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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्त मूल ३४० अन्तमूल जिनमें इपिकेक्वाइना व्यवहत होता है, इसका , बहुत वर्ष पूर्व से ज्ञान है। ऐसा मालूम होता है उपयोग किया जाता है। कि इपिक क्वाइना सर्वथा समाप्त हो चुका था ___ इतिहास, गुणधर्म तथा उपयोग–यद्यपि . और डॉक्टर एण्डरसन ने देशी चिकित्सकों की ऐसा प्रकट होता है कि भारतवर्ष के उस प्रांत के चिकित्सा में अपनी अपेक्षा अधिकतर सफलता निवासी जिसमें अन्तमूल होता है, इसके औष- : प्राप्त करते हुए पाकर उन्होंने सहज पक्षपातशून्य धीय गुणधर्म से अति प्राचीन काल से परिचित हृदय से स्वीकार किया कि उनसे शिक्षा ग्रहण है; तथापि इसके व्यापारिक द्रव्य होने का हमारे ... करने में मुझे कोई लजा नहीं। और उन्होंने उनके पास कोई प्रमाण नहीं और न किसी प्रामा- रतलाए हुए पौधे को अधिक परिमाया मैं एकणिक हिन्दू अथवा इसलामी निघस्ट ग्रन्थों में त्रित करक उनकी जड़ का एक बड़ा गढ़ा मदरास इसका वर्णन पाया है। किसी किसी ग्रंथ में ... को भेजा। प्रस्तुतः यह हिन्दू मेटिरिया मेडिका भावप्रकाशक्ति मलाण्ड शब्द इसके पर्याय । (श्रायुर्वेदीय निघ) का वह द्रव्य है जिसकी स्वरूप लिखा है। भावप्रकाशकार मनाएद का। ओर अत्यन्त ध्यान देने की प्रायश्यकता है। गुण इस प्रकार लिखते हैं- "वामनः स्वेदजननः (फ्लोरा इंडिका वं० २, पृट ३४, ३५) कफनिहरणस्तथा ।" अर्थात् मलार वारक, पसला लिखते हैं -इसकी जड़ श्लेष्मस्वेदजनक और श्लेष्मनिस्सारक है। ये सण निस्सारक (कए ज्य) तथा स्वेदक प्रभाव के गुण अन्नमूल में विद्यमान हैं । अत: मलारड को : लिए अत्यन्त प्रशस्त है। इसका शीतकपाय (Infusion) प्राधे चाय की चम्मच की अन्तमूल मानना हमें अनुपयुक नहीं प्रतीत मात्रा में कफ पीड़ित बालकों को यमन कराने के होता। लिए प्रायः प्रयोग किया जाता है। इपिकेक्वाइना रॉक्स यग लिखते हैं -कारोमण्डल तट पर के कुछ कुछ समान गुण रखने के कारण प्रवा'अन्तमूल की जड़ इपिकेश्वार ना की प्रतिनिध हिका जन्य विकारों में यह लाभदायक भौषध रूप से प्रायः प्रयोग में लाई जा चुकी है। मैंने ज्ञात हुई और लोअर इंडिया के युरोपीय प्रायः इसका सेवन कराया और सदा इससे वे चिकित्सकों द्वारा समय समय पर इसका अत्यंत ही भाव उत्पस होते हुए पाया, जिनकी इपिके लाभदायक प्रयोग किया गया । ( मेसिरिया काइनाक द्वारा होनेकी धारााकी जाती है। इसरों मेडिका ऑफ़ इंडिया, २, पृ० ३) से इसके अनुसार प्रभाव होने की भी मुझे | ..क्टर माहीदीन शरीफ़-इस देश के प्रायः सूचनाएँ मिली । सन् १७८०-८३ ई० के कालबेलियों ( सपेरों) में यह सर्पदंश आदि के युद्धकाल में प्रभाग्यवश हैदरअली द्वारा बन्दीकृत अगद होने के लिए बहुत प्रसिद्ध है। उनका यूरोपियनों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी औषध कहना है कि जब नकुल को सर्प काट लेता है तो सिद्ध हुई । अधिक मात्रा में वामक, थोड़ी मात्रा वह इसी पौधे की शरण लेता है। देशी लोग में और बारम्यार प्रयोग करने से विरेचक, उभय इसके बामक प्रभाव से परिचित है. किन्तु वे 'विध यह अत्यन्त प्रभावामक सिद्ध हुश्रा। इसका बहुत कम उपयोग करते हैं। इस पौधे डॉक्टर रसेल (Dy. Russell) को का कोई अंग बाज़ार में नहीं विकता। उपयोग में मदरास के फिज़िशन जनरल (चिकित्सकों के लाने के लिए इसके एकत्रित करने की आवश्यकता अधिनायक) डॉक्टर जे०एण्डरसन (Dr.J. होती है। Anderson) ने सूचित की कि उनको इसके कांट एवं फली सहित उक्र पौधे का सांग युरोपीय तथा देशी दोनों सेवात्रों द्वारा प्रवाहिका | .. धारक है। परन्तु जर एवं पत्र केवल सर्वोत्तम में जिसने उस समय सेनामें संक्रामक रूप धारण ही नहीं, प्रत्युत उपयोग के लिए सरलतापूर्वक की थी, सफलतापूर्ण उपयोग किए जाने का चूर्ण भी किए जा सकते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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