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________________ गूगल करणगूगुल जीरा । श्वेतजीरक । ( २ ) एक प्रकार का गुग्गुल । संस्कृत पर्य्याय— गन्धराज, स्वर्णवर्ण, सुवर्ण वंशपीत, सुरभि, पलङ्कष | कनक, गुण - कटु, उष्ण, सुगंधित, वातनाशक और रसायन है तथा शूल, गुल्म, उदराध्मान एवं कफ नाशक है । रा० नि० ० १२ । करणगूगल. करणगूगुल-संता पु०, दे० " कणगुग्गुल" । कङ्गन - [ कना० ] कनेर । करवीर । -संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ कंत्री | ककड़ी | महासनंगा । (२) सारिवा | अनंतमून | (३) बहुपुत्रिका । सतावर वा भुइँ अमला । रा० नि० व० २ | कजीर-संज्ञा पु ं० [सं० पु ं० ] ( १ ) सफेद जीरा | श्वेत जीरक | मद० ० २ । ( २ ) कृष्ण जीरा । रा० नि० । नि० शि० । I करणजीरक - संज्ञा पु ं० (सं० नी० ] ( १ ) छोटा ' जीरा । क्षुद्र जीरक । श० च० रा० नि० व० ६ । संस्कृत पर्य्या० - हयगन्धि और सुगंधि । भावप्रकाश के मत से काजीरक रूक्ष, कटु, उष्ण वीर्य, अग्निदीपक, लघु, धारक, पित्तवर्द्धक, मेधाजनक गर्भाशय शोधक, पाचक, बलकारक, शुक्रवर्द्धक, रुचिकारक, कफनाशक, चतु के लिये हित कर और वायु ज्वर, उदराध्मान, गुल्म, वमन तथा अतिसार रोग नाशक है । वि० दे० "जीरा” । ( २ ) श्वेत जीरा । सफेद जीरा । रा० नि० । नि० शि० । करणजीरा - सं० पु० [सं० कणजीरः ] सफेद जीरा । कणजीरक । सफेद जीरा | करण जीर्णा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] शुक्र जीरक | रा० नि० व० ६ । कनियोस - संज्ञा पुं० [सं० पु० ] गुग्गुल | गूगुल । रत्ना० । १६७४ काटीन. कणाटीर, कणाटीक से एक, जिसके होते हैं । यह चार डँसने से पित्त के रोग प्रकार का होता है । जैसे - त्रिकंटक, कुणी, हस्तिकक्ष, और अपराजिता । ये तोच्ण वेदना करनेवाले हैं । इनके काटने से सूजन, अंगों का टूटना, शरीर का भारी होना और देश की जगह काला पड़ना ये लक्षण होते हैं । सु० कल्पe । ( ३ ) इस नाम का एक कीड़ा । इसके काटने से विसर्प, सूजन, शूल, ज्वर और वमन ये होते हैं । तथा दंश स्थल श्रवसन्न हो जाता है । भा० । मा० नि० । I करणभक्ष, कणभक्षक-संज्ञा पुं० [सं० पु० ] भरत पक्षी । भरुही । श्याम चटक । भारिट पक्षी । बबई | रा०नि० व १६ । करणमुक्ता - सज्ञा स्त्री० [सं० नी० ] कणगुग्गुल । (?) पीत गूगुल । करणमूल - संज्ञा पुं० [सं० जी० ] ( १ ) पिप्पलीमूल । पिपरामूल (२) पञ्चतिघृत पांच कई चीजों से सिद्ध किया हुआ घी । करणवीरका - संज्ञा पुं० [सं० स्त्री० ] मैनशिल | मनः 1 शिला । ही संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] लताशिरीष । प० मु० । वल्लिशिरीष । करणा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] ( १ ) पीपल । पिप्पली । प० मु० |रा० नि० ० ६ । ( २ ) जीरक | जीरा । ( ३ ) सफेद जीरा ।शुक्र जीरक | ( ४ ) काला जीरा । कृष्ण जीरक । भा० पू० १ भ० । (५) कुम्भीर मक्षिका । यथा - कणा जीरक कुम्भीर मक्षिका पिप्पलीषु च । हारा० । कि । (६) वनपिप्पली । जंगली पीपल । (७) वनजीरक | वन जीरा । कडुजीरा । वनजीर । धन्व० नि० । नि० शि० । (८) अल्प | थोड़ा | नि० शि० । करणाग्रन्थि - संज्ञा स्त्री० [सं०] पीपलामूल । करणप्रिय संज्ञा [सं० पु० ] गौरेया चिड़िया । करणाच - संज्ञा पुं० [देश० ] केवाँच करेंच । कौंड | बाम्हन चिरैया । सूक्ष्म चटक | वै० निघ० । करणाजटा - संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० पिपरामूल । पिप्पलीमूल | वै० निघ० २ भ० अजीर्ण बड़वानल चूर्ण । ● करणभ - सज्ञा पु ं० [ स ० पु० ] ( १ ) एक प्रकार का पुष्प वृक्ष | रत्ना० । ( २ २) सुत के अनुसार चोबीस प्रकार के अग्नि--प्रकृति-- कोटों में कराटीन, करणाटीर, करपाटीक-संज्ञा पुं० [सं० पु०]
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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