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________________ २०३७ कर कह के सूधने से मस्तिष्क गत ऊष्मा का निवारण होता है। कच्चे कडू का रस निकाल कर लड़की की माँ का दूध या गुलरोग़न मिलाकर या अकेला कान और नाक में टपकाने से और उसमें कपड़ा भिगोकर खोपड़ी पर रखने से गरमी का सिर दर्द, सरेसाम, प्रलाप, उन्माद और अनिद्रा रोग पाराम होते हैं। इसका टुकड़ा सिर पर धारण करने और इसका लेप करने से भी उक्त लाभ होता है। कद्द. का ऐसा लघु फल जिसका फूल अभी न गिरा गिरा हो, लेकर आटे में लपेट कर अग्नि में भून लेवें। फिर उसे निकाल कूट-पीसकर रस निचोड़ें । इस रस के आँख में लगाने से नेत्र की पीत वर्णता दूर होती है । कह के फूल के रस से भी उक लाभ होता है । गरमी से आँख आने में भी यह गुणकारी है। इमली और खाँड़ के साथ कह को पकाकर मल-छानकर पीने से मस्तिष्कजात ऊष्मा गरमी का सिर दर्द वसवास (अशुभ चिंता) और उन्मादये आराम होते हैं । यदि वाष्पारोहण-तबख़ीर के | कारण आँख दुखने को पा जाय, तो उसे भी लाभ पहुँचता है। यदि गरमी के कारण कान में दर्द हो, तो इसका रस गुलरोगन में मिलाकर टपकायें। यदि कंठ के भीतर गरमी के कारण दर्द और सूजन हो तो इसके रस से कुल्लियाँ करें। इसको बकरी के मांस या आशजौ या मूंग की धोई दाल के साथ खाने से गरमी के कारण हुये सीने के दर्द और गरमों को खासी को लाभ होता है। शेख का कथन है कि यद्यपि कद्द, का रस एक कारण से उपकारक है; पर मूत्रल होने के कारण, अवगुण भी करता है । इसे सिरके के साथ खाने से इसकी ग़िलज़त (सांद्रता) जाती रहती है और यह मेदे से शीघ्र तले उतर जाता है। मांस के साथ पकाकर भक्षण करने से यह सम्यक एवं शीघ्र परिपाचित हो जाता है । इसे मुर्गी के बच्चे के साथ पकाकर भक्षण करने से मूर्छा दूर होती है और विषाक्त दोषों को विषाकता मिटती है तथा गरम पित्तें ? छूटती हैं। __ कच्चा कह पीसकर वृक्त, यकृत एवं आँतों पर लेप करने से उनकी गर्मी दूर होती है। कद्द, का सूखा छिलका पीसकर भक्षण करने से बवासीर का खून और प्रांतों से रक्त प्राना रुकता है। राजयक्ष्मा के रोगी के लिये इससे हितकारी अन्य कोई तरकारी नहीं है। ___ इसको भुलभुलाकर पानी निचोड़ कर पियें। यह हृदय, यकृत और प्रामाराय की गरमी तथा ज्वर शमन करने में अनुपम है। चीनी की चाशनी में इसका मुरब्बा पकाकर खाने से किसी भाँति गर्मी होती है । यह मुरब्बा भी अवरोधोद्धाटन करता है, दोषों को पतलालतीफ़ करता है मलों को छाँटता है और शरीर को स्थूल करता है । विशेषतः बादाम की गिरी के साथ श्रामाशय एवं यकृत को शकिप्रद और वाजीकरण है । यह उत्तम रक उत्पन्न करता और शीघ्र पच जाता है। परन्तु शर्त यह है कि प्रामाशय में कफ की उल्वणता न हो। यह मस्तिष्क की तरफ वाष्प चढ़ने नहीं देता और पेशाव की चिनक के लिये लाभकारी है। यह पोस्ते वा खसख़ास के साथ नींद लाता है । परन्तु शेख के कथनानुसार इसका मुरब्बा औषध में समाविष्ट नहीं होता। इसमें तनिक भी सर्दी या गर्मी उत्पन्न करने का गुण नहीं है । केवल स्वाद के लिये इसका व्यवहार करते हैं । यदि इससे निर्मित रायते में केवल उतनी मात्रा में नमक डालें, जितने में यह स्वादिष्ट हो जाय और इसके सिवा और कोई अन्य उष्ण एवं तीक्ष्ण वस्तु न डालें, तो यकृत की ऊष्मा एवं याकृतीयातिसार ( इसूहाल कबिदी) में अत्यन्त उपकार हो। __ कच्चा कद्द, आमाशय के लिये अत्यन्त हानिप्रद है । यदि युवा पुरुष इसे खा ले, तो उसे भी कभी कभी अतिशय हानि करता है। इसकी जलीयतामाइयत, ठीक बिकसाहट एवं विस्वाद प्रामाशय में गुरुत्व, शैत्य, उलश और वमन उत्पन्न कर देते हैं। कभी कभी ये दोष इतना बढ़ जाते हैं कि इनका निवारण असंभव हो जाता है। उस समय शहद का पानी या सोये का काढ़ा पीकर के करना चाहिये एवं ऊद हिंदी, लौंग, जीरा, सुश्रद
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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