________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 880*> एकात्रंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल वाससहरसे, वाससततहस्से, पुव्वंगे, पुव्वे, तुडिअंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अबवे, हुहुअंगे हुहुए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, णलिणंगे, नालणे, अत्थिनेपुरंगे, अथिनिपुरे, आउअंगे, आउए, नउअंगे, नउए, पउमंगे, पउए चलिअगे, चूलिया, सीसम्हलिअंगे सीसपहेलिया, पलिओवने,सागरोवमे,आयसमोआरेणं,आयभावेसमोतग्इ ॥तदुभय समोतारेणं उसप्पिसुउसीप्पणासु समोतारेइ आयभावे उसप्पिणुसप्पिणीओ आयसमोआरेणं आयभावे समोतरेइ आयभावे,तदुभयसमो / दो दो बोल आगे भी जानना. 4 संख्यात आंवलिका का स्तोक, 5 लव, 6 मुहूर्त, 7 अहोरात्रि. 18 पक्ष. 0 महिने, 10 ऋतु, 11 अयन, 12 संवत्सर, 13 युग, 15 सो वर्ष, 15 हजार वर्ष, 16 लाख वर्ष, 17 पूर्वाग 18 पूर्व, 11 तुदिदांग. 20 तुटिन. 21 अडडांग, 22 अडड, 23 अववंग, 24 अवत्र. 25 हुहुअंग 2626 27 तालंग 28 उत्पल, 29 पद्मांग, 3. पद्म. 31 नलिनांग, 32 नलीन. 33 अथीनेपुशंग, 34 आस्तनेपुर, 35 आउअंग, 36 आर, 27 नउअंग, 38 नउए, 39 ५उमांग, 40 पउम. 41 चूलीतांग, 42 चूलिय, 43 शीर्ष पहेलिकांग, 45 शीर्ष महेलिक, +45 पल्योपम, 46 सागरोपम, सागरोपम आत्म सम्वतार और 47 तदुभय समवतार सो सर्पनी उत्स 4880888-माण विषय -8086077 अर्थ 429 For Private and Personal Use Only