SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमा तं खउत्सम निप्फन्ने ? खउवसम निप्फन्ने अनेगविहे पण्णत्ते तंजहा-स्वउवममिया / अभिणियोहिय णाणलबी, जाव खउत्रसमिया मणपजवणाणलवी खउवसमिया मति अण्णाणलद्धी, खउपसमिया सुय अण्णामलद्धी, खउवसमिया विभंगणाणलद्धी ख उवसमिया चक्खदंसणलडी. खउपसमिया अचक्खदंसणलडी, ख उपसमिया ओहीदसणलही, एवं सम्मदंसणलही, मिच्छा दंसणलडी, सम्मामिच्छादसणलही, ख उवसमिया सामाइय चरित्तलही, एवं छेदोवठाणलही, परिहारविसीडलद्धा, सुहमसंपरायचरित्तलही, एवं चरित्ताचरिचलही, खउवसभिया दाणलद्वी, एवं उन का क्षय करे और जो 2 प्रकृतयों प्रदेशोदय में रही है उन का उपशम करे उसे क्षयोपशम भाव।। कहते हैं. यह क्षयोपशम हुवा. अहो भगवन् ! सयोपशम निष्पन्न किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! क्षयोपशम निष्पन्न के अनेक मेद कहे तयथा-१ मनि जान लब्धि, 2 श्रत जान सब्धि, 3 अवधि ज्ञान लन्धि, 4 मनापर्यत्र ज्ञान लब्धि, 5 मति अज्ञान लब्धि. 6 श्रुत अज्ञान लब्धि, 7 विभंग ज्ञान लब्धि, 8 चक्षु दर्शम लब्धि, 9 अचक्षु दर्शन लब्धि, 10 आधि दर्शन लब्धि, 11. सम्यक्त्व दर्शन मलन्धि, 12 मिथ्या दर्शन लन्धि, 13 सप मिथ्या दर्शन लब्धि, 14 सामायिक चारिष लम्धि, 2115 छेदोपस्थापनीय चारित्र लब्धि, 16 परिहार विशद चारित्र लब्धि, 17 सूक्ष्म संपराय चारित्र प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहापजी ज्वालाप्रसादनी अर्थ For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy