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औषध प्रमाण
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श्राज क्योंकि चक्रपाणिके समय का मान भी प्रचलित नहीं है, श्रत: चक्रपाणि के मान की सहायता से हम आधुनिक काल के मान से चरक तथा सुश्रुत के मान की तुलना करेंगे । चाहे चरको मान शार्ङ्गधरो मागधमान से न मिले; परन्तु यह दोनों ही ठीक हैं। शार्ङ्गधर ने अपनी पुस्तक में यह कहीं भी नहीं लिखा कि मागधमान से अभिप्राय चरक का मान और कलिंगमान से अभिप्राय सुश्रुत के मान से है । श्रतः शार्ङ्गधरो मागधमान को चरक का मान तथा कलिंगमान को सुश्रुत का मान कहना ठीक नहीं । परन्तु मागधमान तथा कलिंगमान देश के आधार पर हैं, काल भेद से ही इन दोनों मानों में चरक सुश्रुत और शार्ङ्गधर का मतभेद है ।
शार्ङ्गधर ने मागधमान का वर्णन करते हुए ६ वंशी से १ मरीचि, ६ मरीचि से १ राई और ३ राई से १ सर्षप अर्थात् १०८ वंशी का १ सर्षप माना है, यथाषड्वंशीभिर्मंरीचिःस्यात्ताभिः षडभिस्तुराजिका। तिभी राजिकाभिश्च सर्षपः प्रोच्यते बुधैः । शा० श्र० १ श्लो० १८ ।
परन्तु चरक में ३६ वंशी का १ सर्षप ग्रहण किया है । यथाषड्वंश्यस्तु मरीचिः स्यात्षण्मरीच्यस्तु सर्षपः । अष्ठौ तेसर्षपाः रक्तास्तण्डुलश्चापि तद्वयम् ॥
च० कल्प १२ अ ।
इस प्रकार चरक और शार्ङ्गधर के मत में स्थूल दृष्टि से भेद प्रतीत होता है । परन्तु चरक का सर्षप से अभिप्राय छोटी रक्कसप (राई) से ही है । क्योंकि उससे तोलने पर मान ठीक उतरता है । चरक के उपर्युक्त श्लोक में 'रक्का' शब्द श्राया है, जो सर्षप का विशेषण है, जो उस श्लोक के दूसरे चरण से ही स्पष्ट हो रहा है । चक्रपाणि भी इस श्लोक की टीका करते हुए लिखते हैं कि, "का" इति सर्वपाणां विशेषणम्" ( च० टी० १२० ) | नव परिभाषाकार ने चरक के इस श्लोक को अपनी पुस्तक में देते हुये 'रक्का' के स्थान पर 'र' ऐसा शब्द बना दिया, जो तण्डुल का पर्याय है । वहाँ का शब्दका अर्थ गुआ
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नहीं, क्योंकि चरक में गुञ्जाश्रों द्वारा तोल वर्णित नहीं है और गुआ द्वारा तोलने की प्रणाली चक्रपाणि के काल से ही प्रचलित हुई प्रतीत होती है । पर वस्तुतः रक्ति शब्द तण्डुल का पर्यायवाचक श्राज तक किसी कोष में दृष्टिगोचर होते नहीं दिखाई देता । नवपरिभाषाकार को रति शब्द से तण्डुल का पर्याय बनाने की चेष्ठा व्यर्थ मालूम पड़ती है । चरक का सर्वप से अभिप्राय छोटी रक्त सर्षप (राई) से है और शार्ङ्गधर का सर्वप से अभिप्राय बड़ी रक्त सर्वप से या सम्भवतः गौर सर्षप से है, जो तोलने से शार्ङ्गधर के मतानुसार ३ राई के बराबर होती है । अतः चरक को छोटी रक्त संबंध में ३६ वंशी और शार्ङ्गघर की बड़ी रक्कसर्पप में १०८ वंशी हो सकती हैं ।
शार्ङ्गधर काप (बड़ी ) १ यत्र के बराबर है । ४ यव= १ गुञ्जा । ६ गुञ्जा = १ माषा । माषा यवादि की भाँति किसी वस्तु का नाम नहीं, अतः यह शार्ङ्गधर के काल में आजकल के सेर आदि की तरह कोई रूदि बाट प्रचलित होगा । मूल से यह स्पष्ट मालूम होता है ।
यथा
यवोऽष्टसर्षपैः प्रोक्तोगुञ्जास्यात्तश्चतुष्टयम् । षड्भिस्तु रक्तिकाभिः स्यान्माष कोहेमधान्यकौ ॥ शा० १ ० १६ श्लो० । चरक के मान का विवेचन निम्न है:८ रक्त सर्षप ( छोटी ) - १ तण्डुल ( बड़ी सौगन्धिक ( वासमती) चावलों को तोलने से १ चावल छोटी रक्रसर्षप के बराबर होता है ) ।
२ तण्डुल = १ धान्य माष ( यह भी छोटे कार के कृष्ण उदों के साथ तोलने से ठीक बैठता है । )
२ धान्यमाष= १ यव ( यह भी तोलने पर ठता है ।
४ यव= १ श्रएडक, ४ अण्डक= १ माषा । यह बाट यवादिकों की तरह किसी वस्तु विशेष के नाम पर नहीं, किन्तु रूदि प्रचलित हुआ प्रतीत होता है। इससे श्रागे शार्ङ्गधर का मान पश्चात् वर्णन किया जायगा । प्रथम चरक के शेष मान का वर्णन किया जाता है। लेख