________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाभ-भोग उवभोग-लही, खउमसमिया वीग्यिलद्धी, एवं पंड़िय वीरियलही, वाल पडिय विरीयलद्धी, ख उवसमिया-सोइंदियलही, जाव खउपसमिया फासिंदिय रूद्धी. खउवसमिया आयारधरे, एवं सुयगडधरे, ठाणांगधरे, समवाय, एवं विवाह पण्णत्ती, णायधम्मकहा, उवासगदसा, अंतगडदसा, अणुत्तरोववाइ दसा, पण्हवागर गधरे, खउवसमिआ विवागसुयधरे, खउवसमिए दिट्टीवायधरे. खउवसमिय णवपबीए जाव खउवसमिए चऊदसपवीए.खउवसमिए गणिवायए. से तं खउवसम } निप्फन्ने. से तं खउवसमिए // 115 // से किं तं परिणामिए भावे ? परिणामिए भावे 'लब्धि, 18 दान लब्धि, 19 लाभ लब्धि. 20 भोग लब्धि, 21 उपभोग लब्धि, 22 वीर्य लब्धि, 12 पंडित वीर्य लब्धि. 24 बाल वीर्य लब्धि, 25 बाल पंडित वीर्य लब्धि, 26 श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि, यावत् स्पर्शेन्द्रिय - ब्धि, 31 आचारांग सूत्र धारक. 12 सूत्र कृतांग सूत्र धारक, 33 स्थानांग सूत्र . धारक, 35 समवायांग मूत्र धारक, 35 विवाह प्रज्ञप्ति सूत्र धारक, 36 ज्ञाता धर्म कथांग धारक, 3. अंतकृत धारक. 38 अनुत्तरोपपातिक सूत्र धारक, 39 प्रश्न व्याकरण मूत्र धारक, 4. विपाकी 5 सूत्र धारक, " दृष्टिवाद मन्त्र धारक, 4. नव पूर्व ज्ञान के धारक, यावत् नउदह पूर्व के ज्ञान के धारक, और आचार्य पद के धारक. यह क्षयोपशम निप्पम के भेद हुवे // 115 // अहो भगवन् !" एकागारम भयोगद्वार मूत्र-चतुर्थन 48888@g नाम विषय 4884 For Private and Personal Use Only