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________________ कपाम २०६२ कपास कपास भी जिसकी काश्त विशेषतः चीन में होती द्राक्षोज (Glucose ), एक पोतराल, एक है और अब भारतवर्ष के विविध भागों में होने | स्थिर तैल, कुछ टैनोन और ६% भस्म होती है। लगी है, इसी की एक उपजाति है। (Materia Medica of India R.N. वर्णन--यह एक वर्षजीवी पौधा है, जिसकीखेती Khory, Part II. P,74) वीज में १० प्रति वर्ष होती है, किंतु जब इसे बढ़ने दिया जाता से २६% तक एक प्रकार का तेल, एल्ब्युमिनाइहै, तब यह बहुवर्षी हो जाता है। इसका पौधा इस तथा १८ से २५% तक अन्य नत्रजनीय ४ से ८ फुट ऊँचा होता है और यह जिस विशिष्ट पदार्थ और १५ से २५ सैकड़ा तक काष्टीन नस्ल का होता है, उसी के अनुसार ४ से ८ मास (Lignin) होता है । एक प्रकार का पीत वा के भीतर इसका बीज अंकुरित होता और परिपक्क वर्णरहित अम्ल-राल, डाइहाइड्राक्सबेञ्जोइक एसिड होता है । प्रकांड सरल होता है जिसमें १० से १२ और फेनोल ये कर्पास-मूल-त्वक् के प्रधान संयोलघु शाखाएँ होती हैं। प्रकांड के लघुतर भाग, - जकतत्व है । फूलमें एक रंजक पदार्थ और गासिपेशाखाएँ, पत्र, पत्रवृत और पुष्प रोमावृत्त, वृन्ता- टिन (Gossy petin) नामक ग्ल्यकोसाइड धार एवं उद्धं व भाग रंजित, कतिपय कुलों में होता है। इसको जब काष्टिक पोटाश के साथ सम्मिहलका लाल, पत्रवृत दीर्घ एवं हृष्टरोमावृत्त, पत्र लित करते हैं, तब यह इन दो स्फटिकीय पदार्थों प्रायः एरंड-पत्र तुल्य, केवल तदपेक्षा क्षुद्रतर, गाढ़ में वियोजित हो जाता है-(१) फ्लोरोग्ल्युहरित वर्ण का होता है, पत्रवृन्त दीर्घ, पत्र-प्रांत सिनोल ( Phloroglucinol) और (२) पंच विभाग युक, विभाग परिविस्तृत वृत्ताकार प्रोटोकैटेक्युइक एसिड (Protocatechuic और किसी किसी नस्लमें किंचित तीक्ष्णाग्र होताहै acid)। अर्द्ध भालाकार या न्यून कोणीय-तीक्ष्णान औषधाथ व्यवहार-वल्कल, पत्र, फूल,फल, (Stipules) युक्त, ( Hooked) और बीज, मूलत्वक् और तैल । भालाकार, पुष्प चमकीला पीत वर्ण का पंजा गुणधर्म तथा उपयोग (Claw) के समीप बैंगनी चिन्ह युक, शाखांत . अग्युर्वेदीय मतानुसारकी ओर एकांतिक और वृक्षीय होता है। आधार कार्पासी मधुरा शीता स्तन्या पित्त कफापहा । स्थित वाह्य कुण्ड वा पौष्पिक पत्र-खंड हृदयाकार तृष्णा दाह श्रम भ्रांति मूर्छा हृद्वल कारिणी॥ धार करातदंतित और कभी कभी समान होती है। ढंढ (Capsules ) अंडाकृति, नुकीला और (राजनिघण्टुः) तीन वा चार कोष युक्त होता है। बीज स्वतंत्र कपास-मधुर, शीतल; स्तन्य जनन (स्तनों श्वेत रोमावृत्त और कपास वा रुई से श्रावेष्टित में दूध बढ़ानेवाला), पित्त तथा कफ नाशक है होता है। वीज में एक प्रकार का तेल होता है। और इसके सेवन से तृषा,दाह,श्रम,भ्रांति और मुर्छा इसकी जड़ ऊपर से पीताभ एवं भीतर उज्वल का नाश होता है और यह हृदय को बल प्रदान श्वेत वर्ण की होती है। उक्त जड़ की शुष्क करती है। छाल औषध में काम आती है। इसकी पतली कार्पासकी लघुः कोष्णा मधुरा वातनाशनी । पतली लचीली पट्टियाँ या बल खाये हुये टुकड़े तृष्णादाहारतिश्रान्ति भ्रान्ति मूर्छाप्रणाशनी ॥ होते हैं। इनकी बाहरी सतह पर एक पीताभ भूरे तत्पलाश समीरघ्नं रक्तकृन्मूत्र वर्द्धनम् । रंग की मिली होती है। यह निगंध और स्वाद तत्कर्णपीड़कानाद पूयास्राव विनाशनम् ।। में किंचित् कटु एवं कषाय होती है। तद्वीज स्तन्यदं वृष्यं स्निग्धं कफकर गुरुः ।। रासायनिक संघटन-कर्पास-मूल-त्वक्-में (भावप्रकाश) .. श्वेतसार (Starch )और २८ प्रतिशत क्रोमो ___कपास-हलकी, किंचित् उष्ण, मधुर और - जन (Chromogen) होता है। इसमें यातनाशक है । तथा इसके सेवन करने से तृषा
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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