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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्रवृद्धि मन्यवृद्धि तक-उ० 1 फन्नुल इस्तहियाई-अ०। प्युडेराहुल हर्निया Pudendal hernia इस प्रकार की वृद्धि में वसा वा अन्धका कोई भाग गुह्यन्द्रिय की भोर उतर पाता अर्थात् उभर आता है। (.) जठरस्थ वृद्धि-वेण्ट्रल हर्निया . Ventral hernia-इं० । __ यह वृद्धि नाभि के ऊपर होती है। दखने वाली वृद्धि वपने पाला फ्रतक-उ०। प्रतक गिमाजी -अ०। रेज्युसिबल हर्निया Reducible hernia-इं। इस प्रकारकी वृद्धि चित लेटने पर पाप ही या हाथ से उसको (प्रांत्रवृद्धि को) विन्यस्त करने पर दूर हो जाती है, केवल उस समय के जब प्रीवा का मुख बंद हो या तंग ! खाँसने या खदे होनेकी दशा में वह फिर प्रकट होती है। रोगी के खासते • समय यदि शोथस्थल पर हाथ रक्खा जाए तो बह फैलता हुश्रा मालूम होता है। खाँसने से शोथ पर एक तरंग सी मालूम होती है। यह शोथ उदर की दीवार से जुड़ा हुआ प्रसोत होता पाशित वृद्धि में परिणत होकर अशुभ लक्षणों को उत्पन्न कर देती है। लक्षण-उदर में शूल, चूसनवत् पांचा, प्राध्मान, मलबद्धता इत्यादि नानाप्रकार के उपदब खड़े हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में. उस पैंतही को ऊपर स्वस्थान में पहुँचाने का प्रारम्भिक उपाय तो करना ही चाहिए, किन्तु साथ ही साथ उसमें शोथ न आने पाए इसका भी उपाय करते रहे। रोगी को अल्पाहार करना तथा परे रहना चाहिए । इधर उधर घूमना और खा रहना हानिकर है। शोथयुक्त वृद्धि सूजा हुमा प्रत्क, मुत्वम तक-उ० । तक यर्मी-१० । इन्फ्लेमा हनिया Infla. Imed heritna-इं। इस प्रकार की वृद्धि में उतरी हुई वस्तु (प्रांत प्रभृति ) में शोथ हो जाता है। प्रस्तु, विकारी स्थल पर सूजन होती और उसमें पीला, उष्णता तथा रतवर्णता हो जाती है और उदरक कक्षा के प्रदाह के लक्षण भी प्रारम्भ हो जाते हैं। सजन के बाद अवरोध के लक्षण उत्पन होजाते है। तीव्र वेदना होती और प्रायः न्यूनाधिक ज्वर, धमन, अजीर्थ मलबद्धतादि लक्षण हो जाते हैं। इसमें अन्य भाग विन्यस्त नहीं हो सकता है। अवरोधजन्य वृद्धि सुबह वाला (दार) प्रक-१० । फ्रक मुही -सका इन्कासिरेटेड हर्निया Incarcerated hernia-इं०। यह वृद्धि की एक अवस्था है जिसमें उतरी हुई वस्तु (प्रांत प्रभृति) कोष की प्रीवा में किसी प्रकारका अवरोध होने अथवा किसी अन्य कारण से उसका विन्यास नहीं हो सकता । उस में प्रत्यंत वेदना होती है। कभी कभी तीन उदापत्त के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। इस प्रकार की वृद्धि वृद्ध व्यक्रियों को हो जाया करती है। पाशित वा अवरुद् । मंत्रवृद्धि फँसा हुमा फ्रतक-उ० । मृतक इनितनाकी -१० । स्टैलेटेर हर्निया Strangulated hernja-ई । अंग्रवृद्धि होने की दशामें शोथ गोल, कोमल, और नमनीय( लचकदार ) होता है । हर्निया को विन्यस्त करने पर यदि भौत होगी तो गरगर शब्द करेगी और मटके के साथ उदर गहर के भीतर प्रविष्ट होगी। मेदवृद्धि होने पर उभार चपटा, ढीला और विषम होता है और विन्यस्त करने पर धीरे धीरे उदर में प्रविष्ट होता है।। न बने वालो वृद्धि न दबने वाला प्रतक-उ० । तत्क पासी - हरक्युसिबल हर्निया Irreducible bernia-९०। इस प्रकार की वृद्धि में उत्तरी हुई वस्तु (मंत्र प्रभृति) दबाने से अपनी जगह पर लौट नहीं जाती, अपितु दिन दिन बढ़कर विविध प्रकार के दुःखों का कारण होती है। इस प्रकार की वृद्धि - .. For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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