________________
एफिड्रा
१७५६
उत्तरी एफिड़ा की उपर्युक्त जातियाँ भारतवर्ष के विविध भागों में उपजती हैं। जैसे- बशहर, चकराता, काँगड़ा, कुल्लू, बलूचिस्तान, काशमीर, हजारा, कागान, सीमान्त के अन्य प्रदेश और वजीरिस्तान प्रभृति विभिन्न स्थानों से एफिड्रा के नमूने लाकर उनका पृथक्करण किया गया, जिससे यह ज्ञात हुआ, कि उत्तरी-पश्चिमी भारतवर्ष के शुष्कतर प्रदेशों में, जो एफिडा पाया जाता है, उसमें क्षारोद की प्रतिशत मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है । यहाँ तक कि अनेक दशाओं में चीन देशीय एफिड्रा के भेदों से भी बढ़ जाती है । इसकी भारतीय जातियों में दारोदीय प्रभावात्मक
अर्थात् एड्रीन ( Ephidrine ) के विचार से एफिड्रा नेब्रोसिस सर्वाधिक बलवत्तर है और एफिड्रा इण्टरमिडिया सबकी अपेक्षा निर्बलतम । इसकी भारतीय जातियों में एफिड्रोन का अनुपात उत्पत्तिस्थान की ऊँचाई के अनुसार नहीं बढ़ता घटता । हाँ ! किसी प्रदेश की वृष्टि के तारतम्य का श्रवश्य उस पर प्रभाव पड़ता है ।
लेफ्टिनेन्ट कर्नल चोपड़ा और उनके सहकारियों ने सन् १६२६ ई० में एफिड्रा के दो भेदों का निरीक्षण किया था, जो झेलम की घाटी से लगी हुई पर्वत श्रेणियों पर एक दूसरे की बगल में खड़े थे | एफिड्रीन के विचार से ये अवश्य ध्यान देने योग्य हैं । यद्यपि दोनों में एफिड्रोन और तद्वत् दूसरे खारे प्रभावात्मक अंश ( alkaloid) एवं स्युडो-एफिड्रोन का अनुपात परस्पर बहुत ही भिन्न है । उक्त दोनों भेद यह हैं
( १ ) एफिडा वल्गैरिस Ephedra Vulgaris या ए० जिरार्डिएना E. Gerardiana जिसे स्थानीय बोल-चाल की भाषा में जनूसर कहते हैं । यह सब लगभग सोधी खड़ी झाड़ हैं, जो एक-दो फुट से अधिक ऊँची नहीं होती । यह कुर्रम की घाटी के हरियाब जिले में भी १००० फुट की ऊँचाई पर और हिमालय पर्वत पर ८००० से १४००० हजार फुट की ऊँचाई पर पाया जाता है । पुनः सिक्किम की श्राभ्यन्तरस्थ पहाड़ियों पर समुद्रतल से १६५०० फुट की ऊँचाई पर उपलब्ध होता है । इसमें कुल
•
एफिड्रा
क्षारीय क्रियात्मक सार का अनुपात ०.८ से १.४ प्रतिशत तक है, जिसमेंसे लगभग आधी एफिड्रोन और शेष स्युडो-एफिड्रोन अर्थात् नकली एफिड्रीन होती है । पतली टहनियों और तने के क्षारोद का अनुपात भी बहुत भिन्न होता । उदाहरणतः एफिडा वल्गैरिस के तने में जितने परिमाण में क्षारोद ( क्षारीय क्रियात्मक सार ) होता है, हरी टहनियों में उससे चौगुना क्रियात्मक सार पाये जायँगे और एफिड्रा इन्टरमीडिया में तो और भी अधिक अर्थात् लगभग छः गुना होंगे ।
(२) एफिड्रा इण्टरमीडिया Ephedra Intermedia को, एफिड्रा टिबेटिका (तिब्ब तीय ) Ephedra Tibetica जिसकी एक जाति है, सिंघ की बोल-चाल की भाषा में " हुम" वा "होम" कहते हैं । यह भी क्षुद्र सीधी झाड़ी है, जो चित्र की प्राभ्यन्तरिक घाटियों में, शुष्क पथरीले ढालों पर ४००० से ५००० फुट की ऊँचाई पर एवं गिलगित्त, जौसकर, ऊर्द्धचनाब और कँवार में ६००० से १००० फुट की ऊँचाई पर और बलूचिस्तान में भी उपलब्ध होती है। इस जाति में क्रियात्मक सार का अनुपात ०.२ से १० प्रतिशत तक होता है, जिसमें से ००२५ से २०५६ प्रतिशत तक एफिड्रीन और शेष स्युडोएक ड्रोन होती है ।
1
टिप्पणी-कभी - कभी एफिडा जिराडिऐना और एफिड्रा इंटरमीडिया को एफिड्रा एकिसेटिना E. Equisetina समझ लिया जाता है, जो Agar पौधा है । परन्तु उत्तर कथित पौधे की लकड़ी कभी कड़ी नहीं होती तथा इसका तना भीतर से खोखला होता है और इसमें पत्ते भी अधिक लगते हैं और शीर्ष पर अन्तरग्रन्थियों के चतुर्दिक लिपटे रहते हैं। यह जाति चीनदेश में भी मिलती है।
एफिड्रा के फल, जड़ों और स्तम्भ में एफिड्रीन अत्यल्प होती है । केवल हरी शाखाओं में ही यह (क्षारोद ) प्रचुर परिमाण में होती है। हिम पात से पूर्व शरद ऋतु में ही इसमें वीर्य (alka loid) की अधिकता होती है । अस्तु, उक्त समय ही इसके संग्रह का उत्तम काल है ।