________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सत्र पनि श्री अमोलक ऋषिजी 4.अनुवादकपालमा सतं उदइए नामे // 12 // से किं तं उवसमिऐ ? उवसमिए दुविहे पण्णत तंजहा-उवसमेय, उपतमनिप्फन्नेय / / से किं तं उवसमे? उवसमे मोहणिज कम्मरस उबसमेणं. से तं उसमे // से किं तं खसम निप्फो ? उबसम निष्फने अणेग विहे पण्णत्ते तंजहा-उवसंतकोहे. जाव उवसंत लोहे. उघसंतपेजे, उवसंतदोसे, उवसंत सण मोहणिजं. उवसंत चरित्त मोहणिजं, उवसमिया सम्म लरीए, उपसमिया चरित लहिए, उवसंत कसाए, छउमत्थ. वीतरागो // से तं उवसम निप्फन्नं // से तं उबसमिए नामे // 13 // से किं तं खइए ? खइए दुविहे उपम किसे कहते! महो शिष्य ! उपशम भाव के दो भेद कहे। तद्यथा-उपशम और उपधाम निष्पन. अहो भगवन् ! उपचन किसे कहते हैं ? भो शिष्य ! मोहनीय कर्म का प्रपत्रय होने से पक्षहरे बो भगवन् ! पशय निम्पन किसे कहते हैं ! महा शिष्य ! पशम निष्पन के अनेक भेदको सपया-१ कोध पत्रमावे यावत् 4 लोभ उपभयावे. म उपनमाये. देष E उपधमाये, .दर्शन मोहनीय कर्म उपशमाचे. 8 चारित्र मोहीय उपसावे, 9 उपशम सम्यक्त्व लम्भि सपश्म चारित्र अधि,११७पश्म कपाय, १२वस्थपना और वीतरागपमा.या पशय विषम का कवन बा. या पत्रम नाम दुवा // 5 // अहो मगवन् ! साविक किसे कासे! बो शिष्य!। बा-रामवहादुर सामुखदेवसहावजी ज्वालाप्रसादशी. For Private and Personal Use Only