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अग्रवाल इतिहास की सामग्री
में यह हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थ अब भी विद्यमान है। बा० हरिश्चन्द्र ने इस ग्रन्थ पर लिखा था, कि इसे उन्होंने एक पुराने हस्तलिखित ग्रन्थ से नकल कराया है। दुर्भाग्यवश, यह महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थ हमें अविकल रूप में नहीं मिल सका। इसके पहले बारह पृष्ठ अत्यन्त प्रयत्न करने पर भी प्राप्त नहीं हो सके । पर जो पृष्ठ मिले हैं, वे भी बड़े महत्व के हैं, और उनसे राजा अग्रसेन, उनके जीवन-चरित्र तथा उनके वंशजों के सम्बन्ध में बड़े काम की बातें ज्ञात होती हैं। पुस्तक का अन्त इस पंक्ति के साथ हुआ है___ “इति श्री भविष्य पुराणे लक्ष्मी महात्म्ये केदारखण्डे
अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनं षोडशोऽध्यायः" इससे सूचित होता है, कि यह पुस्तक पूर्ण नहीं है, अपितु भविष्य पुराण के लक्ष्मीमहात्म्य नामक भाग का एक अध्याय है। भविष्य पुराण या भविष्योत्तर पुराण के अन्तर्गत रूप में बहुत सी छोटी छोटी पुस्तकें उपलब्ध होती हैं, जिनमें कुछ छप चुकी हैं, और कुछ छपने से शेष हैं । ऐसा प्रतीत होता है, कि यह अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम् भी उन्हीं पुस्तकों में से एक है। महालक्ष्मी-व्रत-कथा के नाम से जो पुस्तकें मिलती हैं, वे भी सब आपस में नहीं मिलती हैं । देवी महालक्ष्मी की पूजा की बात ही उनमें एक समान है। इस दृष्टि से अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम् भी इन्हीं महालक्ष्मी व्रतकथाओं में से एक है । इसकी कथा भी बहुत कुछ दूसरी महालक्ष्मी-व्रत-कथाओं के ही ढंग की है। ___ इस हस्त लिखित पुस्तक की यदि पूरी प्रति मिल सकती, तो बहुत उत्तम होता । पर पहले बारह पृष्टों के खोये जाने की क्षति इस बात से
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