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औषध प्रमाण
औषध प्रमाण
१८६० वर्तमान तौल तथा प्राचीन तौल की।
परस्पर तुलना (अ) चरकीय मान वर्तमान मान ३ रत्ती१ वल्ल......... ...........३ रत्ती x१० रत्ती-१ माषा ... १ माषा-१० रत्ती ३ माषक-१ शाण.........३॥" =३० रत्ती (४ माषा: निष्क)......५" .......... २ शाण द्रंक्षण.........७॥"320 श्राने भर २ द्रंक्षण=१ कर्ष............१५"। तो० ४ कर्ष=१ पल............५ तोले=१ छटाँक ४ पल=१ कुडव.........४ छटाँक-१ पावसेर ४ कुड़व=१ प्रस्थ.........१ सेर=(८० तो०) ४ प्रस्थ=१ आढक............... ४ सेर ४ श्राढक-१ द्रोण ...............१६ सेर २ द्रोण=१ सूर्प...............३२ सेर २ सूपं-१ भार..................६४ सेर ३२ सूर्प=१ वाह......१०२४ सेर-( २५॥४) १०० पल तुला...............६। सेर (ब) शारंगधरोक्त मागधमान वर्तमान मान
सरसों-१ यव...... ४ यव-१ रत्ती........................१ रत्ती ६ रत्ती-१ माषक......... ..........६ रत्ती ४ माषा-१शाण.....................३ माषा २ शाण=१ कोल............६ माषे( तो०) २ कोल-१ कर्ष.....................१ तो० २ कर्ष१ शुक्ति.....................२ तो. २ शुक्रि-१ पल.......... .........४ तो० २ पल% प्रसूत.....................८ ता० २ प्रसृत१ कुडव.......... ...........१६ तो २ कुडव-१ शराव.....................३२ तो० २ शराव31 प्रस्थ......... ..........६४ तो० ४ प्रस्थ-१ अाढक...............३ सेर १६ तो० ४ श्राढक-१ द्रोण............१२ सेर ६४ तो+ २ द्रोण=१ शूर्प............२५ सेर ४८ तो. x यद्यपि चरक और सुश्रत में रत्ती का उल्लेख नहीं है.परन्तु सभी विद्वान इस विषय में सहमत हैं कि चरकोक्त माषा १० रत्ती का माषा है एवं विद्ववर्य चक्रपाणि ने लिखा है कि तौलने पर चरकाक्त माषा १० रत्ती के बराबर सिद्ध होता है। +१ सेर-८० तोले।
२ शूर्प-१ द्रोणी............५१ सेर १६ तो. ४ द्रोणी-१ खारी............२०४ सेर ६४ तो० २००० पल-१ भार..................१०० सेर १०० पल=१ तुला.......... .........५ सेर
वक्तव्यकठिन, तरल, ताप, दीर्घ, काल और देशप्रान्त भेद से भिन्न-भिन्न प्राचार्यों के मतानुसार द्रव्यमान में महान अन्तर प्रतीत होता है । यथाचरक का मान सुत के मान से द्विगुण है। एवं शाङ्गधर, रसरत्न समुच्चय, रसतरंगिणी, भैषज्य रत्नावली श्रादि गंथों में भी मानपरिभाषाओं में अन्तर है।
अन्तर होना स्वाभाविक है। आजकल भी एकाधिपत्यराज्य स्थापित होते हुये भी भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ प्रचलित हैं। इसी प्रकार कालिंग तथा मागधमान से अभिप्राय भिन्न-भिन्न काल में मगध (विहार) और कलिंग देशों (उड़ीसा) में होनेवाले मान से ही है । चरक या दृढ़बल के काल में जो मान मगध देश में प्रचलित था, उन्होंने उसे ही अपने ग्रन्थ में उद्धृत किया है। सुश्रुत के काल में जो मान कलिंग देश में प्रचलित था, उन्होंने उसे ही अपनी पुस्तक में उद्धत किया। उसके अनन्तर शाङ्गधर के काल में जो मान मगध देश वा कलिंग देश में प्रचलित था, उसे शाङ्गधर ने अपनी संहिता में उद्धत किया। चक्रपाणि के काल में इन देशों में और ही मान प्रचलित था। यह चक्रपाणि निर्मित चक्रदत्त के ज्वराधिकार में स्पष्ठ है । क्योंकि चक्रपाणि ने चरक और सुश्रुत के प्रायः सब श्लोक और योगादि उद्धृत किये हैं। अतः उन्होंने चरक और सुश्रुत के सारे मान के साथ अपने काल के मान की तुलना करदी है।
चरकोक मान, सुश्रतोत्र कलिंगमान से द्विगुण सिद्ध है। अतः किसी योग को चाहे चरकोक्र विधि से बनाएँ या सुश्रुतोक्न विधि से, परन्तु उसके मान अनुपात में कोई भेद न होगा। ___ यह हो सकता है कि योग सुश्रुत का हो और हम उसे चरकोक विधि से निर्माण करें, तो योग द्विगुण बन जावेगा, परन्तु योगस्थ द्रव्यों के मान अनुपात में कोई अन्तर नहीं आवेगा।
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