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कदली
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२०२६
कदली
और पित्त के दोष मिटाता है, कोल्हापुर जिले में | इस वृक्ष के रस से रक्त पात निवारण करते हैं। जमेका में भी इसका रस इसी प्रकार व्यवहृत होता है। वहाँ वृक्ष में एक खोंचा लगाकर रस निकाला जाता है। यवद्वीप में एक प्रकार कइली वृक्ष के पत्र के उलटी पोर मो-जैसा जो पदार्थ जमता है । वह वत्तो बनाने में कान पाता है। __ कदली वृक्ष का समस्त अंश गवादिका खाद्य है। यह पशुओं के लिये विशेष उपकारक है। जमेका द्वरेप के निम्न श्रेणी वाले अधिवासियों का केला ही एक मात्र सुजम खाद्य है । अमेरिका के आदिम अधिवासी भी इसे प्रधान खाद्य समझ कर ब्वहार करते हैं। __ सूखा केला अति वलकारक और शैत्यनिवारक होता है । पुनः गाल फूलजाने पर भी यह वड़ा उपकार करता है । समुद्र की यात्रा में सूखा केला विशेष व्यवहार्य है । बम्बई के रहने वाले घर में खाने को पक्का केला बांस की खपाच से पतला पतला चीर धूप में सुखाकर रख छोड़ते हैं । इससे जो मुरब्बा बनता है । वह खाने में बहुत अच्छा लगता है।
वेसकेली केले को सुखा कूट-पीस कर बम्बई वाले एक प्रकार का खेसाँदा बनाते हैं । वह शिशु रोगी और सद्यःप्रसूता कामिनी के लिये अति उपकारक एवं वलकारक खाद्य है। मॉरिशस, पश्चिम-भारतीय द्वीप और दक्षिण-अमेरिका में भी ऐसा ही खेसाँदा (हिम) प्रस्तुत होता है। मेक्सिको देश में क्या केला सुखाकर रक्खा नहीं जाता । हबशी पक्के केले को सिद्धि वा मण्डका उपादेय समझ खाते हैं । दक्षिण अमेरिका, अफ-- रोका और पश्चिम-भारतीय द्वीप में इसका चूर्ण बनता है। दक्षिण अमेरिका में उन चूर्ण से विस्कुट तैयार होता है वृटिश-गीनिया मे कच्चा केला प्रधान खाद्य गिना जाता है । इच के बाद इसी को अधिक लगाते हैं । वृक्ष के रस से हार वा लवणवत् द्रव्य प्रस्तुत होता है दक्षिण अमेरिका में पक्के केले से ताड़ी की तरह एक प्रकार का मद्य बनता है, जो तीव्र नहीं पड़ता । पक्के फलक शस्य पत्ते में लगा सुखाते और छोटे-छोटे
टुकड़े काटकर बनाते हैं। प्रयोजनानुसार एक टुकड़ा तोड़ पानी में घुज़ाने से शर्ब तयार हो जाता है । यह शर्वत अत्यंत शीतल और श्रमापहारक होता है । भारतवर्ष में इसके छिलके से चमड़े का काला रंग बनता है। दधि, दुग्ध और घोज के साथ केला खाने से प्रति शय दुपच्य होता है । चम्पक केला बहुमूत्र रोग में उपकारप्रद है। मुसलमान हकीम भी केले को पित्त, वायु, रक और हृद्रोगनाशक मानते हैं। डाक्टा-फेयर के कथनानुसार यह शुक्रवृद्धिकर मस्तिष्क दोष निवारक है । किंतु मोचा दुष्पच्य होता है।
हिं०वि० को. स्वानुभूत प्रयोग (१) केले के खम्भे का रस १ एक सेर, मधु | एक पाव मिलाकर चाशनी कर शर्बत तैयार करें। इसमें से १ तो. शर्बत प्रातः सायं काल सेवन करने से कास-श्वास अवश्य पाराम होता है।
(२) केले के खम्भे के भीतर का कोमल सफेद भाग वा गूदा लेकर छोटे २ टुकड़े कर धूप में सुखा लेवें। पुनः इनको कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनायें।
मात्रा-१ रत्ती से ६ रत्ती तक | इसे मधु के साथ प्रातः सायंकाल चटाने से कुक्कुर कास दूर होता है।
(३) केले के खम्भे का रस अग्निदग्ध पर लगाने से उपकार होता है। किसी किसी के मत से क्षय रोग में भी १ तो० की मात्रा में इसका रस सेवन करने से उपकार होता है।
(४) केले के पत्ते को जलाकर राख बना लेवे । इसमें से २-३ रत्ती राख सुबह शाम शहद में मिलाकर चटाने से सूखी खाँसी व कूकर खाँसी जाती रहती है।
(५)कदली कंद को सुखाकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण करें । इसमें से एक माशा चूर्ण शहद के साथ चाटने से सूखी खाँसी दूर होती है। (३) नीलकन्ठी नमक १ छ. और अफीम छ० इन दोनों को घोंटकर एक पिंड सा बना