्ती कपूर में समान भाग हींग मिलाकर गोली बना सेवन करायें। उस समय रोगी की छाती पर तारपीन तैल का अभ्यंग कर उसे सेंक करना चाहिए। इससे कष्ट से साँस श्राना आराम होता है । उस रोगी को जिसका हृदय जोर से धड़कता हो, इन गोलियों से कभी २ उपकार होजाया करता है।
कपूर को तेल में मिला, गरम कर रात को सीने पर मर्दन करने से शिशुओं का कास रोग मिट जाता है।
श्रढ़ाई पाव सिरके में २॥ तोला कपूर गलाकर उसमें अढ़ाई पाव या सवा सेर जल मिलाकर रखें । उसमें कपड़ा भिगोकर गठिया और पुट्ठों पर लगाने से वेदना निवृत्त होती है। दो रत्ती कपूर और 1 रत्ती अफीम इनकी गोली बनाकर सोते समय खाने से स्वप्नदोष और प्रमेह नष्ट होता है । इन रोगों में इससे बढ़कर अन्य कोई औषध नहीं।
सूजाक में मूत्र त्याग के समय होनेवाली वेदना के निवारणार्थ दो रत्तो कपूर और आधी रत्ती अफीम मिलाकर देना चाहिये और जननेन्द्रिय की सोवन से बैठक तक सीवन पर कपूर का लेप करना चाहिये।
जिस स्त्री की योनि में कंडू एवं प्रदाह हो, उसको अढाई-तीन रत्ती कपूर की गोली बना शक्ति के अनुसार दिन में दो-तीन बार खिलाना चाहिये। इसके लिये सर्व प्रथम विरेचन द्वारा कोष्ठ शुद्धि कर लेनी चाहिये। गर्भाशयिक वेदना में तीन या चार रत्तो कपूर को गोली देना
चाहिये। __ शीतला रोग में जब रोगी निर्बल हो और ज्वर के प्रवल वेग के कारण प्रलाप करता हो, चित्त व्यग्र हो, नींद जाती रही हो, तो १॥ रत्ती कपूर और १॥ रत्ती हींग की गोली बना हर तीसरे घंटा |
बर्तना चाहिये । पाँव के तलवों और हृदय पर तार पीन का तेल मदन करना चाहिये अथवा उन दोनों जगह राई का पलस्तर लगाना चाहिये, यदि इससे शिरः शूल हो जाय अथवा खोपड़ी के ऊपर गरमी बढ़ जाय तो इसका प्रयोग बन्द कर देना चाहिये । उक्न उपचार के लिये बहुत सोच-विचार एवं चतुरता अपेक्षित होती है।
काग़ज़ की नली बना उसमें कपूर का धूआँ साँस के साथ पीने से प्रतिश्याय रोग श्राराम होता है। परन्तु इसके उपयोग के समय मुख और शिर को आच्छादित कर लेना चाहिये ।
पुटों के दर्द पर कपूर का प्रलेप करना चाहिये। __एक रत्ती एलुआ और डेढ़ या दो रत्ती कपूर मिलाकर लगाने से नहरुवा जनित वेदना नष्ट होती है।
यह स्फूर्तिदायक एवं श्लेष्मा निःसारक है। कफ नाशक औषधियों के साथ कपूर खिलाने से चिरकालानुबन्धी कास नष्ट होता है।
कुनैन, नौसादर के फूल और कपूर मात्रानुसार , इनकी गोली बनाकर देने से गुजराती रोग नष्ट होता है।
अढ़ाई पाव पानी में दो तोला कपूर पीसकर उसमें हर प्रकार के बीज भिगो या डुबोकर बोने से वे बहुत शीघ्र उगते हैं। जो वृक्ष कलम से लगाये जाते हैं, उनकी कलम को कपूर के पानी में डुबो कर जमीन में रखने से अति शीघ्र जड़ छोड़ देते हैं।
मांसगत वड़े भागों की वेदना में कपूर तैलाभ्यङ्ग गुणकारी है। ___कास रोग में कासनिवारक अन्य औषधियों के साथ कपूर का उपयोग करना चाहिए।
दंत-कोटर में कपूर भर देने से दंतशूल और दंतविकार जाते रहते हैं।
पित्तज शिरःशूल में सिरके और शीतल जल के साथ कपूर का लेप करना चाहिये। ____ मांस के बड़े बड़े भागों और रगों के दर्द और संधिशूल में अफीम और कपूर को राई के तेल में मिलाकर मर्दन करने से उपकार होता है।