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________________ कदली २०१२ कदली पश्चिम भारतीय द्वीप में एक प्रकार का तुद्राकार बैंगनी केला होता है। इसकी गंध अत्यन्त मनोहारिणी होती है। उस देश के धनीमानी व्यक्ति इसी केले का समधिक श्रादर करते हैं। इस जाति के केले को अंगरेज फिगबनाना' ( Fig banana) कहते हैं। इसी जाति का एक प्रकार का क्षुद्राकार केला भी होता है। निम्न श्रेणी के लोग इसका भी अति आदर किया करते हैं। अँगरेज़ी में उसे 'फ्रिग सकरीयर' (Fig Suerier) या लेडी किंगर' (Lady Finger ) कहते हैं । लेडी किंगर की वैज्ञानिक लेटिन संज्ञा 'मुसा अोरिएण्टम्' ( Musa Orientum ) और 'फ़िग बनाना' का 'मुसा मसकुलाटा' ( Musa Musculata) केला प्रायः अरब के उपकूलों पर तथा यमन, अमान और बसरा में भी पाया जाता है, यह दो ईशन के बंदरगाहों में भी कम कम होता है। कहते हैं कि ये भारतीय केले की अपेक्षा अधिक सुस्वादु एवं मधुर होते हैं। । चीन देश में उपजनेवाला एक प्रकार खर्वाकार केला होता है। अँगरेजी इसे ( Dwarf pla. ntain) अर्थात् 'बौना केला' कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है-'मुसा अोकसिनिया'( Musa occinea) और 'मुसा नाना' ( Musa nana)|चीनका एक केला 'मुसा कावेरिडशी' (Musa Cauendishi ) कहलाता है। इसके सिवा वहां श्रन्य खर्वाकार केले भी होते हैं। अफरीका और पश्चिम भारतीय द्वीप समूह में कांठाली और मर्त्यमान केला ही लगाया जाता। है। अबीसीनिया के अति सुन्दर केले का नाम 'मुसा इनसीट' ( Musa Ensete) है। . अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत का 'पोरङ्को' केला अति उत्तम होता है । यह उन प्रांत के सभी स्थानों में मिलता है। डाल का पका होने पर इसके सदगन्धसे मनुष्य,पशु और पक्षी तक उन्मत्त होजाते हैं। यूरोप के दक्षिण स्पेन में केला हुआ करता है। किंतु उसके उत्तर काच के मकान वा उष्णगृह के सिवा खुले क्षेत्र में यह नहीं उपजता । क्यूबा द्वीप में कहीं कहीं केला होता है। एतद्भिन्न अन्यान्य स्थलों में भी केला उपलब्ध होता है। प्रधानतः उषण प्रधान प्रदेशों में भी यह होता है । एशिया के पूर्व चीन एवं भारतीय : द्वीप समुदाय और पश्चिम तुर्की के अंतर्गत युफ्रेतिस नदी तट पर्यन्त समस्त देश में केला मिलता है। अन्यान्य अंश में जो भूभाग पृथिवी के मध्य भाग पर स्थित है, वहां ही यह पाया जाता है । भारत में हिमालय के शीत देश में केला दिखाई पड़ता है । उक्र पर्वत के पाद देश पर ३०० उत्तर अक्षांतर पर्यन्त यह अधिक उपजता है। मसूरी. कुमायू और गढ़वाल प्रदेश भी इसकी उत्पत्ति से वञ्चित नहीं, किंतु उक्र प्रदेश के केले में बीज के सिवा शस्य बहुत कम रहता है। समुद्र से ७००० फुट ऊवस्थान तक यह उत्पन्न हो सकता है। दक्षिण अमेरिका में अाजकल यथेष्ट केला लगाया जाता है। काराकास, गोयेना, डेमेरेरा, जामेका त्रिनिनाद प्रभृति स्थानों में बराबर कितनी ही भूमि पर इसकी कृषि होती है। चट्टग्राम प्रदेश के बनों में केले का वृक्ष इतना अधिक उपजता है। कि उसे देख विस्मित होना पड़ता है। वहाँ हाथी और गयाल नामक महिष जातीय पशु एक प्रकार के केले का वृक्ष खाकर जीवन धारण कर सकते हैं। पहाड़ी प्रदेश के केले अर्थात् मुसा पॉर्नेटा (Mnsa ornata) और वनजात केले को जंगली केला अर्थात् 'मुसा सुपर्बा' ( Musa . saperba) कहते हैं। चट्टग्राम प्रदेश में भी यह घास की तरह पर्याप्त होता है । अन्यान्य जगहों में खाली मैदान पड़ा रहने से जैसे दूर्वा, मुस्तक प्रभृति तृण उपजता है, वैसे ही चट्टग्राम के खाली मैदान में पहले घास के साथ केला भी निकल पड़ता था । लगाने में जितने केले उखाड़ कर फेंक दिये जाते थे, उनकी संख्या करना असंभव है। आजकल भी नये लगाये जानेवाले केलों का ऐसा ही हाल होता है।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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