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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र 344 4.अनुवादक बाल ब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी तारेणं पोग्गलपरिय? समोअरइ, आयभावेय पोग्गलपरिय? आयसमोआरेणं आवभावे समोतरइ, तदुभयसमोआरेणं तीतद्धा अणागतडा सुसमोअरंति, आयभावे, तीतद्धा अणागतद्धा आयसमोआरेणं आयभावे समोअरंति, तदुभय समोतारेणं सवडाए समोअरंति आयभावेय, से तं कालसमोआरे // 8 // से किं तं भावसमोआरे ? भावममोआरे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आयसमोआरेय, तदुभयसमोआरेय, कोहे आयसमोआरेणं, आयभावे समोअरइ; तदुभय समोआरेणं माणेसमोअरइ. आयभा वेय, एवं माण माया लोभ रागे मोहणिज्जे अट्ठकम्मपगडीओ आयसमोआरेणं पनी यह स्वयं से दोनों आत्म भाव, 48 उत्सर्पनी अवसर्पनी आत्म भाव समवतार, तदभय समवतार पुद्गल परियट समवनरे, स्वयं से आत्म भाव. 49 पुद्गल प्रवर्तने आत्म समवतार आत्म समवतार में अवसरे, तभय समवतार सो गत काल दोनों अपने 2 स्वभाव में आत्म समवतार. 50 अतीत अद्धा अनागतद्धा आत्म समवतार आत्म भान में अवतार तदुभय समवतार सो सर्वद्धा. दोनों अपना 2 आत्म भाव में प्रवते यह काल समवतार का कथन हुवा // 8 // अहो भगवन् ! भाव समवतार किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! भाव समवतार के दो प्रकार कहे हैं, तद्यथा-आत्म समवतार और उभय ममवतार. क्रोध आत्म समवतार आत्म भाव में समवतरे. और तदभय समवतार सो मान विना क्रोध होवे. *भकाशक-रानावहादुर लाला मुखदेवसहायनी वालाप्रसादी * For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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