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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिसार अतिसार बायरिया Cholariform Diarrhoea, कॉलरिक डायरिया Choleric Diarrhoea, थर्मिक डायरिया Thermic Dia. Trhea-t01 उमा प्रधान देशों एवं ग्रीष्म ऋतु में आहार विहार ग्रादि योग के कारण प्रायः इस प्रकार के दस्त धाया करते हैं। इसमें विसातिसार एवं विचिका के बहुत से लक्षण मिलते जुलते हैं। (१०) प्रातिनिधिक प्रतिसारइस्हाल बिजो-अ० । विकेरियस डायरिया : Vicarious Diarrhæa-or वर्षा ऋतु में शीतल वायु के कारण स्वेदा- . वरोध हो जाने से श्रथवा किसी प्रवृत्त हुए रतूबत के बन्द हो जाने से इस प्रकार के प्रातिनिधिक दस्त प्राने लगते हैं ! (११) पित्तातोसारपित्त के दस्त । इसहाल सरांची-अ.. बिलियरी या बिलियस डायरिया Biliary : OT Bilious Diarrhoea-इं. उणा प्रधान देश तथा ग्रीस ऋतु में प्राहार प्रादि दोष के कारण प्रायः इस प्रकार के दस्त पाया करते हैं। ऐसे दस्तों की श्रादि में पित्त के : घमन भी श्राते हैं। (१२) गिर्यातिसार - पर्वती अतीसार । हिल डायरिया Hill Diarrho:1-10 अतिसार का वह भेद जिसमें दस्त बिलकुल सफेद खड़िया मिट्टी और जल के मिश्रण जैसा । पतला होता है। (१३ ) चिरकारी व पुरातन अतिसार पुराने दस्त । इस्हाल मुजिमन-ऋ० ।, *rfata graftar-Chronic Diarrhoa : -इं०। नोट-- प्रसंगवश यहाँ डॉक्टरी मत से सामा- न्य परिचययुक्त प्रतिसार के कतिपय भेदों का उल्लेख कर अब आयुर्वेदीय मत से इसके अलग ।। अलग भेदों श्रादि का पूर्णतया वर्णन होगा। अन्त में इसकी सामान्य चिकित्सा व पथ्य प्रादि देकर इस वर्णन को समाप्त किया जाएगा। इसके पृथक पृथक भेड़ों की चिकित्सा क्रम में उन उन नामों के सामने दी जाएगी। यूनानी वर्णन एवं भेद के लिए देखिए---इस्हाल । अतिसार के रूप जिम मनुष्य को प्रतिसार होने वाला होता है. उसके हृदय,गुदा और कोष्ठ में सुई चुभाने की सी पीड़ा होती है; शरीर शिथिल पड़ जाता है, मल्ल का विवंध अर्थात् मलावरोध, प्राध्मान, और अन्न का अपरिपाक होता है। वा. नि. १०। माधव निदान में नामि तथा कुक्षि (कोस्य) में सुई छिदने की सी पीड़ा और अधेविायु का रुक जाना, इतना अधिक लिखा है। अतिसार के लक्षण (1) वातातीसार-इसमें जलबत् थोड़ा थोड़ा शब्द (गुड़गुड़ाहट ) और शूल से य बँधा हश्रा झागदार पतला, छोटे छोटे गांठों से युक्र, बराबर जले हुए गुड़ के समान, पिच्छिल, (चिकना), कतरने की सी पीड़ा से संयुक मल निकलता है। इसमें रोगों का मुख सूख जाता है । गुदा विदीई हो जाती ( गुदभ्रंश ) और रोमांच होता है। रोगी कुपितसा मालूम होता है। वा.नि.प्र. माधव निदान में ललाई लिए हए रूखा मल उतरना. कटि. जाँघ और पिंडलियों का जकड़ना ये लक्षण अधिक लिखे हैं। (२) पित्तातिसार ... इसमें दस्त पीले व लाल रंग के होते है, गुदा में जलन तथा पाक हो जाता और रोगी प्यास और मूर्छा से पीड़ित होता है। मा०नि० । वाग्भट्ट महोदय ने काला हरा, हरी दृषके समान, रुधिरयुक, अत्यन्त दुर्गधि युक्र दस्त होना, दस्तों से रोगी की गुदा में दर्द होना, शरीर में दाह और स्वेद होना ये ल. क्षण अधिक लिखे हैं। (३) कफातिसार-इसमें मल सफेद, गाढ़ा, चिकना, कफ मिति, श्रामगन्धियुक्र प्राता तथा रोमहर्ष होता है। मा०नि० | कफातिसार में गाढ़ा, पिच्छिल तन्तुओं से युक्र, सफेद स्निग्ध, मांस और कफ युक्र, बारबार भारी For Private and Personal Use Only
SR No.020060
Book TitleAayurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageGujarati
ClassificationDictionary
File Size27 MB
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