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औषध प्रमाण
१८६३
औषध प्रमाण
श्रागे सब मानों में क्रमशः 1 भाग जोड़ देने से अाधुनिक मान से निम्न लिखित समता होगी। २ माणिका प्रस्थ=२ सेर ४ प्रस्थ१ श्रादक-5 सेर अाधुनिक
पर्या–पात्र, कंस, भाजन ४ श्रादक=१ द्रोण=३२ सेर अाधुनिक
पर्या-श्रमण, नल्वण, कलश, उन्मान २ द्रोण=१ शूर्प, कुभ=६४ सेर अाधुनिक २ शूर्प-१ गोणी१२८ सेर अाधुनिक प-०-खारी, भार
नोट-गोणी बोरी को कहते हैं और गोणी (बोरी) में प्राटा गोधूभादि वस्तु २॥ मन के लगभग पाती है। यदि आधुनिक मान से तुलना करने के लिए चरक के मान के साथ भाग न जोड़ा जावे, तो चरक की गोणी भी लगभग २ मन के करीब बनती है। हम अपनी सरलता के लिए सब मानों के साथ 1 भाग जोड़ लेते हैं, जिससे कोई भेद नहीं पड़ता । आगे चरक में__३२ शूर्प=१ वाह ! भाग जोड़ने से ५१ मन ८ सेर के बराबर बनता है।
नोट-चरक के जिन योगों में कोई भी चीज़ पल से कम नहीं या पूरा पल हो, वहाँ सब द्रव्यों का मान भाग जोड़ने से जो मान ऊपर निकाला गया है, लेने में सरलता रहती है और यदि किसी भी योग में सब द्रव्यों के मान पल से कम हैं, तो भी उपयुन विधि से ही अर्थात् 1 भाग न बढ़ाकर कोल से १ तोला आदि ग्रहण करना चाहिये । और यदि किसी योग में पल से कम तथा पल से अधिक दोनों प्रकार के मान हों तो निम्नलिखित विधि से ताले । वाले द्रव्य यथा--
ऐसे योगों में पलमान या उससे ऊपर मान के | द्रव्यों के साथ भाग बढ़ाकर लिया हुआ होता है, इसलिये पल से कम अर्थात् कोलादि मानों के साथ भी भाग बढ़ाकर ही लेना चाहिये अर्थात् कोल से १ तोला न लेकर तोले या । औंस लेना चाहिये
और कर्ष से २॥ तोला या १ औंस । ऐसी समता किये बिना और कोई हल है ही नहीं। इन योगों
में जो वस्तु गिन कर डाली जाती है, यथा-५०० श्रामले या २०० हड़ें आदि। उनके साथ भी 1 भाग और बढ़ा लेना चाहिये अर्थात् ५०० के स्थान में ६२५ आमले तथा २०० हड़ों के स्थान में २५० हड़ें आदि। आगे चरक कल्पस्थान के १२ अध्याय में लिखते हैंतुलां पलशतं विद्यात्परिमाण विशारदः । शुष्कद्रव्येष्विद मानमेवादि प्रकीर्तितम् ॥
अर्थात् १०० पल तुला (चरक के वास्तविक मान के साथ भाग जोड़ने से तुला १२॥ सेर की बनती है)। चरक के इस श्लोक की दूसरी पंक्ति से स्पष्ट है कि यह मान केवल शुष्क द्रव्यों को तोलने के लिये बरतना चाहिये । बंगालो वैद्य, जो शुष्क द्रव्यों को तौलने के लिये प्रस्थ करके ४ सेर लेते हैं, वह सर्वथा युक्ति शून्य हैं। द्विगुणंतहवेष्विष्टं तथा सद्योद्ध तेषु च । यद्धिमानं तुला प्रोक्त पलं वा तत्प्रयोजयेत् ।। अनुक्त परिमाण तु तुल्यं मानं प्रकीर्तितम् ।
च. कल्प १२०॥ अर्थात् द्रव (तरल) तथा सद्यः उद्धत (आई व सरस) द्रव्य लेना हो, तो उस दिए हुए परिमाण से द्विगुण लेना चाहिये। यथा, १ प्रस्थ बादाम कहने से २ सेर लिये जावेंगे। परन्तु १ प्रस्थ घृत कहने से 'द्रव' होने के कारण ४ सेर लिया जावेगा । और यदि गोक्षर कहा जावे और उसे सूखी प्रयोग करनी हो. तो १ प्रस्थ के स्थान में २ सेर और यदि गीली प्रयोग करनी हो, तो १ प्रस्थ के स्थान में ४ सेर लेनी चाहिये।
चरक के उपयुक्त श्लोक में लिखा गया है, कि •जिस योग में तुला या पल मान में द्रव या अन्य
भाई द्रव्य लेने लिखे हों, वहाँ किसी को भी द्विगुण नहीं करना चाहिये अर्थात् १ पल घृत से द्रव होने पर भी एक पल ही घृत लेना चाहिये। __कई प्राचार्यों का मत है, कि द्रव द्वैगुण्य परिभाषा कुडव से ऊपर ही करनी चाहिये । कुडव से नीचे तरल होने पर भी द्विगण नहीं करना चाहिये । तथाहिरक्तिकादिषु मानेषु यावन्न कुडवो भवेत् । शुष्के द्रवायोश्चैव तुल्यं मानं प्रकीर्तितम् ।।