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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अण्डवेष्ट का निर्माण करता है। परन्तु जातज ग्रं वृद्धि में अण्डधारकरजु वाला उदरककला का भाग नष्ट नहीं होता। अतएव उदरक कला तधा अण्डवेष्ट के बीच रास्ता रह जाता है जिससे होकर उदर से वसा वा न उतर पाती ३-वृद्धावस्था में होने वाली (३) अंत्रवृद्धिांत का फस्क-उ० । फरक मिाई, फक मिश्रबी-अ० । इन्टैस्याह. नल हर्निया Intestinal hernia-1०। · यह वही प्रकार है जिसका वर्णन हो रहा है। आयुर्वेद में केवल एक इसी प्रकार की अन्त्रवृद्धि का वर्णन किया गया है । देखो-वृद्धिः । (४) सक्थि वृद्धि (ऊर्वन्त्र वृद्धि) रान का फरक-उ० । फरक फरजी-छ। फेमोरल हर्निया Femoiral hernia-ई० । ' इस प्रकार की वृद्धि में वंक्षण के बाहर ( उरु या जानु के ऊपरी भाग) की ओर उरु को नाली (Femoral Cana1) में वसा वा अंत्र बाहर को उभर पाती है। इस प्रकार का प्रत्क्र प्रायः स्त्रियों को हुआ करता है। जिस स्त्री के कई बच्चे हो गए हो उसको प्रायः यह विकार होता फोपयुक्त वृद्धि-कीसह दार फक-उ० । फरक युकस्स-१० ! इन्सिस्टेड हर्निया ( Incy. sted Hernia)-०। - यह भी एक प्रकार की जातज वृद्धि ही है जिसमें एडधारकरज वाच्छादक उदरककला का भाग एक पर्दे के कारण थैली बन जाता है। यह थैली साधारणतः अण्डवेष्ट के पीछे रहती है इस प्रकार की वृद्धि का जातज वृद्धि से निदान करना कठिन होता है। क्योंकि दोनों के लक्षण समाम होते हैं। स्थानानुसार इसके कतिपय अभ्य भेद होते है। जिनमें से प्रत्येक का यहाँ क्रमशः वर्णन किया जाता है, यथा. उदरीय वृद्धि-पेट का फरक-उ० । ... फरक बरनी,फ़रक मराकुलबार नी-अ०ा ऐल्डोमिनल fur Abdominal heruia-fo , हस प्रकार की वृद्धि में नाभि के गिर्द उदरक कला के फट जाने के कारण वसा वा अन्य . ऊपर को उभर आती है। (२) माभ्यंत्र-वृद्धि-नाफ़ का फरक-उ. फरक सुरी, फरक सुर्रती, नुतूउल्-सुर्रह -१०।। अम्बिलाइकल हर्निया Umbilical hernia, .मॉमफैलोसील Omphalocele-ई। इस प्रकार की वृद्धि में नाभिस्थल पर उद“रक कला के फट जाने के कारण वसा वा अन्न "ऊपर को उभर पाती है । इस लिए नाभि भी उभरी हुई मालूम होती है। ऐसे रोगी को भारत वर्ष में सूण्डा ( पं० में धुल ) कहते है। ... इसके तीन प्रकार है : - जन्मतः बाल्यावस्था में होने वाली, २-प्रौदावस्था में होने वाली और . लक्षण-वंक्षणके बाहरकी भोर उरुके उचं भाग में एक गोल उभार वा सूजम जान पड़ती है और खाँसते समय संक्षोभ हस्यादि लक्षण होते हैं। नोट-पूर्व यूनानी चिकित्सकों ने इस प्रकार की वृद्धि (फत्क) को भी वंक्षणस्थवृद्धि (फत्क उबिय्यह) संज्ञा से ही अभिहित किया है। परन्तु इसको ऊधस्थवृद्धि (फत्क फरजी) कहना अधिक उपयुक्त एवं उचित है। डॉक्टरी में इसको फेमरलसील (Femoralcele) भी कहते हैं। (५) अंडकोष वृद्धि (अंत्रांडवृद्धि - क्रो ते का फ़त्क-उ० । फत्क सफ्नी, क्रोल, उवह , कर्य-अ०। स्क्रोटल हर्निया (Serotal hernia-ई..।। . इस प्रकार की वृद्धि में अंडकोष में मंत्र उतर भाता है। नोट-अंडकोष में पानी उत्तरने को कुरण्ड Hydrocele (मूत्रज वृद्धि) और वायु .. उतरने को वातज वृद्धि Physocele कहते हैं। देखो-वृद्धिः (६ ) गुह्यन्द्रिक वृद्धि-शर्मगाह की For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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