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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मन्तपूल अन्तमूल अथवा गुलाबी रंग के चिड्डों से युक) होते हैं। पराग-केशर तथा गर्भशा परम्पर संप्रक्र होकर एक हो जाते हैं जिसका व्यास लगभग र इंच होता और जो पंच पीताभ उभरी हुई रेखाओं से अंकित होता है। बीजकोष (डिम्या. शय) दो होते हैं। शिम्बो युग्म, एक दूसरी के सम्मुख और अाधार पर किश्चित् चिपकी हुई, एक अोर गाव हुमी, २ से ४ इंच लम्बी, मध्य में लगभग : इंच मोटी, चिकनी, एक कपाटयुक और स्फुरित होने वाली होती है। बीज लोमश जिसके ऊपरके सिरे मा अाधार पर रूईका एकगुच्छा होता है, लधु, अत्यन्त पतला, रजाभायुक धूसर वर्ण का पोर किञ्चित् अंडाकार होता है। इसका पौधा वर्ष भर पुष्पमान रहता है, विशेषतः उस समय जब कि लगाया जाता है । इस पौधे दो भेद होते हैं । यह केवल प्राकार एवं कुछ अन्य साधारण लक्षणों में एक दूसरे से मित्र होते हैं । जब इनको एक अवस्था में रक्ता नाता है तब इनमें से एक दूसरे से सदा बड़ा होता है । बड़ी जाति में पुष्पदल वृहत्तर एवं न्यू. माधिक परावर्तित और कभी कभी किनिन् लिपटे हुए भी होते हैं। पुरातन पत्र अधिक चौड़े, पतले, गम्भीर वर्ण के और कुछ कुछ पीछे को भोर मुके होते हैं। इस पौधे को जड़ के सम्बंध में ऐसा प्रतीत | होता है कि कतिपय ग्रंथो में यह एक दूसरी जड़ के साथ मिलाकर भ्रमकारक बना दिया गया है। उदाहरण के लिए मेटीरिया मेडिका खंड २ पृ० ८३ पर लिखे हुए वाक्य को ही लोजिए जो इस । प्रकार है__ "The root of this plant, asi it appears in the Indian baza. rs, is thick, twisted, of a pale colour,and of a bitterish and somewhat nauseous taste." I अर्थात् इस पौधे की जड़ जो बाजारों में दिखाई। देती है, मोटी, बलखाई हुई, अस्पष्ट वण की और किञ्चित् निक्र एवं कुछ कुछ उस्लेशजनक स्वादयुक्त होती है । प्रथम तो इसकी जड़े विक्रयार्थ बाजारों में नहीं पाती और द्वितीय यह कि इसकी जड़े पूर्वोक्र वर्णनके अनुसार नहीं होती। देखो-चानस्पतिक वर्णनांतर्गत मूल वर्णन । रासायनिक संगठन-इसके पत्र का धन शीतकषाय स्वाद में किञ्चित् चरपरा होता है। पत्र एवं मूल में टाइलोफोरीन (Tylophor. inc) अर्थात् अंतमलीन नामक एक हारीय सत्व और दूसरा एक वामकसत्व ये दो प्रकार के सत्व पाए जाने हैं। टाइलोफोरीन जनमें से कम परन्तु मप्रसार एवं ईधर में अत्यन्त विलेय होता है। प्रयोगांश-शुष्क पत्र तथा मूल । औषध-निर्माण-(1) पत्र का अमिश्रित चूर्ण Simple Porder of Tylophora Leaves (Pulvis Tylophore Folice Simplex )-पत्र जड़ की अपेचा कठिनतापूर्वक चूण किए जा सकते हैं। पहले उनको धूपमै अथवा सैंडबाथ (बालुकाकुड) पर रखकर भलीप्रकार सुखा लें । फिर चूणकर वसापूत करलें । इस स्थूल चूर्ण को पुनः विघूर्णित करें और पुनः बारीक चलनी वा वस्त्र से छान लें. तथा बन्द मुँह की बोतल में सुरक्षित रखें। मात्रा-मूल चूर्ण वत् । (२) जड़ का अमिश्रित चूण Simple Powder of Tylophora Root (Pul. vis ''ylophore Simplex)-सामान्य विधि से तैयार कर बन्द मुख के बोतल में रकरने । मात्रा-वामक प्रभाव के लिए . से १० प्रेन (२० रत्तीसे २५ रत्ती तक); प्रवाहिका में १५ से ३० मेन ( ७॥ रत्ती से ११ रत्ती) या इससे अधिक | कफनिस्सारक रूप से -प्रेन। (३) अभ्यङ्ग वा उद्वर्तन (Liniment). (४) टाइलोफोरीन नामक सस्व । . प्रतिनिधि-यह इपिकेक्वाइना की उत्तम प्रतिनिधि है और प्रायः उन सम्पूर्ण दशाओं में For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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