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करा
२०३४
कफपित्तनाशक, भारी, वृष्य, रुचिकारी और धातु | वर्धक एवं पुष्टिकारक है। 'मिष्टतुम्बीप.लं' हृद्यं पित्तश्लेष्मापहं गुरु। वृष्यं रुचिकरं प्रोक्तमिति च। (द्रव्यगु०)
कह -हृद्य, कफपित्तनाशक, भारी, रुचिकारक और वीर्यवर्धक है।
गुरु मधुरं मलभेदकं वातश्लेष्मकारि रुक्ष पित्तनाशित्वञ्च । (राज.)
कह-भारी, मधुर, मलभेदक, रूक्ष, वात तथा कफकारक, शीतल और पित्तनाशक है । "तुबं रुक्षतरं ग्राहि"
(वा० सू० ६ अ०) तूबी (कह.) बहुत रूक्ष और ग्राही है।
मीठा गोल कद्द, ( गोरक्षतुम्बो)कुम्भ तुम्बी समधुरा शिशिरा पित्तहारिणी। गुरुः संतर्पणी रुच्या वीर्य पुष्टि बलप्रदा।।
(रा०नि० ७ व०) कह.-मधुर, शीतल, पित्तनाशक, भारी, संतर्पण ( तृप्तिकारक ), रुचिकारक, वीर्यजनक, पुष्टिकारक, और बलकारक है। .
मीठा लंबा कह लौकी (सीरतुम्बी) तुम्बी सुमधुरा स्निग्धा पित्तघ्नी गर्भ पोषकृत् । वृष्या वातप्रदा चैव बलपुष्टि विवर्धनी॥
(रा०नि० ७ व०) लौकी, मधुर, स्निग्ध, पित्तनाशक, गर्भपोषक, वृष्य, वातकारक तथा बल और पुष्टिकारक है। अलावूर्भेदनी गुर्वी पितघ्नी क.पला हिमा।
(शा० नि० भू०) कह.-भेदक, भारी, पित्तनाशक, कफकारक ओर शीतल है। टुम्बी तु मधुरा स्निग्धा गर्भपोषण कारिणी। वृष्या वातप्रदा वल्या पौष्टिका रुच्यशीतला॥ मलस्तम्भकरी रूक्षा भेदका गुरुपित्तनुत् । काण्डमस्याश्च मधुरं वातलं कफकारकम् ॥ स्निग्धं शीतं भेदकं च पित्तनाशकरं जगुः।
(नि. र.) - वह-मधुर, स्निन्ध, गर्भ को पोषण करनेवाला | दृष्य ( वीर्यबईक ), सातकारक, बल कारक, |
पुष्टिजनक, रुचिकारक, शीतल, मलस्तम्भक, रूखा, भेदक, भारी और पित्तनाशक है। इसकी बेल के कांड-मधुर, वातकारक, कफकारक, स्निग्ध, शीतल, भेदक और पित्तनाशक हैं। अपुष्पम्य प्रवालानां मुष्टिं प्रदेशसंमिताम् । क्षीर प्रस्थे शृतं दद्यात् पित्तोद्रिक्त कप.ज्वर। फलस्वरसभागश्च त्रिगुणक्षीरसाधितम् । उर:स्थिते कफे दद्यात् स्वरभेदे सपीनसे ।। हृतमध्ये फले जीर्णेस्थितं क्षीरं यदा दधि । जातं स्यात् कफजे कासे श्वासे वम्यञ्चतपिवेत् मस्तुना फलमध्यं वा पाण्डुकुष्ठ विषादितः। तेन तक्रं विपक्कं वा सक्षौद्रलवणं पिवेत् ।। तुम्ब्या: फलरसै: शुष्कः सपुष्पैरवचूणितम् । च्छईयेन्माल्यमाघ्नाय गन्धसम्पत्सुखोचितः।। चरकसंहिता कल्प: ३ अ० (दृढ़बल:)।
वैद्यक में मीठे कद्दू के व्यवहार वाग्भट्ट-अश्मरी रोग में तुम्बी बीज-कह, के बीजों का चूर्ण शहद में मिलाकर खायें और ऊपर से भेड़ का दूध पियें । इस तरह सात दिन करने से अश्मरी रोग जाता रहता है । यथानृत्यकुण्डल बीजानां चूर्णमाक्षिक संयुतम् । अविक्षीरेण सप्ताहं पीतमश्मरीपातनम् ।।
अरुणदत्त (चि० ११ १०) भावप्रकाश-प्रदर रोग में अलाबु-कह के गूदे को चूर्णकर चीनी और मधु मिलाकर मोदक प्रस्तुत करें। प्रदर की शान्ति के लिये यह मोदक सेव्य है । यथाअलाबुफल चूर्णस्य शर्करासहितस्य च । मधुना मोदकं कृत्वा खादेत् प्रदर शान्तये ।।
(म० ख० ४ र्थ भा० ) यूनानी मतानुसार गुण-दोष-(लंबा कह लौकी)
प्रकृति-द्वितीय कक्षा में शीतल और तर । मतांतर से द्वितीय कक्षा के प्रथमांश में सर्द और तर। कोई-कोई तृतीय कक्षा में सर्द एवं तर मानते हैं।
स्वाद-किंचित् मधुर और हरायद होता है।