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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थ पीपल के पसे ५, नीबू के पत्ते ५ और निगु.. चत के धावनार्थ एवं लालास्राव में कवलार्थ एडी पत्र . इन तीनो में | सेर पानी डाल. व्यवहार में प्राता है! कर खूब कथित करें । थोड़ा जल शेष रहने पर (मेटिरिया मेडिका प्रॉफ इरिढया--आर० एन० खारी २ य खण्ड, ५५६ पृ०) इससे (क्वाथ से ) दूना तिल तेल मिलाकर अश्वस्थ स्वक् का क्वाथ तथा फांट पिलाना तैलावशेष रहने तक पकाएँ।। · पूयमेह, मूत्रकृच्छ एवं पाद्र करा में हितकारक गण व प्रयोग--यह तैल कर्ण शूल, कर्णः | क्षत एवं वधिरता के लिए हितकर है.। कान ___ अश्वत्थ चूर्ण को अंकुरोत्पादन हेतु विकृत से पूयस्त्राव होताहो तो प्रथम उसको निम्ब क्याथ | .. इतों पर छिड़कते हैं । छान. चमड़ा सिमाने के से प्रक्षालित कर फिर इस तेल के ४- १. द : . काम में आती है । ( ई० मे० मे.) . . रूई के फाया पर डाल कर इसको कान में इसकी छाल संग्राही है और विकृत. तों रखें। इससे लाभ होगा। __ एवं कतिपय चर्म रोगों में इसका उपयोग होता है। (इं० ३० ई.) अश्वत्थ त्वक् . अश्वस्थ स्वक् संग्राही है और पूयमेह में | अश्वत्य की शुष्क छाल के चूर्ण को अतसी इसका उपयोग होता है। इसमें पोषक गण भी तेल के साथ प्रयुक्त करने से यह प्रणपूरक है। है । ऐन्सली तथा वाइट)। श्राद कण्डू में | इसकी छाल को पानी में डालकर उस पानी इसकी छाल के फांट का अन्तः प्रयोग होता है। के पीने से हल्लास एवं तृपा तत्काल प्रशमित होती है। इसकी छाल (वा मूल स्वक् ) का प्रादाहिक शोथों में इसके विचूर्णित स्वक का प्रलेप नाहीव्रण ( नासूर ) के लिए हितकर और कल्क आघोषक ( A bsorbent) रूप से शोध लयकर्ता है। व्यवहार में प्राता है । ( इमर्सन) इसकी छात को पानी में पीस कर लिंगेन्द्रिय ' इसकी छाल को जलाकर उसे गरम गरम पर प्रलेप करें। सूख जाने पर उस जल से जल में डाल दें। कहा जाता है कि यह पानी धोकर स्त्री-संग में प्रवृत्त होने से यह आश्चर्यहठीले कास में लाभदायक है। (डॉ. ध्रॉएटन) जनक वीर्य स्तम्भन करता है। और मनुष्य को इसकी शुष्क छाल का चूर्ण भगंदर में प्रयुक बेवश बना देता है। होता है। मैंने एक हकीम को इसका लाभपूर्ण पीपल वृक्ष की छाल को जल में घिस कर उपयोग करते हुए पाया। प्रयोग-विधि निम्न है यदि प्रारम्भ में ही फुसियों पर प्रलेप करें तो . एक धातु ( वा किसी अन्य पदार्थ) की नली ग्रह उनको जला देता है और बढ़ने नहीं देता। में किञ्चित् अश्वस्थ चूर्ण को रख कर भगन्दर किसी किसी समय वृद्धि की दशा में लगाने से के शत के भीतर दूंक द्वारा प्रविष्ट करदें। फोड़े को अपनी जगह बिठा देता है। नाड़ी-बण के क्षत के लिए इसकी छाल को (वैट) बालक के प्रोष्ठ, जिह्वा, तालु किम्वा मुख के . घृतकुमारी के पीले रस में घिसकर तिप्लत भीतर दधि विन्दुवत शुभ्र क्षत होने पर वा . कर न सूर में रखने और उसके चारों ओर प्रलेप साधारण मुख क्षत में मधु के साथ अश्वत्थ चूर्ण करने से थोड़े ही दिवस में नासूर को अच्छा कर देता है। का प्रलेप करें। श्वास रोग में अश्वत्थं चूर्ण | : मधु के साथ सेवनीय है। अश्वत्थ स्वक साधित पीपल वृक्ष की छाल का जौकुट करके.एक धड़े तैल श्वेतप्रदर तथा प्रामरतातीसार में अनुवा- | . में भरदें और मुख बन्द करके इसको एक गढ़े में सन वस्ति रूप से और इसका क्वाथ विकृत रक्खें । इस गड़े के भीतर एक और छोटा सा For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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