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________________ एफिड्रा लेटिन संज्ञाएँ हो सकती हैं इसी कारण हमने भी अँगरेज़ी पारिभाषिक संज्ञाओं कोही स्थिर रखना नितांत आवश्यक समझा । जिसमें कम से कम अंगरेजी जाननेवाले महानुभाव इस भूम से बचे रहें । हम यहाँ सर्व प्रथम इसके जॉर्ज वैट ( G. Watt ) द्वारा उल्लिखित भेदों का उल्लेख करते हैं, जो उन्होंने सन् १८६० ई० में निर्धारित किए थे। गिनती में वे सिर्फ़ ये तीन हैं— ( १ ) एफिड्रा वलौरिस Ephedra Vul. garis, Rich. (F1. Br. Indica ) जिसे एफिड्रा जिराडिएना B. gerardiana, Wall., एफिड जॉनोकिया Emonostachya, Linn. और एफिडा डिष्टेक्या भी कहते हैं । यह वह भेद है जिसके नाम हमने इससे पूर्व श्रमसानिया, चेवा, बुतशुर आदि बतलाये हैं । १७५८ यह छोटी सी, सीधी खड़ी झाड़ है, जो हिमालय पर्वत पर पाई जाती है। पश्चिमी तिब्बत से लेकर सिक्किम तक यह समशीतोष्ण हिमालय के शुष्क पथरीले प्रदेशों में एवं अधिक ऊँचाई पर भी बहुतायत से होती है । सिमला के उत्तर शालाई के पर्वतों पर जो न्यूनाधिक १०००० फुट ऊँचे होंगे, यह प्रचुर परिमाण में उपलब्ध होती है। (२) एफिड्रा पेचीक्लेडा Ephedra pa chyclada, Boiss. f E. Intermedica, Shrenk, and Meyer. ft कहते हैं। देश में यह 'हुम' वा 'होम' (फ़ारस ), 'गेहमा' (बम्ब० ) और श्रोमन ( पश्तु ) श्रादि संज्ञाओं से सुप्रसिद्ध है । यह एक ऊँचा झाड़ीदार पौधा है, जो पश्चिमी तिब्बत और हिमालय के शुष्क एवं पथरीले प्रदेशों में मिलता है । (३) एफिड्रा पेडंक्युलेरिस Ephedra p3duvcularis, Boiss को जिसे ए. ड्रा एल्टे E. Alte, Brand. और एफिड्रा अलेटा E. Alata, Meyer संज्ञा से भी अभिहित करते हैं, देश में कुचन, निक्किकुर्कन, बाटा, तंदल, स्तक, मंगरवाल, बदुकाई कहते हैं । यह भी खड़ा फाड़ीदार चुप होता है, जिसकी एफिड्रा शाखाएँ अत्यन्त पतली और कोमल होती हैं । यह सिंध, पंजाब और राजपूताने की पथरीली भूमि पर स्वयं उत्पन्न होता है । उपर्युक्त भेद के अतिरिक्त भारतवर्ष में इसकी यह दो जातियाँ और पाई जाती हैं, जो उतनी प्रसिद्ध नहीं हैं। जैसे - ( १ ) एफिड्रा फॉलिएटा Ephedra foliata, Boiss. ( Fl. Orient. ) और ( २ ) एफिड्रा जिलिस Ephedra fragilis ( Flowering Plants of Baluchistan, I. H. Barkhi]].)। ब्रांडीज़ ( Brandes ) महाशय ने स्वरचित इंडियन ट्रीज़ वा भारतीयवृक्षसंज्ञक ग्रन्थ में, जो सन् १९०६ ई० में प्रकाशित हुआ है, एकिड्रा के इन पाँच भेदों का, जो भारतवर्ष में पाए जाते हैं, उल्लेख किया है । वे थे हैं - ( १ ) एफिड्रा फालिएटा Ephedra foliata, Boiss. ; (२) एफिड्रा जिराडिएना E. Gerardiana. Wall. जिसका अन्यतम पर्याय एफिड्रा वल्गेरिस Epbedra vulgaris, Hook. ( Flora of British ladcia ) भी है; (३) एफिड्रा नेबोडेंमिस E. Nebrodensis, Tineo., (४) एफिड्रा इण्टरमीडिया E.Intermedia, Shrenk, & Meyer. और (५) एफिड्रा पेचिक्लेडा E. Pachyelada, Boiss. इनमें एका नेत्रोसिस तथा एफिड्रा जिराडिएना में कोई व्यक्त प्रधान अन्तर नहीं है । अस्तु, इनमें से प्रथमो को इसके द्वितीय भेद में ही सम्मिलित समझना चाहिए। इसी तरह इसका पाँचवा भेद कभी-कभी चतुर्थ भेद अर्थात् एफिडा इण्टरमीडिया का पर्याय समझा जाता है । परन्तु देहरादून के फारेष्ट - रिसर्च इन्स्टीटयूट के वनस्पति- श्रन्वेषक तीसरे भेद - एफिड्रा नेत्रोडेंसिस को दूसरे भेद - एफिड्रा जिरार्डिएना से भिन्न समझते हैं । एफिड्रा नेब्रोडेंसिस ब्लूचिस्तान के प्रदेशों में समुद्रतल से ७००० से १०००० फुट की ऊँचाई पर तथा बालतिस्तान और लाहौल में भी उपलब्ध होता है ।
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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