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________________ व० कठशिम् १९६६ कठिन्यादिपेया कठशिम्-[बं०] कुडसम्बर (बम्ब०)। है । वि० दे० "तुलसी" भा० पू०१ भ० पु. (Canabalia virosa, W&a) कठसरैया-संज्ञा स्त्री० [सं० कटसारिका ] दे॰ “कट- | कठिण-संज्ञा पुं॰ [सं०] नर्तक । सरैया"। कठिन-संज्ञा पुं॰ [सं० नी० ] (१) यवानी,अजाजी, कठसेमल-संा पु० [हिं० काठx सेमल] सेमल | त्रिकटु और भूनिम्बादि द्रव्य । श०च०(२)स्थाली । की जाति का एक प्रकार का पेड़ । थाली । रकाबी । (३) गैरिक । पाषाण गैरिक । कठसेलो-[राजपु०] कटसरैया । पियाबाँसा । स्वर्ण गैरिक । रा०नि० व० ३ । कठसोला-सज्ञा पु० [हिं० काठxसोला] सोला को संज्ञा पु. [सं० पु.] बोहि धान्य । जाति की एक प्रकार की झाड़ी या छोटा पौधा जो | वि० [सं० वि०] (१) कड़ा। सहत । प्रायः सारे भारत, स्याम और जापान में होता है। कठोर । (२) स्तब्ध । रोका हुआ । मे० । बर्षा ऋतु में इसमें सुन्दर फूल लगते हैं। | कठिनपृष्ठ, काठनपृष्ठक-संज्ञा पु० [सं० पु.] कठा-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री.] हथिनी। करिणी। ___ कूर्म । कछुआ । बारवा । रा०नि० व० १६ । श००। कठिनफल-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] कैथे का पेड़ । कठाई-बर०] करिंग घोटा (मल०) कपित्थ वृक्ष । रा०नि० व० ११।। कठाकु-संज्ञा पुं॰ [सं० पु.] एक प्रकार का पक्षी। चिड़िया। कठिना-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री० ] (1) गुड़शर्करा । कठार-संज्ञा पुं॰ [देश॰ चुनार ] एक प्रकार का ___ गुड़ के नीचे पड़नेवाला दाना । मे० नत्रिक । (२) रतालू । कटार । कठूमर । काकोदुम्बरिका । गोबला। कठगूलर । कठारटी-[पं.] पाड़। रा०नि०व० ११। (३) शर्करा । शकर । कठाल-संज्ञा पुं० [ ] हुरहुर । चीनी। कठाली-[ राजपु० ] कटाई । भटकटैया । रेंगनी। कठिनिका-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] (१) खड़िया मिट्टी। कठालीगिडा-[कना० ] घोकुप्रार। घृतकुमारी । खड़ी। खटिका । हारा० । (२) स्थाली । कठालू-संज्ञा पुं० [हिं० काठ+भालू ] काष्ठालू । गाँठ हंडी। पालू । गैठो। कठिनी,कठिनीक-संज्ञा स्त्री० पु० [सं० स्त्री०, पु.] कठाहक-संज्ञा पुं० [सं० पु.] दात्यूह पक्षी । खड़िया मिट्टी । खड़ी । खटिका । २० मा०। प. ___ चातक । पनडुब्बा । (Agallinule) श०र०। मु.। त्रिका० मे० नत्रिक । कठिका-संज्ञा स्त्री॰ [सं० स्त्री.] (१) तुलसी का | ___ संस्कृत पो०-पाकशुका, अमिलाधातु, पौधा । (२) खड़िया मिट्टी। खटिका । छुही। कक्खटी;खटी,खड़ी,वर्णलेखिका,धातुपल और कठिवै० निध। निका । दे."खड़ी"। कठिञ्जर-संज्ञा पुं० [स० ०] (१) छोटी तुलसी | कठिनोपल-संज्ञा पु० [सं० पु.] एक प्रकार का का पौधा । अजंक वृक्ष । रा०नि० व०१०। शालिधान्य । कौसुम्भी शाली । रा०नि० व. (२) काली तुलसो । पर्णास । १६ । प-०-पास कुठेरक, लोणिका, जातुका, | कठिन्यादिपेया-संज्ञा स्त्री० [सं० स्त्री०] एक प्रकारका पर्णिका, पत्तर, जीवक, सुवर्चला. कुरुबक, वैद्यकोक्तपेय विशेष । योग यह है-खड़ियाप्तो०, कुन्तलिका, कुरण्टिका, तुलसी, सुरसा, ग्राम्या, मिश्री ४ तो०, गोंद ४ तो०, सौंफ २ तो० और सुलभा, बहुमञ्जरी, अपेतराक्षसी, गौरी, दालचीनी २ तो० इनको जौ-कुटकर एक सेर जल भूतघ्नी और देवदुन्दुभि । भावप्रकाश के के साथ किसी मिट्टी के बरतन में रात को भिगो मतानुसार कठिार कटु एवं तिक रस, उष्णवीर्य, दें। प्रातः काल छानकर इसे स्थिर भाव से पड़ा दाहकारी, पित्तकारक, अग्निदीपक और कुष्ठ, मूत्र- रहने दें। जब साफ़ पानी ऊपर निथर आवे, तब कृच्छ, रक्तदोष, पार्श्वभूल, कफ तथा वायुनाशक / उसे ही ग्रहण कर सेवन करें। इसके सेवन से
SR No.020062
Book TitleAayurvediya Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1942
Total Pages716
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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