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अश्वस्थ
भरवत्य
पानी ) के साथ इसके परो खिलाकर दूध दूहें तो वह अधिकतर लाभदायक होजाता है। पत्र वायु. नाशक हैं। इसकी पत्तियों को पानी में पीसकर ललाट पर प्रलेप करने से खूब नींद पाती है। प्रामाशय शोथ में उक्र स्थल हर पत्तियों का प्रलेप वा क्वाथ का उपयोग अत्यंत खाभप्रद
और स्वाद हेतु उसमें यथेष्ट शर्करा योजित करें।। यह अत्यन्त पोषक एवं शीतल प्रातःकालीन पेया है। विपादिका में इसका स्वरस हितकर है इसके पत्र पर रेशम के कोट रक्खे जाते हैं। इसके पत्र का काथ चमड़ा सिझाने के काम आता है।
(ई० मे० मे०) इसके पत्र को गरम करके फोदे पर बाँधने से यह शोध लयकर्ता और प्रणपूरक है । स्वयं शुक होकर गिरे हुए पत्र को जलाकर गरमागरम पानी ! में डालकर उस पानी को पीने से वमन तथा हल्लास में लाभ होता है । म० मु० । बु. मु.।।
पतझड़ के समय साधारणतः फागुन चैत में जब । पुराने पत्र मड़ जाते हैं और पत्रमुकुल का प्रावि र्भाव दोता है, तब उन पत्र-कृतिकात्रों को क्वथित कर जख फेंक देते हैं. जिससे कषायपन
और अग्राम अम्लता दूर हो जाती है। फिर किञ्चित् लवण छिड़क कर थोड़े समय धूप में उसका जलांश सुखा लेते हैं और सर्षप तैल में
डालकर अचार बनाते हैं। . गुण-सुस्वादु होने के सिघा यह विशूचिका एवं महामारी को नष्ट करता, विकृत दोषों को सास्यावस्था पर लातः और आधा की वृद्धि करता है। ज्वर जन्य अरुचि को दूर कर शीघ्र थाहार
| का पाचन करता और मुख का स्वाद ठीक करता है।
अश्वत्थ की पुरानी पत्तियों को पानी में पीस कर क्षत पर प्रलेप करने से प्राचीन से प्राचीन लत दिनों में पूरित हो जाते हैं। पत्तियों को जलाकर पानी में डाल दें और जब वह तनस्थायी हो जाए तब वह स्वच्छ जल विशूचिका रोगी को पिलाना लाभप्रद है।
कष्ठी को इसकी पत्तियों से क्वथित कोच्या जल से दैनिक प्रवगाहन करना लाभप्रद है और छाल को पानी में डाल कर पानी पीना तृषा एवं हल्लास को शमन करता है।
पीपल के पतों का क्वाथ बकरी के दूध के | साथ अधोंष्ण देने से पूय मेहो को मनुष्य बनादेता । है और वर्षों की व्यथा मिनटों में जाती है। ।
बकरी को माउज टन (फाड़े हुए दूध के
पत्रभस्म को मधु के साथ मिलाकर चटाने से श्राद्रकास नष्ट होता है। पत्र का वायवृत एवं वस्त्यश्मरीनाशक है । प्रकृति तीसरी कक्षा में रूप एवं दूसरी में शीतल है।
छाया में शुष्क किए हुए पत्र १ तो०, बहुफली बूटी छाया में शुष्क की हुई तो०, कतीरा ६ मा०, सालबमिश्री ६ मा०, इनको कूट छान कर पीपल के दूध में गूंधकर जंगली बेर के बराबर बटिकाएँ प्रस्तुत करें । चना भिगोए हुए पानी के साथ से ३ गोली तक दैनिक २१ दिवस पर्यन्त सेवन करें।
गण-यह कामावसाय, शुक्रप्रमेह एवं पूयमेह में असीम गुहकारी है।
इसके पत्र को तिल तैल से सिक्त कर गरम कर शोथ पर बाँधे तो यह उसे लयकर्ता है और यदि फोड़ा पकने योग्य हो तो उसे पकाकर विदीण कर देता है। किसी किसी के मत से इसकी राख में पीत हरिताल एवं मल्ल की भस्म प्रस्तुत होती है। परन्तु यह परीक्षा में नहीं प्राया है।
पीपल के नाम पत्र को गरम गरम पंजा से पिएडल्ली तक बाँधने से बध्यत्य दूर होता है।
इसके पत्ता को गर्म करके सीधी ओर बैंधने से बद दैा जाता है।
इसके अोर नीम के पत्तों को पीस कर ले। करने से मर्श मिटता है वा केज पोपलके परी को घाटका बवासीर के मस्सों पररखने से खाभ होता है।
पीपल के पत्तों का पानी निकाल कर तिगेनी मिश्री में शर्मत तैयार करें । प्रति दिवस २ तो.
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