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________________ कना कनभेंडी २०५५. कनभेड़ी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का सन | कनवीरम-[ ता० ] कनेर । का पौधा । जिसके पत्ते, फल और फूल भिंडी की | कनवैल-[ बम्ब० ] रक्तवल्ली । रक्तपित्त । तरह होते हैं। यह अमेरिका से भारतवर्ष में | | कनशक्कर-ते. ] शकरकन्द । लाया गया है । इसको "बनभेंडी" भी कहते हैं। कनशरुक्करई-[ ता० ] कन्द। कनभो-[ मल० ] रास्ना । नाई। कनश्तू-[ला० ] गौरः । कच्चा अंगूर । कंशू । । कनमार-[देश॰] रीठा । अरिष्टक । क़नस-[अ०] रासन । बाइसुरई ? । अलनियून । कनमीन, कनमू- ?] कदम । जनाह.। ( Inula Helenium, Elecaकनमू--[ देश० ] पिंडार। mpane Linn.) कनय-संज्ञा पुं॰ [सं० कनक ] सोना | सुवर्ण । कनसलाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० कान+हिं० सलाई ] कनयर-[ कुमा०] कनेर । कनखजूरे की तरह का और उसी जाति का एक कनयि -[ बर० ] गर्जन । तेलिया गर्जन । छोटा कीड़ा । यह कनखजूरे से पतला होता है। कनयून-संज्ञा पु० [सं० कण+हिं० ऊन ] एक प्रकार इसके भी बहुत से पांव होते हैं, किंतु इसकी का सफेद काश्मीरी चावल जो उत्तम समझा प्राकृति वैसी भद्दी नहीं होती और यह लाल रंग जाता है। का होता है । इसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि कनयूर्टस-[पं०] बुरमार । यह कान में घुस जाता है। 'मादनुल शिफ़ा' में कनयोङ्ग-[ मग० ] गर्जन । तेलिया गर्जन । लिखा है कि कनसलाई पाठ प्रकार की होती है कनरयी-संज्ञा स्त्री० एक वृक्ष जिसे गुल भी कहते हैं। इनमें से दो प्रकार की कनसलाई के बिष की ___ कतीरा कनरयी से ही उत्पन्न होता है। कोई दवा नहीं । इनके काटने से मुर्छा प्राजाती कनराडू-[पं०] बुई। है। छोटा कनखजूरा । कनरी- मल० ] जंगली बादाम । (Canarium प्रकृति-तृतीय कक्षा में उष्ण तथा रूक्ष । Coinmune ) java almond tree गुणधर्म तथा प्रयोगसंज्ञा स्त्री० [देश॰] (१) कपूरकचरी । कनसलाई को पकड़कर सुखालें और एक बत्ती (२) छोटा जंगली प्याज । छोटा काँदा । में लपेट कर तिल तैल में उसका काजल पार लें। कँदरी। यह काजल पलक उखड़ने के रोग को अतीब कनरू-[ते. ] शेरवानी । खटाई। ज़रगल (पं०)। गुणकारी है। यदि कनसलाई कान में घुसजाय निरपागौड़ी (ते.)। ( Flacortia Sep तो तेल गरम कर कान में डालें या सिरका iaria) और नमक डालें। जब वह मर जायतब उसे कनलु-[पं०] सफेद सिरस । मोचने से उठा लें। कनल्ल कन्नल-संज्ञा पुं॰ [?] अज्ञात । कनसीरी-संज्ञा स्त्री० [ मेवाड़ ] "हावर" (अवध) कनवा-संज्ञा पुं० [विहार ] एक प्रकार का बाट जो | नामक पेड़। एक छटांक का होता है । कनस्त, कनस्तू कनस्त्वाक-[फा०] उश्नान। ग़ासूल | कनवई-संज्ञा स्त्री० छटाँक । पाँच तोले । कन:-[अ० ] मस्तगी। कनवमि-अ.] वंशपत्री। कना-संज्ञा पुं॰ [सं० कण ] दे० "कन" । कनवल-[हिं०] चिरभिटा। संज्ञा पुं॰ [सं० कांड ] सरकंडा। सरपत । कविलाच-[फा०] कमीला । संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] कनिष्टा । सबसे कनवा-संज्ञा पु० कनवई । छटाँक । छोटी उंगली । [वै] कन्या। लड़की । कनवी-संज्ञा स्त्री० [सं० कण, हिं० कन ] एक प्रकार कना-[१] (१) एक प्रकार का अंदरूतालीस या की कपास जो गुजरात में होती है । इसके विनौले खुश्क । (२) रतवा नाम की बूटी। (३) बहुत छोटे होते हैं। काकनज ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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