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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थ अश्वत्थ होता है। शर्वत अर्क गुन्नाब में पीने से हौलदिल में लाभ ६ मासा, इन तीनों प्रोषधियों को कूट छानकर चने के बराबर गोलियाँ बांधकर रख छोड़ें। पोपल के पत्तो को सुहागे में शुष्क करके, आवश्यकता होने पर १ गोली गर्म पानी या समा अरबी ( वर निर्यास), सत मुलहठी सौंफ के अर्क के साथ सेवन करने से यह मूत्रल है और मिश्री इनको कूट छान इसका चने के और वृक शूल के लिए हितकर है तथा कोष्ठबन्ता बराबर गोलियाँ बनाएँ । इसको मुख में रखकर | एवं बादी को बहुत कुछ लाभ प्रदान करता है। चूसने से खांसी, गले की सूजन प्रभृति को लाभ पीपल के पत्तों को काली मरिच के साथ पीस होता है। कर मरिच प्रमाया वटिकाएँ प्रस्तुत कर सेवन करने से भी उपयुक्र लाभ होता है। पीपल के ताजे पत्ते २ तो०, कालोमरिच ११ __पादशोथ में इसके पत्तों की लुपड़ी बाँधना अदद, दोनों को पाक भर पानी में रगड़ और छान हितकर है। कर प्रात: सायंकाल पिलानेसे कुष्ठ रोग नष्ट २॥ अदद पीपल के पत्तों को खूब घोटकर होता है। छोटी इलायची और बतासा डालकर पाव भर पीपल के पत्र एवं पत्र स्वरस का येनकेन प्रका पानी में मिलाकर प्रातः सायं पान करने से मूत्ररेण व्यवहार अतिशय लाभप्रद है। दाह दूर होता है। पीपल के पत्र का रस १ छ०, तिल तैल श्राध पटॉक इसको तैलाशेष रहने तक पकाएँ। पीपल के नव पल्लव को लेकर बारीक बारीक फिर छान कर रखें । इसके लगाने से कंठमाला चीरलें। फिर इनको उबाल लें। उबालने से जो दूर होता है। पानी निकले उसमें शकर डालकर चाशनी बनाएँ पीपल के कोमल पत्तो को जल से धोकर इसे और चाशनी में उबाली हुई कॉपलें डालकर घी में भूनकर और आवश्यकतानुसार काली : मुरब्बा तैयार करलें । गुण-यह अत्यंत वल्य मरिच और नमक का चूर्ण मिला सुबह शाम । एवं वृहण है। सेवन करने से बन्ध्यस्व दूर होता है। लगभग पीपल के पत्तों का रस समिपात की औषधे एक मास पर्यंत सेवन काफी है। अपथ्य-६ मास का एक अनुपान है पर्यंत पुरुष समागम और रजोधर्म काल में हलदी पीपल के पत्तों के साथ में सिद्ध किया का सेवन । हुमा कडुश्रा तैल हर प्रकार के कर्णशूल के पीपल के पीले पत्तों का, सत्व-निर्माण विधि लिए लाभप्रद है। उस्कट ज्वर के उतरने के द्वारा सस्व प्रस्तुत कर २-२ पत्ती की मात्रा में पश्चात् की रूक्षता जन्य वधिरतामें यह बैल और इसको जल वा गोदुग्ध के साथ सेवन करने से भी लाभदायक है कंठमाला को लाभ होता है। नोट-खरल करते छाया में शुष्क किए हुए पीपल के पत्तो' को समय चिकना करने के लिए इसमें किञ्चित् गोघृत कूट छान कर गुड़ के साथ इसकी चने प्रमाण मिना लेना चाहिये । गोलिया बनाकर सेवन करने से निम्न रोगों में पीपल के पतों को खूब घोटकर वर्तिका बना लाभ होता है, यथा-उदरीय कृमि, उदरशूल रजोकाल में इसके योनि में रखने से प्रार्तव श्रामशूल, प्लीहा, शोथ, अजीर्ण और कोष्ठबद्धता प्रवर्तन होता है। इत्यादि। इन रोगों के होने पर 1-1 गोली अश्वत्थ पत्र का अर्क दो तो० की मात्रा में प्रातः सायं अर्क सौंफ के साथ सेवन करें। पीना हौलदिल के लिए लाभदायक है। इसके हरे पत्तो' के गरमागरम क्वाथ द्वारा छाया में शुष्क किए हुए पीपल के पत्ते ६ सेक करने और पत्तो' को रोग स्थल पर बाँधने मासा, पहाड़ी पोदीना ६ मा०, मस्तगी रूमी | . से खु नाक में लाभ होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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