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भतिसार
अतिसार
कोई कोई श्राम, पक्क तथा रा नामक अतिसारों को प्रतिसार की अवस्था मानते हैं नकि स्वतन्त्र व्याधियाँ।
लक्षणों का अनुशीलन करने से भयजन्य और शोकजन्य अतिसारों के लक्षण एक समान पाए जाते हैं । अतएव किमी किसी प्राचार्य ने इनका पृथक् वर्णन नहीं किया और यही प्रशस्त भी जान पड़ता है। श्राम और पक प्रतिसार की दो अवस्थाएँ हैं तथा रत. पित्तातिसार का परिणाम । इस प्रकार कुल अतिसार पाँच ही प्रकार के हुए।
पाटकों की ज्ञानवृद्धि हेतु प्रब डॉक्टरी मत से | अतिसार के भेदों का, मय उनके श्रायुर्वेदिक एवं यूनानी पर्यायोंके, यहाँ सक्षिप्त वर्णन कर देना उचित जान पड़ता है। डॉक्टरो मतसे अतीसार के मुख्य मुख्य भेद निम्न हैं--
(1)श्वेतातिसार--सफेद दस्त । इसहाल श्रव्य ज-०। डायरिया पुल्या Diarrhoea Alba, हाइट आयरिया White Dia. rhoea-ई।
उष्ण प्रधान देशों में साधारणतः बालकों को इस प्रकार के दस्त प्राया करते हैं। इसके कारण विशेष प्रकार के कीटाण माने जाते है।।
(२) हरितातिसार-हरे दस्त | इसहाल अनजर-अ। ग्रीन डायरिया Green Diarrhera-हं० ।
इस प्रकार के दस्त शिशुओं को ग्रीष्म ऋतु वा दन्तोझेद काल में पाया करते हैं।
(३) शिश्वतिसार वा बालातीसारबखों के दस्त । इन्फस्टाइल डायरिया Infan | tile Diurhca-इं.।
(४) इल्हाल बुगनी-अ० । क्रिटिकल ; डायरिया Critical Diarrhora-ई। ।
जब प्रकृति किसी रोग में विकृत शेष की , रेचन द्वारा विसर्जित करती है तब उक्र प्रकार के दस्त की इस नाम से अभिहित करते हैं।
(५) श्लेष्मातिसार-कफजन्य अतिसार । इस हाल बलगमी-अ० । भ्युकस डायरिया Mucous Diarrhora इं० ।
इस प्रकार के दस्त शरीर में श्लेष्माधिक्य एवं उनके प्रकुपित होने से प्राया करते हैं और उनमें श्लेग्मा मिली हुई होती है।
(६) क्षोभजन्य अतीसार---खराशवार दस्त। इस हाल तहरयुजी-०। डायरिया क्रप्युलोसा Diarrhea Crn.pnlosa, gfiziza Eufeat Irritative Diarrhoea-इं। इस प्रकार के दस्त किसी शोभक आहार या औषध के सेवन द्वारा अंग्र में खराश होने के कारण आया करते है।
क्षोभजन्य अतिसार वस्तुतः प्रादाहिक, प्रावाहिकीय तथा वैशूचिकीय आदि अतिसारों की प्रारम्भिक अवस्था है। (७) वातानिसार मास्तिकोयातिसार)मस्तिष्क के योग या विकार द्वारा उत्पन्न हुमा प्रतीसार । इस हाल दिमाशी-अ.। नर्वस डायरिया Nervous Diarrhoea, कटारल डायरिया Catarrhal Diarrhoea-इं।
यूनानी मतके अनुसार वह अतीसार जो मस्तिष्क से कराठ एवं अन्न प्रणाली के रास्ते प्रामाशय में नजलह, तथा रतूबतों के गिरने से हुआ करता है। इसी कारण उसको इस्हाल नजली ( प्रातिश्यायिक अतिसार) भी कहते हैं।
डॉक्टरी गत से इस प्रकार का अतिसार प्रायः मनोविकार एवं श्रान्त्रीय कृमिवत् श्राकुअन और सद्स्थानीय ग्रंथियों की क्रिया की वृद्धि के कारण हुअा करता है। इस प्रकार के दस्त बहुधा स्त्रियों एवं बालकों को प्राया करते हैं।
(E) प्रादाहिकातिसार-प्रदाह जनित अतिसार । इस हाल धर्मी-अ० इन्फ्लामेटरी डायfor Juflamatory Diarrboca, चायरिया सिरोसा Diarrhoea Serosa, कैटारल एरटेराइटिस Catexrhal Enterritis ई०। इस प्रकारके दस्त सामान्यतः श्रौत्रीय श्लैस्मिक कलाओं के शोथ से लौर कभी यकृष्प्रदाह के कारण पाया करते हैं।
(६) वैशूचिकीयातिसारइस्हाल मानिंद हैजा-अ। कॉलरीफॉर्म
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