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औषध प्रमाण
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औषध प्रमाण
जतुकर्ण ने भी कहा है, कि "द्विगुणाः कुडवादयो द्रवाणाम्" इत्यादि।
नोट-यह द्विगुण करने की विधि उन वस्तुओं के लिये प्रयुक्त हो सकती है, जो श्राद् और शुष्क | दोनों अवस्थाओं में प्रयुक्र होती हैं और जो वस्तु केवल आर्द्रावस्था में ही प्रयुक्त होती है, उन्हें पा लेते हुये भी द्विगुण नहीं करना चाहिये ।
यथावासाकुटज कूष्माण्ड शतपत्री सहामृताः। प्रसारिण्यश्वगन्धाश्च शतपुष्पा सहाचराः॥ नित्यमाः प्रयोक्तव्या न तेषां द्विगुणं भवेत् ।
च० कल्प-चक्र-टीका । अन्यत्रापिवासा निम्ब पटोल केतकिबला कूष्माण्डकेन्दीवरी । वर्षाभू कुटजाश्वगंध सहितास्ताः पूतिगंधामृता ॥ मांसी नागवला सहाचरपुरौ हिंग्वार्द्र के नित्यशो । प्राह्याम्तत्क्षणमेव न द्विगुणिता ये चेत जातागणाः ॥
शाङ्गधरीयमान शाङ्ग धरोक्न मागधमान तथा कलिंगमान दोनों परस्पर सम हैं और उन दोनों का पल ४-४ तोले का है अर्थात् चरकोक्त मागधमान से शाङ्गधर के मागध तथा कालिंगमान दोनों श्राधे हैं. और सुश्रुत के कालिंगमान के बराबर हैं। यह श्रागे स्पष्ट होगा।
यथा-शाङ्गधरोक्न मागधमान-(जिसका वर्णन पूर्व में अपूर्ण ही छोड़ दिया गया था)। - सर्षप-१ यव (साधारण श्राकार का) ४ यव साधारण गुञ्जा (मध्यम आकार की तोल कर देखा गया है, ठीक है।) ६ गुजा=१ माषा ४ माषा%१ शाण ४ शाण=१ कर्ष।
चरकीयमागध परिभाषा इसका अभिप्राय यह हुआ, कि शाङ्ग धरोक्त मागधमान के एक कर्ष में मध्यम आकार की ६६ रत्ती हुई, जो अाजकल के ५ तोला के बराबर हुआ और इसका पल ठीक ४ तो० का बना । इसका अभिप्राय यह हुआ, कि शाङ्ग धर का माग
धीय पल सुथ त के कलिंगीय पल के बराबर है। (यह आगे स्पष्ट होगा) इसी प्रकार शाङ्ग धर का कलिंगीय पल भी ४ तोले के बराबर है । यथा__ १२ गौर सर्षप=१ बड़ा यव (यह भी बड़े यवों से तौलने पर ठोक बैठती है)। २ बड़े यव-१ बड़ी गुञ्जा (यह भी तोलने पर
ठीक बैठती है)। ८ बड़ी गुंजा=१ माषा १० माष =१ कर्ष ४ कर्ष =१ पल
इसका अभिप्राय यह हुआ, कि शाङ्गधर का कलिंगीय कर्ष ८० बड़ी गुजा का तथा पल ३२० बड़ी गुञ्जा का बनता है और आजकल का तोला भी ८० बड़ी रत्तियों के समान होता है। यह पीछे स्पष्ट कर दिया गया है, कि एक तोता में मध्यम श्राकार की ६६ गुजाएँ तथा बड़े आकार को सिर्फ़ ८० गुमाएँ ही होती हैं। अतः अब सिद्ध हो चुका कि शाङ्गधर का कलिंगीय कर्ष भो १ तोला का तथा पल ४ तोले का ठीक बैठता है। अतः शाङ्ग धर के मागधीयमान तथा कलिंगीयमान में कोई भी भेद नहीं और यह दोनों सुश्रुत मान के बराबर (आगे स्पष्ट होगा) तथा चरकीय मागधमान से प्राधे हैं।
नोट-अब शाङ्गधर मान की भी आधुनिक मान से तुलना करने के लिये पूर्ववत् चरकीय मानवत् भाग और बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार शाङ्गधर का पल १ छटाँक के बराबर और कर्ष १६ तोले वा श्रीस के बराबर हो जायगा । यदि हम इसको भी द्विगुण करले, यथा-पल-दो छटांक तथा कर्ष २॥ तोले या १ ओस, तो योगों की वस्तुओं की मान Ratio में कोई भी अंतर नहीं पड़ सकता । अतः हम सब योगों (चाहे वह सुश्च त के हों वा चरकादि) के लिए एक ही मान परिभाषा निर्धारित कर सकते हैं। और वह है चरकीय मागधमान परिभाषा। क्योंकि पूर्वजों ने भी इसी की अधिक प्रशंसा की है।
शाङ्गधर मान परिभाषा पल से आगे प्रायः चरक सुश्रुत मान परिभाषा के समान है । अतः उसका
और पुनः विशेष वर्णन दुहराने की कोई आवश्यकत प्रतीत नहीं होती।