________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगदार मूत्र-चसुर्थ पण्णते तंजहा-सइएय, खयनिष्फन्नेय / से किं तं खइए ? खइए अट्टण्हं कम्मर पगडी खएणं से तं खइए // से किं तं खयनिप्फन्ने ? खानिफन्ने अणेगविहे पण्णत्ते तंजहा- उपप्ण णाणदंसणधरे अरहाजणं केवली.-सीण आभिणिबोहिय णाणावरणे, खीण सुयणाणावरणे, खीणउहिणागावरणे, खीण मणपजव णाणावरणे, वीण केवल णाणावरणे, अणावरणे, निरापरणे, खीणावर गो, णाणावरणिज कम्म विप्पमुके 2 केवलदंसा सव्वदंसी, खीणनिहे. वीणनिहानिदे, खीणप्पयले, वीणप्पयलप्पयले, खीणाधीणागडे, खीणचक्खूदंसणावरणे,खीणअचक्खूदसणावरण खीणउहीदंसणावरणे, खीणकेवलसणावरणे, अणावरणे, निरावरणे खीणावरणे सायिक के दो भेद. तद्यथा-सायिक और क्षय निष्पन्न आठों प्रकृतियों का क्षय होचे सो क्षायिक है। और क्षय निष्पन्न के अनेक भेद कहे हैं तद्यथा- उत्पन्न केवल ज्ञान केवळ दर्शन के धारक,इन्द्रादिक के 80 पूज्यनेय, राग देव जीतनेवाले केक्ली भगवान कि जिन को मति ज्ञानवरणीय, श्रुत मानावरणीय.. अाधे शानावरणीय, मनः पर्यव दानावरणीय व केवल ज्ञानावणीय, भय हुचे हैं, जो आवरण रहित 2. निरावरणीय यशानावरनीय कर्म से जो मुक्त हैं और 2 केवल दर्शी, सर्व दी, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाचला, सयनगृद्धि निद्रा, चक्षु दर्शनावरण, अचव दर्शनावरण, अवापि दर्शनावरम, . For Private and Personal Use Only