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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्तमूल ३३५ अन्तमूल ca, Willd., Roxb.-ले० । इंडियन इपीके- अधिक होती हैं। ये स्पष्ट वर्ण की अथवा धूसर वाहना Indian Ipecacuanha-कंट्री | श्वेत वर्ष की होती है। जड़ें प्रायः अशास्त्री होती इपिकेश्वाइना प्लांट Country Ipecacu.} हैं । पर साधारणतः उनसे बहुत पतले लोमवत् anha plant-इं०। संस्कृत पर्याय-मलाण्डः, ! तन्तु या युद्ध मूल लगे रहते हैं। अण्डमलः, पूति, अम्भपण :, रोमशः ( भा०); | इससे २ से ३ श्राकाशी धड़ (कांड) निकअन्तर्पाचक, मलान्तः, अन्तमलः, अण्डपणः, लते हैं । कांड, अनेक, दाएँ बाएँ लिपटे हुए लोमशः । पित्-काडी-द० । इकु जज़हब हिन्दो . साधारणतः कुक्कुट-पराकार, कभी कभी हंस के पर -अ० अन्तोमुल-बं० । पितमारी,खड़की रास्ना, के समान मांटे शाखायुक्रकिचित लोमश होते हैं। प्रन्थमुल, पितकाड़ी-बम्ब०। पितकाड़ी, खड़की पत्र सम्मुखवी, पत्र-प्रांत समान अर्थात् प्रखंड रास्ना--मह । मेराडी -उड़ि । मन्--नुरुप्पान, (जड़ के समीप प्रायः व्यत्यस्त) २ से ३॥ वा ५९० ना--मुरिश्चान, नाय--पालै, पैय्प्-पालै--ता० ।। श्रीर्घ और 10 से २॥ इं० चौड़ा, पायताराकार, देरिपाल, कुक्कपाल--ते० । वल लि-पाल-मल। डंठल ( पत)के पार कभी कभी तथा कुछ हृदयाबिन्नुग-सिं० । अदु-मुत्तद-कना। कर,किजिन नोकीला, ऊपरका भाग(उदर)चिकना शारिवः वा मूलिनो वर्ग और नीचेका भाग(पृ.)किज्ञित् लोमरा और उठज (1.0). Asclepiadec. ) युक्त होता है । पत्रवृत (दंठल) लवु, प्राधा से उत्पत्ति स्थान-उत्तरी तथा पूर्वी बंगाल, इं० लम्बा, लोमरा किञ्चिन् नलिकाकार होता आसाम से वर्मा पर्यंत, दकन (वा दक्षिण भारत है। पत्र शुकावस्था में अधिक पीले सस्त और वर्ष ) और लंका। पीतामहरित वर्ण के होते हैं। उनमें पर्याय-निर्णायक नोट अन्तोमुल ( अन्त । किसी प्रकार की अप्रिय गंध नहीं होती। स्वाद मल, अंन्तमूल-हिं० )तथा अनन्तोमूल (अनन्त बहुत कम होता है । पुष्प सूक्ष्म, तारा के सडरा मूल-हि.) इन दो बंगला भाषा के शब्दों के प्रातः सायं तथा रात्रि में विकसित होते, परन्तु उच्चारण में बहुत कुछ समानता होने के कारण दिन में जर सूर्य का प्रखर उतार होता है तब वे ये भ्रमवश एक दूसरे के लिए प्रयोग किए जाते कुम्हला जाने हैं । ये वृन्तयुक्रा, छत्रकाकार और हैं। परन्तु, इनमें से प्रथम अर्थात् अन्तीमुल पुष्पावल्यावरण युक होने हैं। पुष्पधून कक्षीय Fiat Ta Country Ipecacua साधारण, सामान्यतः विषमवर्ती, पत्रवन की nha ( Tylopuora Asthanatica) अपेक्षा दीवंतर होते हैं ! छत्रक (Umbel) और दूसरा शारिवा चा अनम्तमूल Country साधारणतः मित्रित, चिपम, वाधार पर पुष्पा. Sarsaparilla ( Hemilesuls वल्यावरण ( Tvolucres)द्वारा घिरे होते Indicus, R. HE ) के लिए प्रयोग किया हैं। पुष्पावल्यावरण ( Insolicies) जाना चाहिए। अत्यन्त लघु और स्थायी होता है। पूष्पवाद्या वरण वीजकोषाधः, स्थायी,बहुमपलीय (Poly. चानस्पतिक वर्णन-यह शारिवा को जाति का एक ब्रवर्षीय लता है। मूल एक लघु काष्ठ sopalous) होता है । सपल (Sepals) मय ग्रंथि है जिससे बहुसंख्यक सूत्रमय ५, लबु, से। इंच लम्बे, हरित वा पीतजरे निकल कर नीचेकी ओर जाती हैं। यह २ से हरित होते हैं। पप्पाभ्यं नर कोष, बीजकोषाधः ५ वा ६ इंच या अधिक लम्बी और । या. एवं बहुदलीय होता है । दल ५, त्रिकोणाकार, इं० व्यासमें और अत्यन्त कर्कश अर्थात् टूटनेवाली | से 1 इंच लम्बे, कभी कभी एवं किजिस् (भंगुर) होती हैं । सौनिक जड़ों की संख्या विभिन्न पीछे को झुके हुए; पीले ( विवाय अाधार के होती है । ये१ से १५ या २० और कभी इससे भो सामीप्य भीतरी भाग के जहाँ वे गुलाबी रंग के १२ For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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