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पारे और गंधक की कज्जली को गौ मूत्र कमाज़में और एरण्ड के तेल के साथ पीने से अण्डवृद्धि कमाजकका शीघ्र नाश होता है । वृ० नि० २० श्रण्डवृद्धि चि० । ( ३ ) स्याही |
कमाज़क़कमाजज
कज्ज्वल - संज्ञा पुं० [सं० क्ली० ] कज्जल । श्रञ्जन | सुरमा । कज़ ततून,
जूनून - [ फ़ा० ] अकरकरा |
श्राकरकरभ ।
क़ज्दी (जवी )- [ श्रु० ] एक पौधा । जिससे नमक बनाते हैं ।
कज्ज्त्रत
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क़दीर - श्र० ] राँगा । बँग । श्रर्ज़ीज़ ।
कज दुम - [ फ्रा० कज़ = टेढ़ा + डुम= यूँ छ ] ( १ ) बिच्छू । वृश्चिक । ( २ ) अकरकरा | क़... दुम जरारह - [ फ्रा० ] एक प्रकार का बिच्छू जो अपनी पूँछ जमीन पर घसीटता चलता है ।
नोट - बुर्हान ने भूल से जरारह की जगह ख्वारह लिखा है ।
क ....दुम दरियाई - [ फ्रा० ] दरियाई बिच्छू । नादेय वृश्चिक । सिंगी मछली ।
क...दुमबहरी - [ फ्रा० ] सिंगी मछली । कन: - [ फ्रा० ] तुख्म अंजुरह । कनहे दश्ती - [फा० ] लामजक । खवी इज़ख़िर । कप ( जब) रना - [ सिरि० ] धनियाँ । कक - [ फ्रा० ] जलाई हुई चाँदी । क़ीर | क़फ़ - [ ० ] क्रे करना । उगिलना | फेंकना । क़..फुकल्ब -[ श्रु० ] एक प्रकार का हृद्रोग जिसमें रोगी को ऐसा प्रतीत होता है, मानो उसका हृदय छाती से बाहर निकला श्राता है ।
कार्डिया Tachycardia श्रं । .क्र. जबः - श्र० ] रतबा । कजब:-[ ? ] उसारहे रोग़न ।
कब - [ फ्रा० ] एक प्रकार का रेबास । कबुन - [ काश० ] गावज़वाँ ।
म - [ श्र० ] ( १ ) पुरानी रूई । (२) दाँतों या दादों के किनारे से खाना | सूखी चीज़ खाना । दे० " ख. म" ।
कम - [ ० ] चिड़ा जैसी एक चिड़िया । नग़र । क्र.म क़रीश - [ श्र० ] चिलगोजा ( चाहे छोटे हों वा
1 ) ।
कनिकी, सी.
[मु.] भाऊ का फल | भावुक फल ।
कज़रः - [ फ्रा० ] एक सुगन्धिमय पौधा ।
] एक प्रकार का रेबास ।
कज़...रफ़ - [ फ्रा० ] एक प्रकार की घास जो इतनी दुर्गन्धित होती है कि यदि वह हाथ में पकड़ जाय तो चिरकाल तक उसकी दुर्गन्धि दूर नहीं होती । कवा - [ फ्रा कजवाँ -संज्ञा स्त्री० [ फ़्रा० ] एक सुगन्धिमय उद्भिज्ज जिसमें तना नहीं होता और उसमें पत्र जड़के समीप से निकलते हैं । प्राकृति में ये जर्जीर या तरामिरा के पत्तों की तरह होते और ये हरियाली लिये होते हैं । इनका सिरा गोल और नीचे का भाग घोड़ा कटवाँ होता है ।
नोट -- अरबी में इसे बलहे उत्रुजियः कहते हैं; क्योंकि इसमें उत्रुज श्रर्थात् बिजौरा नीबू की सी सुगंध आती है। इसे बकूलहे फ्रिल्फिल्यः इसलिये कहते हैं, कि इसके स्वाद में कालीमिर्च जैसी तीक्ष्णता होती है । इसको बादरंजबूया भी कहते हैं । यद्यपि बादरंजबूया वस्तुतः एक भिन्न चीज़ है ।
प्रकृति- उष्ण और रूस । हानिकर्त्ता — उष्ण प्रकृति को । इसका अत्यधिक उपयोग शिरःशूल एवं पेशाब में जलन उत्पन्न करता है । दर्पनसिकञ्जबीन और शीतल रखूब इत्यादि ।
गुणधर्म तथा प्रयोग - यह मनोल्लासजनक है। हृदय और श्रामाशयिक द्वार (क्रम मेदा) को शक्ति प्रदान करती, चिंता एवं उदासीनता को निवारण करती, ख़फ़क़ान सर्द को नष्ट करती, 'बिच्छू का ज़हर उतारती और हर प्रकार के शीतल विषों को गुणकारी है । यह शरीर में खूब गरमी पैदा करती है। ख़० श्र० ।
ह - [
० ] पिस्सू ।
क़ज्ह - [ श्र० ] ( १ ) कुते का पेशाब । श्वानमूत्र । (२) प्याज का बीज । (३) मसाला ! क़जिह. य्य:- [अ०] आँख का अंगूरी परदा । उपतारा । इ. नत्रिय्यः ( ० ) । कविकी, सी - [ वर० ] गर्जन से !