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________________ २१०३ कपु - [ सिंगा० ] रुई । कपुट्ट - [ सिंगा० ] बिनौला । कपास का बीया । कपुकन्द - संज्ञा पुं० [देश० कपु+सं० कन्द ] एक । प्रकार का कन्द जो मालाकार काले रंग का होता है । यह नैनीताल के जंगलों में पाया जाता है। वहाँ के लोग इसे बिष समझते हैं । कपुकि मिस्स - [ सिंगा० ] मुश्क़दाना । लता कस्तूरिका । कपु-गहा - [ सिंगा० ] कपास । कपुरु - [ सिंगा० ] कपूर । कपुरु तेल - [ सिंगा० ] कपूर का तेल । कपूतुङ्ग - [ ? ] सूरजमुखी । कपूय - वि० खराब | कपूर- [ गु० ] दे० " कपूर" । कपूर - संज्ञा पु ं० [सं० कर्पूर पा० कप्पूर, जावा० कापूर ] पया०० कपूर, शीतलरजः, शीताभ्रः, स्फटिकः, हिमः, चन्द्रः, तुषार, तुहिनः, शशि, इन्दुः, हिम-वालुकः ( ध० नि० ) कर्पूर:, घनसारकः, सितकरः, शीतः, शशांकः, शिला; शीतांसुः, हिमवालुका. हिमकरः, शीतप्रभः शांभवः, शुभ्रांशुः, स्फटिकः, अभ्रसारः, मिहिका, ताराभ्रः, चन्द्रेन्दुः, चन्द्रश्रालोकः, तुषारः, गौरः, कुमुदः ( रा० नि० ) सोमसंज्ञः, सिताम्रकं ( रा० ), तरुसारः ( हा० ), भस्माह्वयः (ति) हनुः, हिमाह्वयः, चन्द्रभस्म, वेधकः, रेणुसारकः ( शब्दर० ) शीतमरीचिः, भस्म वेधकः, विधुः शीतमयूखः (मे०) घनसारः, चंद्र संज्ञः, जैवातृकः, ग्लौः, कुमुदबान्धवः सिताम्रः, हिमवालुका, श्रोषधीशः इन्दुः, द्विजराजः, नक्षत्रेशः, निशापतिः, यामिनीपतिः, शशधरः, सोमः क्षपाकरः ( श्र० ), हिमाह्वः, क्षपापतिः ( के० ) सिताम्रः ( श्र० टी० ) कपूरः, सिताभ्रः, हिमवालुकः, घनसारः ( भा० प्र० ) - सं० । [सं० त्रि० ] दुर्गन्धि । बदबूदार | नोट - भावप्रकाश के अनुसार चंद्रमा और हिम के जितने पर्याय हैं वे सब कपूर के भी पर्याय हैं। यथा "चंद्र संज्ञो हिमनामापि संस्मृतः ।” कपूर, कापूर - हिं० | कापूर - द० । कप्पूर, कर्पूर, कापूर, काफूर वं० । काफूर ० । कापूर - फा० काफ़ूरायू० । कैम्फोरा Camphora - ले० । वृक्षकैम्फोरा श्राफिसिनेलिस (C. Officinales ) कैम्फर Camphor - श्रं० । कैम्फ्रे Camphre-फ्रां०] | का+फेर Kampher - जर० । करुप्पूरम्, कप्पूरम्, शूडन - ता० । कर्पूरम्, कपूरामु - ते० । कर्पूरम् - मल० । कर्पूर-कना० | कापूर म० । कपूर, कपूर - गु० । कपुरु, कपूर - सिंगा० । पयो, पियो - बर० । टिप्पणी- इसकी अरबी और फ़ारसी संज्ञा काफ़र कफ़र से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ 'गोपन' अर्थात् छिपाना है । कपूर की गंध समग्र सुगंध द्रव्यों की गंध को छिपा लेती है अर्थात् उनको ढक लेती है, अतएव इसे उक्त नाम से अभिहित किया गया। इसको लेटिन, श्रांग्ल और युनानी सभी संज्ञाएँ श्रारव्य काफ़र शब्द से व्युत्पन्न हैं और काफ़ूर संस्कृत कर्पूर से व्युत्पन्न जान पड़ता है । कपूर वर्ग ( N. O. Laurinece ) उत्पत्ति-स्थान- चीन ( फारमूसा), जापान, पूर्वी द्वीप समूह, सुमात्रा बोनियो । भारतवर्ष में इसका प्रायात बहुधा चीन और जापान से होता है। वन तथा प्राप्ति- - एक सफेद रंग का जमा हुआ सुगंधित द्रव्य जो वायु में उड़ जाता है और जलाने से जलता है । इसकी बे रंग, श्वेत, अर्द्धस्वच्छ, स्फटिकीय डली या श्रायताकार टिकिया अथवा स्थाली होती है । कभी कभी यह चूर्ण रूप में भी पाया जाता है, जिसे श्रांग्ल भाषाविद "फ्लावर्स श्राफ कैम्फर" कहते हैं । हिंदी में इसे कपूर का फूल ओर फ़ारसी में गुले काफूर कह सकते हैं। इसका सापेक्षिक गुरुत्व ०.६६५ है । इसको जलाया जाय तो तुरत जल जाता है । साधारण उत्ताप पर यह धीरे धीरे उड़ता है । परन्तु तीव्र उत्ताप देने से सर्वतः ऊर्द्धपातित हो जाता । गंध तीच्ण, भेदनीय और स्वाद किंचित् तिक एवं कटुक होता है । इससे को मुख में ठंढक का अनुभव होता है । विलेयता - यह एक भाग ७०० भाग पानी पश्चात्
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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