________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488 आयभावेसमोयरंति, तदुभयसमोआरेणं छावहे भावे समोतरेइ आयभावेष. एवं छविहेभावे जीवे जीवस्थिकाए आयसमोयारेणं आयसमोअरंति, तवुभयसमोआरेणं तदुभयसमोअरंति सव्वदव्वेसमोतरंति आयभावे // एत्थसंगहणीगाहा-कोहे माणे मायालोभे, रोगेय मोहणिजेय // पगडीभावेजीवे, जीवत्थिकाय दव्वाय भासेयव्वा // 1 // से तं भावसमोयारे // से तं समोतारे // से तं उवक्कमे // 9 // इति पढम दार सम्मत्तं // 1 // . . नहीं इस लिये क्रोध मान में समवतार. दोनों आप 2 के गुन में आत्म समवतार. 2 ऐसे ही मान का, 3 माया का, 4 लोभ का, 5 राग का, 6 द्वेष का, 7 मोह का, 8 आठों कर्मों की प्रकृति का आत्म समवतार आत्मा में समवतरे, तदुभय समवतार उक्त छ ही भावों में समवतरे. यह आठों आपरके गुण में रहे सो आत्म समवतार. यह छ प्रकार के भाव जीव जीगस्ति काया में आत्म समवतार आत्म समवतरे. उभय समवतार सब द्रव्य में समवतरे, आत्म भाव में भी, यहां संग्रहणी गाथा-१ क्रोध, २मान, 13 माया 4 लोभ,५ राम, 6 मोहनीय, 7 प्रकृति. 8 भाव, 9 जीव. और १०द्रव्य, का कहना. यह भाव समवतार हवा. यह उपक्रम, // 9 // इति प्रथम द्वार संपूर्ण. // // अहो भगवन् ! निक्षेप किसे कहते? एकत्रिशत्तम अनुयागद्वार सूत्र-चतुर्थ +8+488+ प्रमाण विषय 48828+ 498 For Private and Personal Use Only