________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अग्रवाल जाति का इतिहास
३६
बहुत कुछ पूर्ण हो गई है, कि बाबू हरिश्चन्द्र ने 'अग्रवालों की उत्पत्ति' में उसके आधार पर अनेक महत्त्वपूर्ण बातें उल्लिखित कर दी थीं । राजा अग्रसेन के पूर्वजों का जो हाल बाबू हरिश्चन्द्र ने लिखा है, उसका मुख्य आधार यही पुस्तक थी ।
अग्रवाल जाति के इतिहास के लिये इस महालक्ष्मी व्रत कथा या वैश्य वंशानुकीर्तनम् ग्रंथ का बड़ा उपयोग है । राजा अग्रसेन तथा उनके वंश के सम्बन्ध में यह पहली पुस्तक है, जो संस्कृत में मिली है । यह बहुत काफी प्राचीन है, और सच्ची ऐतिहासिक अनुश्रुति पर श्रित प्रतीत होती है ।
(२) उरु चरितम् - यह भी संस्कृत की एक हस्त लिखित पुस्तक है। इसकी एक प्रति मुझे मेरठ की अखिल भारतीय वैश्य महासभा के कार्यालय से प्राप्त हुई थी | सभा के प्रचारक पं० मङ्गलदेव जी ने इसे मैनपुरी ( संयुक्त प्रांत ) जिले के एक गांव से नकल किया था । पं० मंगलदेव जी ने मुझे बताया था, कि इसे उन्होंने स्वयं लाला अवध बिहारी लाल जी के पास विद्यमान मूल हस्त लिखित ग्रंथ से नकल किया था । यह पुस्तक भी बड़े महत्व की है । इसमें मथुरा के चन्द्रवंशी राजा उरु का चरित्र दिया गया है। पर साथ ही यह लिखा है, कि शूरसेन ने राजा उरु के राज्य का जीर्णोद्धार किया था और उसे उरु ने अपने राज्य का प्रधानामात्य बनाया था । शूरसेन राजा अग्रसेन का भाई था, अतः शूरसेन का परिचय देते हुवे उसके कुल, वंश आदि का अच्छे विस्तार से वर्णन किया गया हैं । यही वर्णन हमारे लिये बड़े काम का है । विशेषतया राजा अग्रसेन के पूर्वजों व वंश का
For Private and Personal Use Only