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पर्या०-( मीठा कह.. मिष्ट तुम्बी ) तुम्व:, तुम्बकः, तुम्बा, तुम्बी, पिण्डफला, महाफला, आलापूः, एलाबू:, लाबु, लाबुका, ( अ० टी० ) तुम्बिका, श्रालाबुः तुम्बिः अलाबु, तुम्बुकः ( शब्द र० ), अलाबू, लाबू:, तुम्बिका, तुम्बिनी, मिष्ठतुम्बी, सं० । मीठा कद्द ू, मीठा लोना, मीठीतुम्बी, घिया, लौना, लौका, लौकी, लोवा, गड़ेरू, गड़ेली, लवलीश्रा, ग्रहलीश्रा, तु बी मीठी तुम्बी, तू बा, हिं० । मीठा कद्द दु० । लाऊ कदु, मिठा लाऊ, मिष्ट लाऊ, - बं० । कदूए शीरी कदू, -फ्रा० । क़र्अ. क़उलहलो - श्रु० । (Sweet or White gourd, White pumpkin ) - श्रं । तीयातु खड़िकाया, -ते० का० । दुध्या, भोपट्टा दुध्या भोपला -मरा० । श्राल-भूपाल । दुधीयूँ, दुध दुधी, - गु० । कण्ड उबलकायि, लाबु - सिंहली । दुद्दि [को०] ।
गोल मीठा कद्द ू - ( वतु' लम्बी ) गोरक्ष तुम्बी, गोरक्षी, तवालाम्बुः घटामिधा, कुम्भालाम्बुः, गटालाम्बुः कुम्भतुम्बी ( रा० नि० ) कुम्भालाबूः, नागालाबू:, घटालाबू:, वृहत्तुम्बी - सं० । कद्द ू, गोल कद्द, गोरखतुंबी - हिं० | गोल लाऊ - बं । गोरख दुद्दिके ।
लम्बा मीठा कद्दू - (दीर्घा तुम्बी ) क्षीरतुम्बी, दुग्धतुम्बी, दीर्घवृत्तफलाभिधा, इक्ष्वाकुः, क्षत्रियवरा, दीर्घबीजा, महाफला, क्षीरिणी दुग्धबीजा दन्तबीजा, पयस्विनी, महाबल्ली, अलाम्बु:, श्रमध्नी, शरभूभिता, ( रा० नि० ) सं० । लौकी, लौका, लौश्रा, लौवा, घिया, घीश्रा, लँबा कद्द ू, श्राल, गड़ेली, गड़ेरू, लेउना - हिं० । मिठा लाऊ, बं० । दुग्धतुम्बी, मरा० । हालु गुम्बुल - कना० । ख़ियार कदू, कदूए दराज़, कदूए शीरी - फ्रा० । क़रश्रु, क़र्उल् हलो
-श्रु० ।
संज्ञा -निर्णायनी - टिप्पणी - हमारे यहां श्राकृति भेद से कद्द ू के भिन्न नाम होते हैं । परंतु बंगदेश में ऐसा नहीं है । वहाँ सभी प्रकार के कद्द ू को 'लाऊ' वा 'कदु' कहते हैं । हमारे यहां गोल फल वाले को 'क' और लम्बे फल वाले को ३१ फा०
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'लौकी', 'लौना' प्रभृति सँज्ञाओं से श्रभिहित करते हैं । राजनिघण्टुकार ने 'गोरक्षतुम्बी' और 'क्षीतुम्बी' ये दो प्रकार के मिष्ठ अलाबू का गुण वर्णन किया है । परन्तु उन्होंने इनके और किसी व्यवच्छेक चिह्न का उल्लेख नहीं किया है । केवल भाषा नाममात्र का निर्देश कर दिया है। राज निघण्टूल नाम कर्णाटी भाषा और महाराष्ट्रीय भाषा के नाम जान पड़ते हैं। क्योंकि ग्रन्थकार ने अपने ग्रन्थ के श्रारम्भ में यह लिखा है कि“व्यक्तिः कृतात्र कर्णाटमहाराष्ट्राय भाषया " । काशी से प्रकाशित राजनिघण्टु श्रादर्श पुस्तक में गोरक्षतुम्बी का भाषानाम " गोरखदुद्दिक" और क्षीरतुम्बी का भाषानाम "हालुगुम्बलु” लिखा है। भूतुम्बी का भाषानाम "तेल सार" है । वि० दे० "भूतुम्बी" कुम्भतुम्बी गोरक्षतुम्बी का नामातर है।
तिब की पुस्तकों में जहां कदूए शीरीं वा क़रउहलो उल्लिखित होता है, वहाँ लौकी वा कदूए दराज़ ही अभिप्रेत होता है । इनमें से व्यवहारोपयोगी एवं सर्वोत्कृष्ट वह है, जो सफेद, कोमल ताजा एवं मधुर हो और जिसमें रेशे न हों, जो न बहुत बड़ा हो और न बहुत छोटा बल्कि मध्यमाकार का हो और उसकी बेल को मीठा पानी लगा हो। इसकी जड़ पतली, लम्बी, किंचित् मधुर और मदकारी होती है ( ० ० ) । कुष्माण्ड वर्ग
( N. O. Cucur bitacece)
उत्पत्ति स्थान — समग्र भारतवर्ष में इसकी बेल लगाई जाती है या जंगली होती है ।
औषधार्थ व्यवहार - मूल, पत्र, फल, फूलमज्जा, बीज, बीज तैल ।
गुणधर्म तथा प्रयोग श्रायुर्वेदीय मतानुसारअलावू, तुम्बी, मीठा कद्द ू - 'मिष्ठतुम्बीफलं ' हृद्यं पित्त श्लेष्मापहं गुरु । वृष्यं रुचिकरं प्रोक्तं धातुपुष्टि विवर्द्धनम् ॥
भा०
मीठी तुम्बी का फल ( मतांतर से 'दल' अर्थात् पत्र ) श्रर्थात् कद्दू - हृदय को हितकारी,