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कनक सुन्दररस
२०४८
कनकारिष्ट
धतूरे के रस और कडू तेल चौगुने में मिलाकर प्रवाल, सरसों, लहसुन, वायविडंग, करा की। पकाएँ । जब तेल सिद्ध होजाये छानकर रखलें। छाल, छातिम, पाक के पत्ते और जड़ की छाल, यह दुष्ट श्वेद और वादी के विकार नाशक तथा नोम, चोता, आस्फोता (हापड़माली) गुजा, कान्तिकारक है । ( योग चि०)
अरण्डमूल, कटेरी बड़ी, मूली, तुलसी, अर्जक कनक सुन्दर रस-संज्ञा पुं० [सं० पु.] ज्वरा- (तुलसी भेद) के फल, कूठ, पाठा, मोथा, तुम्बुरु
तिसार में प्रयुक्त उक्त नाम का एक रस योग ।। मूर्वा, वच, पीपलामूल, पमाँड, कुड़ा, सहिजन, हिंगुल शुद्ध, मिर्च, गंधक, भूना सोहागा, पीपल, त्रिकुटा, भिलावाँ, नकछिकनी, हरताल, अवाकपुष्पी मीठा तेलिया और धत्तूर बीज छिला हुश्रा । तूतिया. कबीला, गिलोय, सोरटी मिट्टी, कसीस, समान भाग लेकर चूर्ण करके १ पहर तक भाँग दारुहल्दी की छाल, सज्जी, सेंधानमक । के रस में घोटकर चना प्रमाण की गोलियां
इनके कल्क ओर कनेर की जड़ तथा पत्तों के बनाएं।
काथ एवं चौगुने गोमुत्र के साथ सरसों का तेल गुण तथा उपयोग विधि-इसे यथोचित यथा विधि सिद्ध करके कड़वी तूम्बो में भर कर अनुपान से सेवन करने से संग्रहणी, अग्निमांद्य रखदें। ज्वर और प्रबल अतिसार का नाश होता है। गुण-इसके उपयोग से कृमी, कण्डू और कुष्ट रस० सा० सं० ज्वराति।
रोग का शीघ्र नाश होता है। च० चि०७०। (२) स्वर्ण भस्म १ भाग, पारा, मनसिल, कनकक्षीर तैल-टङ्कण क्षार | रा०नि० व० १३ । गंधक, तूतिया, सोना मक्खी की भस्म, हरताल,
| कनकक्षीरिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] भड़ भांड । मीठा तेलिया और भुना सुहागा ४-४ माग
धन्व. नि । लेकर चूर्ण करके स्वच्छ खरल में जयन्ती, भाँगरा | कनकक्षीरी-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (1). सत्यापाठा, अडूसा, अगस्त, कलिहारी और चीते के रस नाशी । अँडभाँड़ । सुवर्णक्षीरी । (२) पीत की १-१ भावना दें। फिर सुखाकर अदरख के कण्टक धुस्तूर । (३)सातला। रस को ७ भावना दे कर रखलें।
कनकादि लेप-संज्ञा पुं० [सं० पु.] धत्तूरा, पान मात्रा-१-३ रत्ती।
चमेली के पत्ते, मूर्वा, रसौत, कूट, मनशिल और गुण-इसे शहद और पीपल या मिर्च तथा पारद का अच्छी तरह घोट कर तेल मिलाकर लेप घी के साथ सेवन करने से राजयक्ष्मा का नाश करने से कोढ़, खुजली, विसर्प, बिवाई और त्वचा होता है । सनिपात में अदरख के रस के साथ की श्यामता नष्ट होती है । वृ०नि० र० विसर्प सेवन करने से लाभ होता है। श्रोर गुल्म अथवा चि०। शूल में जमालगोटे के प्राधा रत्ती चूर्ण के साथ। | कनकान्तक, कनकारक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] पथ्य-बल्य- हृद्य, रसायन पदार्थ ।
लाल कचनार । कोविदार वृक्ष । रा०नि०५० परहेज-खटाई, नमक, हींग, छाछ, और
१०। दे० 'कचनार"। विदाही पदार्थ । र० सा० सं० यक्ष्मा चि०।।
| कनकानी-संज्ञा पु. [ देश० ] घोड़े की एक जाति । • कनकस्तम्भा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] सोनकेला |
कनकारक-संज्ञा पु० [सं० पु.] कोबिदार । कचस्वर्णकदली वृक्ष । चंपा केले का पेड़ । रा०नि०
नार भेद। व०११।
कनकारका-[फा०] अरनी, अगेथू। कनकक्षार-संज्ञा पुं० [सं० पु.] सोहागा। कनकारिष्ट-संज्ञा पुं० [सं० की.] कूटे हुये नवीन :- कनकक्षीर तैलम्-संज्ञा पुं० [सं० की० ] कुष्ट रोग ___ अामले १ तुला, वायविडंग,पीपल और मिर्च १-१ ___ में प्रयुक्न उक्न नाम का योग- .
कुड़व, पाठा, पीपलामूल, सुपारी, चव्य, चीता, कल्क द्रव्य-कनकक्षीरी (सत्यानाशी), मजीठ, एलवालुक और लोध । प्रत्येक १-१ पल । मनशिल, भारंगी, दन्तीमूल और फल, जायफल, कूठ, दारुहल्दी, देवदारु, दोनों सारिवा, इन्द्रजौ